Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कविता : मुंशी प्रेमचंद...

Advertiesment
हमें फॉलो करें कविता : मुंशी प्रेमचंद...
- डॉ. दशरथ मसानिया
 

 
सन् अट्ठारह सौ अस्सी, लमही सुंदर ग्राम।
प्रेमचंद को जनम भयो, हिन्दी साहित काम।।
 
परमेश्वर पंचन बसें, प्रेमचंद कहि बात।
हल्कू कम्बल बिन मरे, वही पूस की रात।।
 
सिलिया को भरमाय के, पंडित करता पाप।
धरम ज्ञान की आड़ में, मनमानी चुपचाप।।
 
बेटी बुधिया मर गई, कफन न पायो अंग।
घीसू माधू झूमते, मधुशाला के संग।।
 
होरी धनिया मर गए, कर न सके गोदान।
जीवनभर मेहनत करी, प्रेमचंद वरदान।। 
 
मुन्नी तो तरसत रही, आभूषण नहि पाई।
झुनिया गोबर घूमते, बिन शिक्षा के माहि।।
 
बेटी निर्मला कह रही, कन्या दीजे मेल।
जीवनभर को मरण है, ब्याह होय बेमेल।। 
 
पंच बसे परमात्मा, खाला लिए बुलाय।
शेखा जुम्मन देखते, अलगू करते न्याय।। 

साभार- देवपुत्र 

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी कविता : जीवन-चक्र