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कविता : लोरी रोज सुनाए चिड़िया...

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हमें फॉलो करें कविता :  लोरी रोज सुनाए चिड़िया...
-आचार्य बलवन्त
 
मीठी-मीठी, प्यारी-प्यारी, लोरी रोज सुनाए चिड़िया,
दूर देश अनजानी नगरी की भी, सैर कराए चिड़िया।
 
खेतों-खलिहानों में जाकर, दाने चुगकर लाए चिड़िया,
बैठ घोसले में चूं-चूं कर, खाए और खिलाए चिड़िया।
 
अपने मधुमय कलरव से, प्राणों में अमृत घोले चिड़िया,
अपनी धुन में इस डाली से, उस डाली पर डोले चिड़िया।
 
अपनी इस अनमोल अदा से, सबका दिल बहलाए चिड़िया,
दूर देश अनजानी नगरी की भी, सैर कराए चिड़िया।
 
नन्ही-नन्ही आंखों से, आंखों की भाषा बोले चिड़िया‍,
आहिस्ता-आहिस्ता सबके मन के भाव टटोले चिड़िया।
 
तिनका-तिनका चुन-चुनकर, सपनों का नीड़ सजाए चिड़िया,
दूर देश अनजानी नगरी की भी, सैर कराए चिड़िया।
 
जीवन की हर कठिनाई को सहज भाव से झेले चिड़िया,
हर आंगन में उछले-कूदे, हर आंगन में खेले चिड़िया।
 
आपस में मिल-जुलकर रहना, हम सबको सिखलाए चिड़िया,
दूर देश अनजानी नगरी की भी, सैर कराए चिड़िया। 
 
जाति-पाति और ऊंच-नीच का, भेद न मन में लाए चिड़िया,
सारे काम करे निष्ठा से, अपना धर्म निभाए चिड़िया।
 
उम्मीदों के पर पसारकर, नील गगन में गाए चिड़िया,
दूर देश अनजानी नगरी की भी, सैर कराए चिड़िया।

साभार- देवपुत्र 
 

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