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बाल कविता : गरीबी का आलम

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शम्भू नाथ

कड़ाके की ठंड है,
गरीबी का आलम। 


 
लड़का किनारे,
कूड़ा बीन रहा है।
 
रसोई में आटा,
नहीं है उसके।
अपनी गरीबी की,
घडी गिन रहा है।
 
पैर में न चप्पल,
न स्वेटर है पहना।
दशा-दुर्दशा ही,
है उसका गहना। 
 
मां-बाप लाचार,
घर में पड़े हैं।
कर्मों का फल अब,
उसे मिल रहा है।

 

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