- गौरीशंकर वैश्य 'विनम्र'
प्रतिदिन आती-जाती बस,
विद्यालय पहुंचाती बस।
घर से जाओ जल्दी से
पों-पों हॉर्न बजाती बस।
तीखी धूप, धुआं, कीचड़,
सबसे हमें बचाती बस।
भीड़ नहीं जब होती है,
सड़कों पर लहराती बस।
यदि विलंब कर छूट गई,
नानी याद दिलाती बस,
क्षति कभी नहीं पहुंचाएंगे,
अपनी ही थाती है बस।