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कविता : वैज्ञानिक बन जाऊं

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- डॉ. चक्रधर 'नलिन' 

 
 
ईश्वर ऐसा करो कि मैं भी,
वैज्ञानिक बन जाऊं।
नई-नई खोजों द्वारा,
जग में खुशियां लाऊं।
 
वैज्ञानिक महान होते हैं,
नहीं समय अपना खोते हैं।
नहीं जान कोई पाता है,
कब जागते हैं कब सोते हैं।
 
नए-नए आविष्कारों से,
दिशा-दिशा चमकाऊं।
ईश्वर ऐसा करो कि मैं भी,
वैज्ञानिक बन जाऊं।
 
सब उसको आदर देते हैं,
नाव देश की यह खेते हैं।
दु‍निया में यश फैलाते हैं,
गलत नहीं कुछ भी लेते हैं।
 
सकल राष्ट्र को करूं सुवासित,
घर-बाहर महकाऊं।
ईश्वर ऐसा करो कि मैं भी,
वैज्ञानिक बन जाऊं।
 
नित नवीन खोजें करते हैं,
हर अभाव को यह भरते हैं।
ज्ञान पताका फहराते हैं,
भार देश का यह धरते हैं।
 
करूं मनुष्य जाति की सेवा,
सबका आदर पाऊं।
ईश्वर ऐसा करो कि मैं भी,
वैज्ञानिक बन जाऊं।

साभार - देवपुत्र 

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