चंदा चुपके छुपके बैठा छज्जे पे
उसको ढूँढ रहे हैं तारे दरवज्जे पे
चंदा चुपके छुपके बैठा हरे खेत में
उसको ढूँढ रहे हैं तारे बालू रेत में
चंदा चुपके छुपके बैठा गाड़ी में
उसको ढूँढ रहे हैं तारे उधर पहाड़ी में
चंदा चुपके छुपके बैठा घास में
उसको ढूँढ रहे हैं तारे नदी बनास में
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मुनिया का नाटक
बनठन पानी लेने को चली है रानी मुनिया
मुनिया का नाटक देखे दुनिया
मुनिया और झुनिया नाटक में जा रही पानी को,
चलने को आवाज लगा रही चुनिया रानी को।
चुनिया बोली रुको बहन, दुह आऊँ गैया को,
पलना में झुलना दे आऊँ रोते छैया को।
मुनिया बोली बहन साँझ ढलती ही जा रही है
वापस भी आना है तू क्यों देर लगा रही है।
घर के भीतर से चुनिया बोली आऊँ-आऊँ,
चिल्लावेंगे बहुत ससुर हुक्का भर आऊँ।
झुनिया बोली बहना चुनिया नदी दूर भारी,
रस्ते में लेगी घेर रात ये काली अँधियारी।
आ गई चुनिया संग तो जोड़ी मिल गई तीनों की,
बीती बातें की जी भर तीनों ने महीनों की।
आते-आते जब तीनों को हो गई इतनी देर,
रोने लगे सियार हो गया चारों ओर अँधेर।
मुनिया, चुनिया, झुनिया तीनों घर के घेरे में,
जाती हुई दिखी फिर गुम हो गई अँधेरे में।
(दोनों कविताएँ प्रभात ने भेजी जयपुर से।)