विशाल भारद्वाज ने मकबूल और ओंकारा जैसी बड़ी फिल्में बनाने के बाद बच्चों के लिए सुंदर "ब्ल्यू अम्ब्रेला" फिल्म बनाई। इस फिल्म को २००६ में बेस्ट चिल्ड्रंस फिल्म का नेशनल अवार्ड भी मिला। देखना चाहो तो फिल्म आसानी से मिल सकती है। बहुत ही खूबसूरत फिल्म है। "ब्ल्यू अम्ब्रेला" की कहानी बिनिया और नंदकिशोर खत्री के इर्दगिर्द घूमती है। फिल्म में नंदकिशोर खत्री बने हैं पंकज कपूर और बिनिया है श्रेया शर्मा।फिल्म "ब्ल्यू अम्ब्रेला" रस्किन बॉण्ड की कहानी "द ब्ल्यू अम्ब्रेला" पर बनी है। बिनिया एक पहाड़ी कस्बे में रहती है। कस्बा ज्यादा बड़ा नहीं है और वहाँ पर बहुत ज्यादा चीजें नहीं मिलती हैं। एक दिन बिनिया के पास एक नीली छतरी आ जाती है। छतरी को देखकर बिनिया बहुत खुश होती है। छतरी थी भी ऐसी कि उस गाँव में वैसी किसी के भी पास नहीं थी। बिनिया की खुशी की तो पूछो ही मत। बिनिया की छोटी सी दुनिया में इस छतरी से ज्यादा मूल्यवान चीज कोई दूसरी नहीं थी। ऐसी छतरी तो नंदकिशोर खत्री के पास भी नहीं थी। नंदकिशोर उसी कस्बे में एक छोटी सी दुकान चलाता है। वह सपना देखा करता है कि एक दिन उसकी दुकान बहुत बड़ी हो जाएगी। नंदू गाँव के बच्चों की खिंचाई करता रहता है पर हर मामले में बिनिया उसकी नानी साबित होती होती है। बिनिया की यह खूबसूरत छतरी पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन जाती है। छतरी मालकिन का गाँव में अचानक ही रूतबा बढ़ जाता है। गाँव में नंदू के साथ और भी लोग बिनिया की छतरी से जलने लगते हैं। फिर एक दिन यूँ होता है कि यह प्यारा-सा छाता कहीं गुम हो जाता है। छतरी के गुम हो जाने पर सारे गाँव वाले बिनिया को ही भला-बुरा कहते हैं। बिनिया तय करती है कि वह उसकी खोई छतरी ढूँढकर ही रहेगी। बिनिया काविशाल भारद्वाज ने मकबूल और ओंकारा जैसी बड़ी फिल्में बनाने के बाद बच्चों के लिए सुंदर "ब्ल्यू अम्ब्रेला" फिल्म बनाई। इस फिल्म को २००६ में बेस्ट चिल्ड्रंस फिल्म का नेशनल अवार्ड भी मिला। देखना चाहो तो फिल्म आसानी से मिल सकती है। बहुत ही खूबसूरत फिल्म है।बिनिया की यह खूबसूरत छतरी पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन जाती है। छतरी मालकिन का गाँव में अचानक ही रूतबा बढ़ जाता है। गाँव में नंदू के साथ और भी लोग बिनिया की छतरी से जलने लगते हैं। फिर एक दिन यूँ होता है कि यह प्यारा-सा छाता कहीं गुम हो जाता है। छतरी के गुम हो जाने पर सारे गाँव वाले बिनिया को ही भला-बुरा कहते हैं। बिनिया तय करती है कि वह उसकी खोई छतरी ढूँढकर ही रहेगी। बिनिया को नंदू पर शक रहता है। वह पुलिस के जरिए नंदू के घर की तलाशी भी करवाती है पर नंदू के घर में छतरी नहीं मिलती।कहता है कि उसे बिनिया की छतरी लेने की क्या पड़ी है, कुछ दिनों बाद उसके पास एक अच्छी छतरी आने ही वाली है। और बिनिया की छतरी गायब होने के कुछ दिनों बाद नंदकिशोर के पास एक वैसी ही छतरी का पार्सल आता है। बस छतरी का रंग लाल रहता है। फिर बिनिया अपनी तरकीब भिड़ाती है और आखिरकार छतरी चुराने वाला पकड़ में आ ही जाता है। |
फिल्म के गीत लिखे हैं गुलजार साहब ने। फिल्म में दृश्य बहुत अच्छे हैं और गाने भी। तुम्हें फिल्म की कहानी के साथ ये चीजें भी पसंद आएगी। जब कुछ अच्छे लोग मिलकर काम करते हैं तो फिल्म या कोई भी काम हो वह अच्छा ही बन जाता है। |
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गाँव वाले उस छतरी चोर के साथ बहुत बुरा बर्ताव करते हैं। कोई भी उससे बात तक करने को तैयार नहीं होता। सोचो अगर चोर से कोई बात नहीं करे तो उसकी हालत क्या होगी। वह बेचारा बिल्कुल अलग-थलग पड़ जाएगा। पर फिर बिनिया इस छतरी चोर को माफ कर देती है और उसकी गाँव वालों से वापस दोस्ती भी कराती है। पर यह सब कैसे होता है। यही तो फिल्म का मजा है।
इसके बाद बिनिया अपनी छतरी वापस कैसे खोजती है? उसकी छतरी किसने चुराई थी? क्या फिल्म के आखिर में गाँव वाले सचमुच चोर को माफ कर देते हैं? ये तमाम बातें आगे की फिल्म को बहुत रोचक बनाती है। फिल्म की कहानी छतरी के गुम हो जाने के बाद रोमांचक हो जाती है। इतना तुम्हें बता दें फिल्म का आखिरी हिस्सा दिल को छू लेने वाला है। इस हिस्से में तुम देखोगे कि किस तरह तुम हर किसी को माफ करके उसे अपना दोस्त बना सकते हो। फिल्म का अंत तुम्हें एक अच्छी बात सिखाता है। कभी न भूलने वाली और गाँठ बाँधकर रख लेने वाली बात। वैसे पूरी फिल्म ही बहुत अच्छी है। देखकर कई बातें सीखने लायक।
फिल्म के गीत लिखे हैं गुलजार साहब ने। फिल्म में दृश्य बहुत अच्छे हैं और गाने भी। तुम्हें फिल्म की कहानी के साथ ये चीजें भी पसंद आएगी। जब कुछ अच्छे लोग मिलकर काम करते हैं तो फिल्म या कोई भी काम हो वह अच्छा ही बन जाता है।