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जातक कथा : लोभी चिड़िया

हमें फॉलो करें जातक कथा : लोभी चिड़िया
- सुधा भार्गव

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बहुत समय पहले की बात है। एक चिड़िया ज्यादातर ऐसे राजमार्ग पर रहती थी, जहां से अनाज से लदी गा‍ड़ियां गुजरती थीं।

चावल, मूंग, अरहर के दाने इधर-उधर बिखरे पड़े रहते। वह जी भरकर दाना चुगती। एक दिन उसने सोचा- मुझे कुछ ऐसी तरकीब करनी चाहिए कि अन्य पक्षी इस रास्ते पर न आएं वरना मुझे दाना कम पड़ने लगेगा।

उसने दूसरी चिड़ियों से कहना शुरू कर दिया- राजमार्ग पर मत जाना, वह बड़ा खतरनाक है। उधर से जंगली हाथी-घोड़े व मारने वाले बैलों वाली गाड़ियां निकलती हैं। वहां से जल्दी से उड़कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा भी नहीं जा सकता।

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उसकी बात सुनकर पक्षी डर गए और उसका नाम अनुशासिका रख दिया।

एक दिन वह राजपथ पर चुग रही थी। जोर से आती गाड़ी का शब्द सुनकर उसने पीछे मुड़कर देखा- 'अरे, अभी तो वह बहुत दूर है, थोड़ा और चुग लूं', सोचकर दाना खाने में इतनी मग्न हो गई कि उसे पता ही नहीं लगा कि गाड़ी कब उसके नजदीक आ गई। वह उड़ न सकी और पहिए के नीचे कुचल जाने से मर गई।

थोड़ी देर में खलबली मच गई- अनुशासिका कहां गई, अनुशासिका कहां गई? ढूंढते-ढूंढते वह मिल ही गई।

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अरे, यह तो मरी पड़ी है वह भी राजमार्ग पर! हमें तो यहां आने से रोकती थी और खुद दाना चुगने चली आती थी। सारे पक्षी कह उठे।

सीख:- जो उपदेशक अपने को नियंत्रण में नहीं रख सकते, उनका हाल चिड़िया की तरह ही होता है

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