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दीपावली का उत्साह

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कक्षा से निकलकर नरेश मैदान में आया। वहां झुंड में उसके दोस्त खड़े हैं। वह उनके पास पहुंचा। उसे देखते ही रमेश हंसते हुए बोला- आओ यार, तुम्हारी ही कमी थी। नरेश ने कारण पूछा, तो वह हंसते हुए बोला- कल से दीपावली अवकाश है। फिर हम दीपावली पश्चात ही मिलेंगे। यहां हम सभी दीपावली पर किसकी क्या पसंद है और वह क्या लाएगा पर, एक-दूसरे के विचार जान रहे हैं। अपने ग्रुप में बहुत से पटाखों के दीवाने हैं और जो भी हैं, उनकी पसंद अलग-अलग है। तुम्हारी पसंद के बारे में बतलाओ।

वह हंसते हुए बोला- मेरी पसंद तो कुछ नहीं है, जो मम्मी-पापा दिलवाएंगे, वह मेरी पसंद होगी। यह सुन सभी हंस दिए। रमेश मजाकिया अंदाज में बोला- सुदीप, सचमुच तुम मम्मी-पापा के आज्ञाकारी सपूत हो। जो मम्मी-पापा कहेंगे या करेंगे, तुम्हें मंजूर होगा, तुम जैसे पुत्र को पाकर मम्मी-पापा धन्य हो गए। भगवान ऐसे सपूत सभी को दें।

यह सुन नरेश वहां से चल दिया। सभी हंस दिए। शाम को वह घर पहुंचा। मम्मी हंसते हुए बोली- बेटे, जल्दी स्कूल ड्रेस खोलकर दूसरी ड्रेस पहन लो। तुम्हारे पापा आते ही होंगे। हमें खरीदी के लिए बाजार चलना है।


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नरेश फिर भी खड़ा रहा तो मम्मी बोली- बेटे, क्या बात है? तबीयत ठीक नहीं है? वह नहीं में सिर हिलाकर चला गया। कमरे में पहुंचकर हाथ-मुंह धोकर वह पलंग पर बैठ गया। मन में उथल-पुथल मची है। बार-बार रमेश का चेहरा आंखों में घूम रहा था जैसे वह मुंह बनाकर उसे चिढ़ा रहा है। उसने आंख बंद कर ली। थोड़े समय बाद पापा आए। वे तैयार हुए, मम्मी उसे बुलाने आई। उसने इंकार कर दिया।

उन्होंने कारण पूछा तो वह गुस्से में बोला- मुझे अकेला छोड़ दीजिए। आप और पापा बाजार हो आइए। वे चली गईं। वापस लौटीं। पापा भी साथ आए। उसके करीब पहुंचकर सिर पर हाथ फेरते हुए बोले- बेटे, क्या बात है? हमारे साथ चलने में तुम्हें एतराज क्यों है? बाजार में जो तुम्हारी पसंद होगी, हम दिलवाएंगे। देर हो रही है चलो उठो।

नरेश फिर भी नहीं उठा। उन्होंने देखा, उसकी आंखों में आंसू हैं। उसे सहलाते हुए मम्मी बोली- बेटे, दीपावली, जिसे लेकर बच्चों से लेकर बड़ों तक में उत्साह और उमंग रहती है और तुम्हारी आंखों में उत्साह और उमंग के बजाए अश्रुधारा बह रही है। सुनो, जो भी तुम्हारे मन में उसे उगल दो। अगर मन की बात मन में ही रखोगे तो तुम परेशान होगे। साथ ही हमें भी परेशानी होगी। और हम दीपावली नहीं मना पाएंगे।

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पापा बोले- हां, बेटे, तुम्हारी मम्मी सच कह रही हैं। अगर तुम चुप रहोगे, तो हम बाजार नहीं जाएंगे। अरे, जब बेटा ही उदास रहे तो हमारे लिए त्योहार का क्या महत्व...?

नरेश मम्मी से चिपट गया और रमेश की सारी बात बतलाई। पापा हंसते हुए बोले- बेटे, किसी के कहने-सुनने पर बिना सोचे-विचारे इस तरह के निर्णय लेना अच्छा नहीं है। अरे रमेश की बात का जवाब तुम्हें इस तरह देना चाहिए था कि- हां, मैं अपने मम्मी-पापा का आज्ञाकारी पुत्र हूं। अरे मेरे मम्मी-पापा मेरे कहने से पहले ही मेरे लिए सब कुछ ले आते हैं कि मुझे कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ती है।

सुनो, आगे से कोई कुछ भी कहे उसे मन में नहीं रखना। हम इस तरह बात को मन में रख लेते हैं, और किसी से नहीं कहते हैं तो मन ही मन में घुटते रहते हैं और यही घुटन एक दिन जानलेवा बीमारी भी बन सकती है। यह तो अच्छा हुआ कि तुमने घुटन को बाहर कर दिया। अब तुम और तुम्हारे साथ हम भी दीपावली अच्छी तरह से मना पाएंगे।

यह सुन नरेश हंसते हुए बोला- पापा, सचमुच आपने इतनी अच्छी बात बतलाकर बहुत बड़ी सीख दी है। इसे जीवन भर याद रखूंगा। यह जीवन भर मेरे मन में अखंड ज्योत बनकर जलती रहेगी। मम्मी ने उसका मुंह चूम लिया और वे बाजार के लिए रवाना हो गए


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