किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पर एक बंदर रहता था। उस पेड़ पर बड़े मीठे-रसीले फल लगते थे। बंदर उन्हें भर पेट खाता और मौज उड़ाता। वह अकेला ही मजे से दिन गुजार रहा था।
एक दिन एक मगर नदी से निकलकर उस पेड़ के तले आया जिस पर बंदर रहता था। पेड़ पर से बंदर ने पूछा, ‘‘तू कौन है, भाई ?’’
मगर ने ऊपर बंदर की ओर देखकर कहा, ‘‘मैं मगर हूं। बड़ी दूर से आया हूं। खाने की तलाश में यों ही घूम रहा हूं।’’
बन्दर ने कहा, ‘‘यहां पर खाने की कोई कमी नहीं है। इस पेड़ पर ढेरों फल लगते हैं। चखकर देखो। अच्छे लगे तो और दूंगा। जितने जी चाहे खाओ।’’ यह कहकर बन्दर ने कुछ फल तोड़कर मगर की ओर फेंक दिए।
मगर ने उन्हें चखकर कहा, ‘‘वाह, यह तो बड़े मजेदार फल हैं।’’
बन्दर ने और भी ढेर से फल गिरा दिए। मगर उन्हें भी चट कर गया और बोला, ‘‘कल फिर आऊंगा। फल खिलाओगे ?’’
बन्दर ने कहा, ‘‘क्यों नहीं ? तुम मेरे मेहमान हो। रोज आओ और जितने जी चाहे खाओ।’’
मगर अगले दिन आने का वादा करके चला गया।
क्या हुआ दूसरे दिन?