चिंटू अपने पापा के साथ कॉलोनी में होली खेलने निकल रहा था तभी मम्मी और पापा में बहस शुरू हो गई।
मम्मी गुस्से से बोली- पहले गंवारों की तरह एक-दूसरे को बेदर्दी से रंग लगाओ, फिर घंटों शरीर पर साबुन लगाकर उसे साफ करना... यह कौन-सी बुद्धिमानी है? आप जाइए और हुड़दंगबाजी कीजिए, पर मैं चिंटू को नहीं जाने दूंगी...!'
पापा उन्हें समझाने का प्रयत्न कर थे किंतु मम्मी अपनी उसी बात पर जोर दिए जा रही थीं।
चिंटू हाथ में पिचकारी पकड़े, उदास गैलरी में खड़ा सोच रहा था... कॉलोनी के सारे लोग एक-दूसरे पर रंग डाल रहे हैं, गले मिल रहे हैं और मम्मी इसे गंवारों का त्योहार मान रही है। मम्मी को रंग नहीं खेलना हो तो वे न खेलें, पर मुझे तो पापा के साथ जाने दें...!