उछलू बंदर बहुत नटखट था। सुबह से शाम तक शैतानी और ऊधम बस उसका एक ही काम था।
कभी इस पेड़ से उस पेड़, तो कभी इस डाल से उस डाल कूदता रहता था। खूब मस्ती करता था दिन भर, परंतु दिमाग का वह बहुत तेज था।
उसे प्राकृतिक दृश्य बहुत अच्छे लगते थे। कल-कल बहती नदी के किनारे वह घंटों बैठा रहता, नीले जल को निहारता और उछलती हुई लहरों को देखकर खुश होता रहता। नदी के पीछे सुदूर पर्वतों को देखता और सोचता कितने सुंदर होते हैं पर्वत। उसे हरे भरे पेड़ अच्छे लगते, वह डालियों को निहारता और उस पर बैठे पक्षियों की आवाज सुनकर आनंदित होता रहता।