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मजेदार कहानी : उछलू बंदर की चित्रकारी

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हमें फॉलो करें बंदर की कहानी
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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

उछलू बंदर बहुत नटखट था। सुबह से शाम तक शैतानी और ऊधम बस उसका एक ही काम था।

कभी इस पेड़ से उस पेड़, तो कभी इस डाल से उस डाल कूदता रहता था। खूब मस्ती करता था दिन भर, परंतु दिमाग का वह बहुत तेज था।

उसे प्राकृतिक दृश्य बहुत अच्छे लगते थे। कल-कल बहती नदी के किनारे वह घंटों बैठा रहता, नीले जल को निहारता और उछलती हुई लहरों को देखकर खुश होता रहता। नदी के पीछे सुदूर पर्वतों को देखता और सोचता कितने सुंदर होते हैं पर्वत। उसे हरे भरे पेड़ अच्छे लगते, वह डालियों को निहारता और उस पर बैठे पक्षियों की आवाज सुनकर आनंदित होता रहता।

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उछलू सोचता, काश उसके पास कागज और रंग होते तो वह लकड़ी की कूची बनाकर सुंदर चित्रकारी करता। नदी बनाता उसमें तैरने वाले डोंगे बनाता और बतखों को कागज पर उतार देता। नीले आकाश के तारों को भी जमीन पर लाकर कागज पर उतारने की इच्छा हो आती। पर क्या करता, रंग कागज कुछ भी तो नहीं था उसके पास। नदी किनारे रेत से खेलता उदास बैठा रहता।

एक दिन वह पास की बस्ती की एक दुकान में गया और दुकानदार से कुछ कागज और रंग मांगे।
दुकानदार बहुत उदार था उसने चित्रकारी का सब सामान उछलू को दे दिया। उछलू ने दुकानदार को भरोसा दिलाया कि जैसे ही चित्रकारी के पैसे मिलेंगे, वह उधारी चुका देगा। उसकी योजना थी कि वह अपने सब मित्रों के चित्र बनाएगा और उन्हें बेचकर पैसे कमाएगा।

सबसे पहले उछलू ने नदी का चित्र बनाया, पानी बनाया उछलती हुईं लहरें बनाईं और तैरती हुई नाव बनाई। नदी के पीछे वाले हरे भरे वृक्षों से लदे पहाड़ बनाए। उसकी चित्रकारी की बात बहुत जल्दी जंगल में आग की तरह चारों तरफ फैल गई कि उछलू बहुत अच्छी चित्रकारी करता है।

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एक दिन गिल्लो गिलहरी उसके पास आई और कहने लगी 'उछलू भैया, उछलू भैया मेरा चित्र बना दो न।'
'चल हट आइने में अपना मुंह देखा है कभी, चित्र तो सुंदर लोगों का बनाया जाता है।' उछलू ने चिढ़ते हुए जबाब दिया।

'भैया मैं भी तो सुंदर हूं, चिकना शरीर सुंदर प्यारी पूंछ और कैसी होती है सुंदरता?' गिल्लो इठलाकर बोली।
'ठीक है आजा, परंतु चित्र बनवाने के दस रुपए लगेंगे।'
'क्या? किंतु मैं पैसे कहां से लाऊंगी?'
'ले आना किसी आदमी के घर से, पास में बहुत से घर हैं।'
'ठीक है तुम चित्र बनाओ मैं रुपए लाकर दूंगी।'

जब चित्र बन गया तो उसे देखकर गिलहरी बहुत खुश हुई और बस्ती के एक घर में घुसी और घर मालिक के पेंट की जेब से एक दस का नोट ले आई और उछलू को दे दिया।

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अब तो जंगल के दूसरे जानवरों में भी उछलू से अपने-अपने चित्र बनवाने की होड़ लग गई।
सरकू शेर दौड़ता हुआ आया और बोला- मैं जंगल का राजा हूं, मेरा चित्र बहुत सुंदर और अच्छा बनना चाहिए उछलू।'
'क्यों नहीं राजा साहब आपका चित्र तो मैं ऐसा बनाऊंगा कि दुनिया वाह-वाह कर उठेगी परंतु.......।'
'परंतु क्या उछलू' - शेर ने पूछा।
'फीस कुछ ज्यादा लगेगी' - उछलू इठलाकर बोला।
'अबे कितनी लगेगी? मैं इस जंगल का राजा हूं जो मांगोगे दूंगा।' शेर ने थोड़ा अकड़ते हुए जबाब दिया।

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'महाराज सौ रुपए ठीक रहेंगे क्योंकि आप राजा हैं और इससे कम लेने पर आपके पद और कद का अपमान होगा, स्टेटस सिंबल भी तो कोई चीज है।'
अरे बिल्कुल उछलू भाई, सौ क्या मैं दो सौ दूंगा, आखिर राजा हूं मुझे पैसे की क्या कमी।' शेर अपनी तारीफ सुनकर गदगद हो गया था और अकड़कर सीधा बैठ गया। उछलू ने बहुत शानदार चित्र सरकू शेर का बना दिया।

शेर पास के ही एक घर में दहाड़ता हुआ घुसा और घर मालिक का कुर्ता उठा लाया, उसमें से दो सौ रुपए निकाले और कुर्ता वहीं छोड़ दिया। उछलू अपने नाम के अनुरूप जोर से उछलने-कूदने लगा। उसने चित्र बनाने के भाव भी बढ़ा दिए।

सरकू ने जब दो सौ रुपये दिए हैं, तो अब मैं छोटे जानवरों से सौ और बड़े जानवरों से डेढ़ सौ रुपए लूंगा।
सुबह से शाम तक वह चित्र बनाता और अपना मेहनताना वसूलता और एक पेड़ की खोह में रखता जाता।

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अब तो उछलू मालामाल हो गया। उसको अपने धन की रखवाली करना पड़ती। जहां दूसरे बंदर उछलते-कूदते कहीं भी घूमते रहते, उछलू बंधुआ होकर रह गया। उसे डर लगा रहता कि कोई उसके रुपए न चुरा ले जाए। उसने सोचा अब वह धनवान हो ही गया है कोई भी बंदरिया उससे खुशी-खुशी विवाह कर लेगी और धन की रखवाली भी कर लेगी। वह ठाठ से रहेगा।

पास में बिंदो बंदरिया रहती थी। वह बहुत सुंदर थी और मिलनसार भी थी। उछलू सीधा उसके पास गया और शादी का प्रस्ताव उसके सामने रखा 'बिंदो,बिंदो क्या तुम मुझसे शादी करोगी?'
देखो! मैं जंगल का सबसे धनवान जानवर हूं, मेरे पास बहुत सारे रुपए हैं, मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूंगा। देश-विदेश कि सैर कराऊंगा।'
'शादी और तुमसे, बिंदो ने मुंह फेर लिया। तुम जैसे धन जोड़ू से कौन शादी करेगा।'

बिंदो का रूखा, टके-सा जबाब सुनकर उछलू को बड़ा ताज्जुब हुआ।

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'मत कर, मुझे कमी है क्या' ऐसा कहकर वह बुक्की बंदरिया के पास जा पहुंचा' बुक्की-बुक्की तुम मेरे साथ शादी कर लो, मजे में रहोगी, मेरे पास इतना पैसा है कि तुम जो चाहोगी मैं तुम्हारे कदमों में डाल दूंगा, खूब सारे गहने बनवा दूंगा।'
'क्या मुझे पागल कुत्ते ने काटा है, जो तुझ जैसे आदमी के गुणों वाले बंदर से शादी कर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लूंगी। चल हट यहां से और कहीं ठिकाना देख।'

उछलू फिर भी निराश नहीं हुआ। उसे विश्वास था कि उसके पास बहुत सारा धन होने के कारण कई सुंदर और जवान बंदरियां शादी करने को तैयारा हो जाएंगी।





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वह दौडता हुआ बकली बंदरिया के पास जा पहुंचा। बकली पेड़ की शाखा पर आराम कर रही थी। उसने नीचे से ही आवाज लगाई' - बकली, मैं तुम्हारे पास बहुत ही जरूरी काम से आया हूं, जरा नीचे तो आओ।'
'अभी तो मैं आराम कर रही हूं, कल आना।' बकली ने अंगड़ाई लेते हुए जबाब दिया।

'बकली सोच ले, मैं तेरे पास अपनी शादी का प्रस्ताव लेकर आया हूं, मौज करेगी। एक बार हां बोल दे बस देख फिर मैं तेरे लिए आसमान से तारे भी तोड़कर ला सकता हूं, चल मेरे साथ देख कितने सारे रुपए मैंने खोह में जमा करके रखे हैं।'

बकली उसके साथ चल पड़ी। एक पेड़ की खोह में उछलू ने खूब सारे पैसे एकत्रित करके रखे थे। बकली जोर से हंसने लगी।' अरे पागल हम बंदरों का इन पैसों से क्या काम, भगवान ने हमें इतने सुंदर हरे-भरे वृक्ष रहने को दिए हैं इनमें मीठे मीठे फल लगे हैं, धरती-सा हरा-भरा बिछौना है, ऊपर नीले आकाश की चादर है, फिर इन पैसों का तू क्या करेगा।


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क्या तू आदमी बन गया है? पैसे तो इंसान ही जोड़ते हैं और जोड़ते-जोड़ते मर जाते हैं। हम ओ बंदर, मस्त कलंदर हैं, सारे जंगल में विचरते हैं, जहां फल मिल गए खा लिए, जहां जल मिल गया पी लिया। तुमने तो बंदर धर्म छोड़कर आदमियत अपना ली है। फेंक दो यह रुपए, मैं अभी तुमसे शादी कर लेती हूं।

इतने में बिंदो और बुक्की भी वहां आ गईं। तीनों ने बंदर के गले में हाथ डाल दिए।

उछलू घबरा गया, खोह में घुसा और सारा धन निकाल कर बाहर फेंकने लगा। तीनों बंदरियों ने वह सारा धन उठाकर दूर सड़क पर फेंक दिया। अब उचलू से विवाह करने के लिए तीनों बंदरियां तैयार थीं। आजकल‌ उछलू चित्र तो बनाता है, किंतु बिल्कुल मुफ्त में।

(समाप्त)

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