सल्लूभाई के ठाठ निराले हैं, पढ़ते तो नर्सरी कक्षा में हैं किंतु उनके हाव भाव से लगता है कि जैसे किसी बड़े महाविद्यालय के विद्यार्थी हो। पहले तो शाला जाने में ही अपने मम्मी-पापा को बहुत तंग करते हैं, फिर लंच बाक्स में रखने के लिए रोज नए-नए पकवानों की फरमाइश होती है। कभी कहेंगे आलू परांठा बना दो, कभी कहेंगे आज मटर-पनीर की सब्जी लेकर ही जाएंगे..., तो कभी डोसे की फरमाइश कर बैठते हैं।
मम्मी डोसा बना देतीं हैं तो कहते हैं इसमें मसाला कहां है, मैं तो मसाला डोसा ही लेकर जाऊंगा। बस दरवाजे पर आकर कम से कम तीन हार्न बजाती है, तब सल्लूभाई बस की ओर धीरे-धीरे बढ़ते हैं।
वैसे भी शाला में वे पढ़ाई कम और शैतानी ही ज्यादा करते हैं। उनका पूरा नाम शालिग्राम है परंतु दादा-दादी ने जो सल्लू कहकर श्रीगणेश किया तो लोग शालिग्राम भूल ही गए।
उनकी दो बहने भी हैं, दोनों बड़ीं हैं। टिमकी और लटकी उनके घर के नाम हैं। यह दोनों भी शैतानी में मास्टर हैं और धमाचौकड़ी की डॉक्टर हैं, यदि कोई शैतानी की प्रतियोगिता हो तो निश्चित ही दोनों को स्वर्ण पदक प्राप्त हो जाए।