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बाल कहानी : अपशगुन

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kids Story in Hindi
 

दोनों खुशी से फूले नहीं समां रहे थे। घर के लोग उन्हें घेर कर बैठे थे। 'अब तो भैया इंजीनियर बन के ही आएंगे, ये गए और वो वापस आएं, जाने भर की देर है, इंटरव्यू में सिलेक्शन पक्का ही समझो। 
 
'बीना खुशी से चहक-चहक कर हाथ मटका-मटकाकर कर अपने भाई शशांक की तारीफ के पुल बांध रही थी। इधर आकाश की छोटी बहन भी इठला-इठला कर आकाश को नौकरी मिलने की गारंटी के दावे ठोक रही थी। खुशनुमा माहौल था और बच्चे शोर कर रहे थे।


शशांक और आकाश चचेरे भाई थे। दोनों ने एक साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। दोनों प्रथम श्रेणी में पास हुए थे। दोनों का सौभाग्य था की दोनों को एक ही कंपनी के लिए कॉल लेटर आया था। दो दिन बाद इंटरव्यू था, इंदौर जाना था इसलिए पैसेंजर ट्रैन से दोनों ने आरक्षण करा लिया था। बस सोते-सोते जाना था और दूसरे दिन इंटरव्यू देकर तीसरे दिन निकलकर चौथे दिन वापस आ जाना था। 
 
आकाश और शशांक दोनों के पिता की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी। फिर भी अपना पेट काटकर यथा शक्ति दोनों की आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहे थे। यथा समय इंदौर की ट्रेन पकड़ने के लिए दोनों घर से निकलें। स्टेशन पास ही था इसलिए पैदल ही दोनों चल पड़े। पिताओं ने आशीर्वाद दिया और माताओं ने दुआएं दीं। बहनों ने उम्मीद की किरणों से स्वयं को सरोबार कर लिया। शशांक एवं आकाश तेजी से बढ़े जा रहे थे कि एक बिल्ली ने दोनों का रास्ता काट दिया। शशांक ठिठककर खड़ा हो गया।
 
'अपशगुन हो गया यार' वह दहशत भरे स्वर में बोला। 
 
'कैसा अपशगुन 'आकाश ने पूछा।
 
'बिल्ली ने रास्ता काट दिया और वह भी काली बिल्ली ने। इंटरव्यू में जाना बेकार ही है, सिलेक्शन नहीं होगा।'
 
'यह क्या बकवास लगा रखी है। बिल्ली के रास्ता काटने से क्या होता है। जानवर है यह संयोग ही था कि हम निकलें और वह रास्ता पार कर गई। 'नहीं यार, बड़ा अपशगुन होता है, काली बिल्ली के रास्ता काटने से। मैं तो घर वापस जाता हूं, नहीं जाता इंटरव्यू में, पता नहीं क्या अनहोनी हो जाए । तुम भी वापस चलो।' शशांक बोला। 
 
'पागल हो गए हो क्या? अरे ऐसे अवसर बार-बार नहीं आते। तीन सौ जगहें खाली हैं। निश्चित ही हमारा सिलेक्शन हो जाएगा। फिर हम तो टॉपर हैं, मैरिट लिस्ट वाले। चलो बिल्ली-विल्ली के रास्ता काटने से कुछ नहीं होता। फिर हम तो पढ़े-लिखे लोग हैं, कहां इन पोंगा पंथों में पड़े हो। 'आकाश बोला। 
 
'यार मैं तो नहीं जाऊंगा, मेरी बाईं आंख भी फड़क रही है। लगता है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है। 'शशांक ने उदास होकर जबाब दिया। 
 
आकाश ने लाख मनाया,चिरौरी की लेकिन शशांक ने तो जैसे जिद ही पकड़ ली और वह घर लौट गया। आकाश को अकेले ही जाना पड़ा।
 
शशांक ने जब बिल्ली वाली बात घर पर बताई तो उसकी मां ने कहा 'ठीक किया बेटा नहीं गए, पता नहीं क्या घटना हो जाती। 
      
आकाश जा चुका था अकेले ही, दृढ विश्वास के साथ। शशांक सोच रहा था कोई अशुभ समाचार आकाश के बारे में आता ही होगा। टी.वी. में समाचार देखने बैठ गया। फिर सोचने लगा और प्रतीक्षा करने लगा कि इंदौर ट्रैन की दुर्घटना की खबर आती ही होगी। सिटी बस या ऑटो या टेम्पो की दुर्घटना भी उसके जेहन में मचल रही थी। लेकिन सब वहम था उसका, कोई समाचार नहीं आया बल्कि चौथे दिन चहकता हुआ आकाश ही देवदूत-सा प्रकट हो गया। 
 
'ढ ना ना, नौकरी मिल गई। पचास हजार रुपए महीने की।' आकाश आते चहक उठा था।
 
'सच' शशांक चीख पड़ा।
 
'हां हां सौ प्रतिशत सच, तीन सौ पद थे, दो सौ अस्सी ही साक्षात्कार देने आएं, सबको ले लिया गया।' आकाश मस्ती में उछल रहा था। उसने आदेश निकल कर शशांक के सामने रख दिया। 
 
शशांक का बुरा हाल था, नहीं, नहीं, यह फर्जी होगा वह सोचने लगा। खिसियानी बिल्ली खम्भा नौचे की अवस्था में आ गया था शशांक। अब वह सोच रहा था बिल्ली-विल्ली का रास्ता काटना बेकार की बातें हैं, इसमें न कोई अपशगुन होता है न नुकसान, लेकिन अब क्या ! जो होना था हो चुका। आगे के लिए वह सतर्क हो गया था। 
 
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