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रंगबिरंगी चटपटी कहानी : होली पर अमृत वर्षा

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-  डॉ. हरिकृष्ण देवसरे 



 
पिताजी को होली पर इस बार बच्चों, किशोरों और युवकों पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था, इसीलिए हमारे इलाके की नई पीढ़ी को बुलाकर उन्होंने कहा था- 'भई ! इस बार होली जरा धूमधाम से मने।' और उन्होंने इसके लिए अच्छी आर्थिक मदद भी दी ताकि लाउडस्पीकर वगैरा का इंतजाम हो सके और कार्यक्रम के बाद छोटे डिब्बों में चार-चार लड्डू भी बांटे जाएं।  
 
बात दरअसल यह थी कि होली के बाद चुनाव के पर्चे भरे जाने थे। नेताजी को टिकट मिलने वाला था। इन दिनों वह महसूस कर रहे थे कि अब युवा शक्ति का जमाना है। चुनाव जीतना है तो बच्चों की उंगली पकड़कर चलने में ही भलाई है। बूढ़ी पीढ़ी को अब आराम करने दो। 
 
होलिका दहन की तैयारी, इलाके की चौक में पूरी हो चुकी थी। अगली सुबह रंग गुलाल का कार्यक्रम भी यहीं होने वाला था। अपने कुछ युवा समर्थकों के साथ नेताजी आए। होलिका दहन हुआ। फिर उनका भाषण हुआ। अंत में उन्होंने कहा- 'मैं आप सबको होली की बधाई देता हूं। मैं क्षमा चाहूंगा कि कल सुबह मैं रंग खेलने के लिए पहले उपस्थित न हो सकूंगा। 

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कारण यह है कि सुबह मुख्यमंत्री निवास पर होली होगी और इस मौके के लिए मैंने जो खास सफेद कुर्ता-पायजामा सिलवाया है, उस पर मैं चाहता हूं कि पहली पिचकारी का रंग माननीय मुख्यमंत्री जी ही डालें।' नेताजी के यह कहने पर 'नो..नो' की आवाजें आने लगीं। 
 
इलाके के एक पुराने नेता ने आकर माइक पर हाथ रखा और नेताजी से बोले- 'यह क्या अनर्थ कर रहे हैं ! जिनसे आपको वोट लेना है उनकी उपेक्षा कर, आप मुख्यमंत्री के यहां पहले जाएंगे ? इसका क्या अंजाम होगा, आपने सोचा है ? 
 
 
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'नेताजी ने यह कहते हुए उन बुजुर्ग नेता को एक तरफ हटा दिया- 'यह युवा राजनीति है आप नहीं समझेंगे। अरे हम तो एम.एल.ए. और मंत्री पद दोनों की शपथ एक साथ लेंगे।' फिर माइक पर आकर बोले- 'अच्छा भाई, मुख्यमंत्री जी के यहां जाने से पांच मिनट पहले मैं आऊंगा पर शर्त यह है कि रंग कोई न डाले। सिर्फ गुलाल। पहले ड्राई होली, फिर गीली होली...।'  
 
इस घोषणा पर समर्थकों ने खूब तालियां बजाईं। अगली सुबह चौक पर रंग गुलाल तैयार था। लेकिन लोगों को सख्त हिदायत थी कि कोई नेताजी पर रंग न डाले। अभी उनके माथे पर गुलाल का पहला टीका लगा ही था कि एक बच्चे ने सुई से नेताजी पर पिचकारी दाग दी और भीड़ में ये गया...वो... गया। सब कुछ अचानक ऐसे हुआ कि नेताजी हक्का-बक्का रह गए। उनके साथ आए बाहुबली भी एक्शन में आते, तब तक नेताजी पर चोखा लाल रंग डालने वाला बच्चा गायब हो चुका था। 
 
सारा वातावरण स्तब्ध था। और वही हुआ। नेताजी के मुखारबिंदु से जो अमृतवाणी की वर्षा हुई वह देर तक उस चौक के गगन-मंडल पर मंडराती रही। इलाके के बड़े-छोटे, सभी लोगों ने नेताजी को घेर लिया। सब उन्हें शांत कर रहे थे। समर्थकों को आने वाले चुनावों की चिंता थी। किसी तरह एक कुर्सी पर नेताजी बैठे। उन्हें सलाह दी गई कि गुस्सा शांत होने पर, अच्छे मूड में मुख्यमंत्री निवास जाएं। तब तक गुझिया, मिठाई और चाय से उन्हें लोग बहलाने लगे।
 
करीब पौन घंटा बीत गया। धूप में बैठे नेताजी के कुर्ते पायजामे पर पड़ा लाल रंग, उसमें मिलाए गए केमिकल के कारण उड़ता जा रहा था। जब नेताजी का ध्यान उस ओर गया तो भौंचक रह गए। कुछ ही देर में कुर्ता-पायजामा पहले जैसे सफेद दिखने लगे। नेताजी के चेहरे पर मुश्किल से मुस्कराहट आई। वह जाकर गाड़ी में बैठ गए। जाते-जाते यह आश्वासन भी दे गए कि मैं लौटकर होली खेलने आ रहा हूं। नेताजी चले गए। लोगों ने जमकर होली खेली। दोपहर होते-होते सब घर चले गए। जब नेताजी की कार आई तो चौक खाली पड़ी थी। जहां-तहां रंग का गंदा पानी और गुलाल बिखरा हुआ था। 
 
नेताजी कार से बाहर आए। आंखों पर लगे धूप के इंपोर्टेड चश्मे से इधर-उधर देखने लगे कि होली खेलने वाले किधर हैं ? किंतु वहां जगह-जगह बिखरा रंग-गुलाल, नेताजी को वैसे ही मुंह चिढ़ा रहे थे जैसे बूथ लूटने के बाद फटे हुए पोस्टर, बैलट पेपर, और मत-पेटियां मुंह चिढ़ाते हैं। 
 
नेताजी खिसियाए से पलटे और कार में बैठते हुए ड्राइवर से बोले-'चलो ! जल्दी चलो यहां से।' ड्राइवर ने भी गाड़ी तेज रफ्तार से भगाई। उसने यह भी न देखा कि आगे रंगों वाला गंदा पानी जमा है। कार ने उस पर से गुजर कर सारा पानी इतनी जोर से उछला कि कार के साथ-साथ, अंदर बैठे नेता जी भी पानी-पानी हो गए। जैसे जाते-जाते वह पानी कह गया हो कि आपने जो अमृत वर्षा की थी उसका कुछ प्रसाद तो लेते जाइए। 

 

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