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कहानी : अहंकारी व्यापारी और बुद्ध

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एक बार मगध के व्यापारी को व्यापार में बहुत लाभ हुआ, अपार धन-संपत्ति पाकर उसका मन अहंकार से भर गया। उसके बाद से वह अपने अधीनस्थों से अहंकारपूर्ण व्यवहार करने लगा।



व्यापारी का अहंकार इतना प्रबल था कि उसको देखते हुए उसके परिवार वाले भी अहंकार के वशीभूत हो गए। किंतु जब सभी के अहंकार आपस में टकराने लगे तो घर का वातावरण नरक की तरह हो गया।
 
वह व्यापारी दुःखी होकर एक दिन भगवान बुद्ध के पास पहुंचा और याचना करके बोला - भगवन्! मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाइए। मैं भी भिक्षु बनना चाहता हूं।
 
भगवान बुद्ध ने गंभीर स्वर में कहा- अभी तुम्हारे भिक्षु बनने का समय नहीं आया है। 
 
बुद्ध ने कहा- भिक्षु को पलायनवादी नहीं होना चाहिए। जैसे व्यवहार की अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो, स्वयं भी दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो। ऐसा करने से तुम्हारा घर मंदिर बन जाएगा।
 
घर जाकर उस व्यापारी ने भगवान बुद्ध की सीख को अपनाया और घर का वातावरण स्वतः बदल गया। अब सब अपने-अपने अहंकार को भूलकर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहने लगे। शीघ्र ही घर के दूषित वातावरण में नया उल्लास छा गया। 
 
सीख : कभी भी अपने अहं के घमंड में दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करो, जो तुम्हें स्वयं के लिए पसंद न हो। 

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