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कहानी: कल्पना की रस्सी

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एक बार कि बात है एक व्यापारी था, उसके पास तीन ऊँट थे जिन्हें लेकर वो शहर-शहर घूमता और कारोबार करता था। एक बार कही जाते हुए रात हो गयी तो उसने सोचा आराम करने के लिए मैं इस सराय में रुक जाता हूं और सराय के बाहर ही अपने ऊँटो ने को बांध देता हूं, व्यापारी अपने ऊँटो को बांधने लगा। दो ऊँटो को उसने बांध दिया लेकिन जब तीसरे ऊँट को बांधने लगा तो उसकी रस्सी खत्म हो गई। तभी उधर से एक फकीर निकल रहे थे उन्होंने व्यापारी को परेशान देखा तो उससे पूछा: क्या हुआ? परेशान देख रहे हो? मुझे बताओ क्या परेशानी है शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकु!
 
व्यापारी ने कहा: हा बाबा, मैं पूरा दिन घूमते हुए थक गया हूं। अब मुझे सराय के अंदर जाकर आराम करना है लेकिन इस तीसरें ऊँट को बांधने के लिए मेरी रस्सी कम पड़ गयी है।
   
फ़कीर ने जब व्यापारी की समस्या सुनी तो वह बड़े जोर जोर से हंसने लगा और उसने व्यापारी को कहा: इस तीसरे ऊँट को भी ठीक उसी तरह से बांध दो जैसे तुमने बाकि 2 ऊँटो को बांधा है।
 
फकीर की यह बात सुनकर व्यापारी थोड़ा हैरान हुआ और बोला लेकिन रस्सी ही तो खत्म हो गई है।
इस पर फ़कीर ने कहा: हां तो मैने कब कहा कि इसे रस्सी से बांधो, तुम तो इस तीसरे ऊँट को कल्पना की रस्सी से ही बांध दों।
 
व्यापारी ने ऐसा ही किया और उसने ऊँट के गले में काल्पनिक रस्सी का फंदा डालने जैसा नाटक किया और उसका दूसरा सिरा पेड़ से बांध दिया। जैसे ही उसने यह अभीनय किया, तीसरा ऊँट बड़े आराम से बैठ गया। 
 
व्यापारी ने सराय के अंदर जाकर बड़े आराम से नींद ली और सुबह उठकर वापस जाने के लिए ऊँटो को खोला तो सारे ऊँट खड़े हो गये और चलने को तैयार हो गया लेकिन तीसरा ऊँट नहीं उठ रहा था। इस पर गुस्से में आकर व्यापारी उसे मारने लगा, लेकिन फिर भी ऊँट नहीं उठा इतने में वही फ़कीर वहा आया, और बोला अरे इस बेजुबान को क्यों मार रहे हो?
 
कल ये बैठ नहीं रहा था तो तुम परेशान थे और आज जब ये आराम से बैठा है तो भी तुमको परेशानी है! इस पर व्यापारी ने कहा पर महाराज मुझे जाना है। मुझे देर हो रही है और ये है कि उठ ही नहीं रहा है।
 
फ़कीर ने कहा: अरे भाई कल इसे बांधा था अब आज इसे खोलोगे तभी उठेगा न...
इस पर व्यापारी ने कहा:  मैंने कौनसा इसे सच में बाँधा था, मेने तो केवल बंधने का नाटक किया था।
अब फ़कीर कहा: कल जैसे तुमने इसे बाँधने का नाटक किया था वैसे ही अब आज इसे खोलने का भी नाटक करों।

व्यापारी ने ऐसी ही किया और ऊँट पलभर में ऊंट खड़ा हुआ।

अब फ़कीर ने पते की बात बोली: जिस तरह ये ऊंट अदृश्य रस्सियों से बंधा था, उसी तरह लोग भी पुरानी रीती रिवाजों से बंधे रहते है, ऐसे कुछ नियम है जिनके होने की उन्हें वजह तक पता नहीं होती, लेकिन लोग फिर भी लोग खुद भी उनसे बंधे रहते है और दूसरो को भी बांधना चाहते है और आगे बढ़ना नहीं चाहते, जबकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और इसलिए हमे रुढियों के विषय में ना सोचकर अपनी और अपने अपनों की खुशियों के बारें में सोचना चाहिए।
 

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