Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बाल कहानी : पौधा तुलसी का...

हमें फॉलो करें बाल कहानी : पौधा तुलसी का...
- पद्मा चौगांवकर
 
पन्द्रह दिन विद्यालय खुले हो गए थे, पर अभी सब बच्चों के पास पुस्तकें नहीं आ पाई थीं इसलिए विषयों के पाठ पढ़ाना मुश्किल था। जल्दी ही पुस्तकें आने की आशा थी। प्रधान शिक्षिका अनामिका और दूसरी शिक्षिकाएं बच्चों को सहज जीवन और अनुशासन के महत्व के पाठ पढ़ाने लगीं। उन्होंने गणित और विज्ञान विषयों की बेसिक बातें, दुहराने का काम कक्षाओं में शुरू किया। 
 
स्वयं कैसे स्वच्छ रहें, घर-बाहर और विद्यालय को कैसे स्वच्छ रखें, बच्चे इन दिनों सीख रहे थे। 
 
पर्यावरण प्रदूषण क्या है? बच्चे पर्यावरण संरक्षण में किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं, पर्यावरण स्वच्छ रखने में पेड़-पौधे किस प्रकार सहायक हैं, सारी बातें सामान्य ज्ञान के रूप में बच्चे सहज ही जान रहे थे। 
 
अनामिका ने बड़ी कक्षा के बच्चों को कई प्रकार के पेड़-पौधों की पहचान कराई। ये हमारे जीवन में किस प्रकार उपयोगी हैं।
 
उन्होंने बताया कि तुलसी का पौधा तो हर घर में होता है, इस प्रवेश द्वार पर लगाने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। उससे मिलने वाले लाभ भी उन्होंने बच्चों को बताए। 
 
स्वतंत्रता दिवस आने वाला था। पढ़ाई के साथ-साथ बच्चे और शिक्षक इस दिवस पर होने वाले आयोजनों की तैयारी में लग गए। पूरा सप्ताहभर कई कार्यक्रम जो थे। सफाई स्वच्‍छता, योग-व्यायाम, खेल-सांस्कृतिक प्रदर्शन सभी प्रकार की प्रतियोगिताएं होनी थीं। 
 
कक्षा 6 के लिए उनकी अध्यापिका ने एक अनोखी प्रतियोगिता का आयोजन किया। कक्षा के सभी विद्यार्थी किसी पात्र में मिट्टी भरकर एक पौधा रोपकर लाएंगे। एक सप्ताह का समय था और बच्चों में खासा उत्साह था। पौधे के साथ उस पौधे का नाम और उपयोगिता भी लिखनी थी। 
 
बच्चों के घरों में जैसे हलचल मच गई। बड़ों को भी तो बच्चों के कामों में सहयोग करना था और बच्चों की तरह विनय प्रतियोगिता में भाग ले रहा था। उसे चिंता थी- एक गमले की, एक अनोखे पौधे की।
 
विनय के पिताजी ने आश्वासन दिया कि वे जल्दी ही एक अच्छे पौधे और गमले की व्यवस्था कर देंगे। विनय खुश था, पर 2-3 दिन तो पिताजी की व्यस्तता में यूं ही बीत गए। रोज रात बैंक से लौटने में उन्हें देर हो जाती। विनय उनकी प्रतीक्षा करते-करते सो जाता। वह चाहता था कोई विशिष्ट पौधा छोटे से गमले में रोपकर ले जाए। मां से पूछकर 4 पंक्तियां उसके बारे में लिखे, पर पिताजी की व्यस्तता उसे निराश कर रही थी।
 
आखिरी दिन तो हद हो गई। सुबह उठते ही उसे खबर मिली कि पिताजी तो दौरे पर चले गए हैं। हताशा ने तो उसे रुला ही दिया। मां ने समझाया कि बीनू, इन दिनों पिताजी बहुत ही व्यस्त हैं। तुम्हारे लिए समय नहीं दे पाए, मैं कुछ करती हूं। 
 
तभी महरी माई आई और पूछा, बीनू क्यों रो रहा है? 
 
कारण जानकर वह बोली, अभी आई और घर से लौट गई।
 
बीनू की मां सोचने लगी कि घर पर हरियाली के नाम पर एक पौधा भी नहीं है, जो उठाकर इसे दे देती। सचमुच हमने वनस्पति के महत्व को कभी समझा ही नहीं। कम से कम एक-एक पौधारोपण करवाकर शिक्षिका, बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता का पाठ तो दे रही हैं।
 
...पर मैं क्या करूं? घर में बालिश्त भर का गमला नहीं। गोबर-मिट्टी भी नहीं। 
 
आज, अभी उसे पौधा लेकर जाना है।
 
दरवाजे पर आहट हुई। माई आ गई थी। उसके हाथ में मिट्टी का छोटा-सा तुलसी का घरा था। पीली मिट्टी से पुता, चून की रंगोली से सजा, छोटा सा गमला था। उसमें तुलसी का नन्हा-सा पौधा लगा था। ये तुम ले जाओ, मैं फिर बना लूंगी। 
 
वाह! बीनू, तुलसी का पौधा और इ‍तना सुंदर गमला। रमा दीदी ने हमें तुलसी के पौधे का महत्व भी बताया था। वह झट से एक कागज लाया। उसके टुकड़े पर उसने कविता की 4 पंक्तियां लिख दीं और अपना नाम भी-
 
'पवित्र पौधा तुलसी का,
सौ सौ गुण इसमें भरे। 
रोगों पर करता उपचार,
वायु प्रदूषण दूर करे।'

साभार - देवपुत्र 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

गांधी नाम का मोहरा