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रास्ते में विज्ञान है, बस्ते में विज्ञान है

बच्चा डॉट कॉम

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हम नन्हे विज्ञानी है
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सभी जगह विज्ञान है। रास्ते में विज्ञान है, बस्ते में विज्ञान है। पेंसिल-कॉपी, घर-चौबारे रस्ते में विज्ञान है। सभी जगह विज्ञान है। आज की दुनिया विज्ञानमय हो गई है। हम कदम-कदम पर विज्ञान का सामना करते हैं तो उसे जानना-समझना भी इतना ही जरूरी हो जाता है। ऐसे में सरल भाषा में विज्ञान के सहज सिद्धांत समझना-समझाना बहुत उपयोगी होता है। कारण यह है कि आज बच्चों के सामने बचपन से विज्ञान खड़ा होता है। चाहे वह टेलीविजन हो या चाबी का खिलौना हो, दूध हो, भोजन हो - सभी में विज्ञान है।

डॉ. मधु पंत ने सरल कविताओं के माध्यम से विज्ञान के बीज बचपन में ही रोपने का कुछ इस तरह प्रयास किया है कि वे भविष्य में उन्हें विज्ञान की दुनिया को समझने की कोशिश में सहायक बनें। विज्ञान के सिद्धांतों को विशेष रूप से कविता में समझाना बेहद चुनौती भरा काम होता है। फिर भी डॉ. मधु पंत ने इस कार्य को बखूबी निभाया है। कविताओं को सात खंडों में बाँटा गया है - "अगर कहीं मैं पानी होता" में पृथ्वी पर विविध रूपों में विद्यमान पानी से परिचय कराया गया है।

दूसरा खंड "गति" का है। पानी भी गति पाकर बहता है, हवा, रेल, मोटर सभी में गति है। इस गति को अलग-अलग तरह से बखूबी परिभाषित किया गया है। "सरल मशीन" खंड में जिस रहस्य को खोला गया है, वह है - "बिन पहिए के खिंचे न गाड़ी, जाए पीछे, नहीं अगाड़ी। पहिया घर्षण कम करता है, पहिए ने ये बात उघाड़ी। पहिए ने जो क्रांति मचाई, बड़ों-बड़ों के खीचें कान।" इसके अलावा "ऊर्जा", "अक्ल बड़ी या भैंस", "जलचक्र" कविताएँ भी हैं। कुल मिलाकर सभी कविताएँ विज्ञान के विविध सिद्धांतों की बड़ी ही सरल व्याख्या करती है।

विज्ञान की इन कविताओं को संगीतबद्ध कराकर स्कूलों में प्रचारित करना चाहिए। इससे बच्चों को ये कविताएँ खेल-खेल में याद हो जाएँगी। प्रकाशक : विज्ञान प्रसार, ए-५०, सेक्टर ६२, नोएडा।

'जंगल में ईमेल
'जंगल में ईमेल' यह एक अत्यन्त रोचक एवं सूचना प्रौद्योगिकी की सटीक जानकारी से पूर्ण पुस्तक है। बच्चों के लिए तो यह बेहद दिलचस्प किताब है। इसकी दुनिया का तानाबाना, बच्चों के लिए नया नहीं है। इसमें कवि राजेश जैन ने, जो स्वयं विज्ञान के अच्छे ज्ञाता हैं घर में, गली मोहल्ले, शहर आदि में आज की आम वस्तुओं को लेकर कविताएँ लिखी हैं और विज्ञान की आधुनिक टेक्नोलॉजी से परिचित कराया है।

"जंगल में जब से कंप्यूटर युग आया, भालू ने झाड़ी में साइबर कैफे लगाया", "वाशिंग मशीन", "नौकरानी बिजली रानी", आकाश में स्पीड ब्रेकर", "ऊर्जा का खाता", "समझदार स्वाति", "थर्मोस्टेट" और "टाइमर" आदि कविताएँ इस पुस्तक में हैं। इनमें विज्ञान की प्रक्रिया के साथ-साथ, इनके आधुनिक प्रयोग की भी चर्चा है। एक कविता है - "कहो, अच्छी हो तुम बिजली रानी, सारे काम करती हो, जैसे नौकरानी। स्विच दबाते ही झट आ जाती हो, यह बताओ तनखा कितनी पाती हो?"

राजेश जैन ने इन कविताओं में विभिन्न वस्तुओं के प्रयोग, उनकी उपयोगिता, वैज्ञानिक सिद्धांत आदि सभी बातें संकेत में कही हैं। दरअसल ये "फॉमूर्ले" बच्चों के दिलो-दिमाग में छा जाते हैं। 'पानी में टेंपरेचर' आते ही 'पावर कट' हो जाता है, क्योंकि इस काम के लिए गीजर जैसे उपकरणों में 'थर्मोस्टेट' लगाया जाता है।"

आज के बच्चों के लिए ऐसी ही कविताएँ और बाल साहित्य की जरूरत है। ये दो प्रयोग निस्संदेह प्रशंसनीय और अनुकरणीय हैं। ऐसी अधिक से अधिक कविताएबच्चों तक पहुँचनी चाहिए और नए कवियों को बालकविता लिखने की इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। 'जंगल में ईमेल' के प्रकाशक हैं - राष्ट्रीय प्रकाशन मंदिर, भोपाल।

(लेखक "पराग" के पूर्व संपादक और प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं)

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