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रंगमंच की दुनिया में चुनौतीपूर्ण कैरियर

अशोक सिंह

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ड्रामा या नाट्य विधा के प्रति युवाओं में हाल के वर्षों में तेजी से क्रेज बढ़ा है। ड्रामा को अत्यंत प्राचीन परफोर्मिंग आर्ट का भी दर्जा दिया जा सकता है। आदिकाल से आज तक इसका सिर्फ स्वरूप ही बदला है लेकिन अदायगी और अभिनय में बहुत अंतर नहीं देखा जा सकता है।

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स्कूलों और कॉलेजों में इस तरह की ड्रामेटिक सोसायटीज हैं जहां युवाओं की बढ़ती भागीदारी से इस कला की ओर युवाओं का बढ़ता आकर्षण सहज ही देखा जा सकता है। स्टेज ड्रामा को मात्र रामलीला में किए जाने वाले विभिन्न पात्रों के अभिनय के स्तर तक ही रखकर नहीं देखा जा सकता है बल्कि दुनिया भर में कितने ही नामी कलाकार इस विधा की देन हैं।

बॉलीवुड तक में ऐसे मंजे हुए स्टेज कलाकारों की संख्या कम नहीं है जिन्होंने अपने प्रोफेशनल कैरियर का सफरनामा रंगमंच की स्टेज से शुरू किया था।

हिंदी नाट्य परंपरा में हाल के समय में 'अदरक के पंजे', 'अंधा युग', 'जिन लाहौर नइ वेख्या वो जन्मिया हि नइ' आदि जैसे न जाने कितने ही ऐसे-ऐसे चर्चित नाटकों के नाम गिनवाए जा सकते हैं जिनकी लोकप्रियता दशकों के बाद भी बरकरार है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति पंजाबी और अन्य भाषाओं के नाटकों के बारे में कही जा सकती है।

मनोहर सिंह, हबीब तनवीर, एम. के. रैना जैसे नाम भी इसी तरह मील के पत्थर की भांति अपना मुकाम बना चुके हैं। देश में नाट्यकला पर आधारित औपचारिक ट्रेनिंग गिने चुने संस्थानों में उपलब्ध है। प्रायः इनमें अत्यंत सीमित सीटों की वजह से काफी गहन प्रतिस्पर्धा की स्थिति दाखिले के लिए देखने में मिलती है। इस लेख में हम ऐसे ही संस्थानों के एंट्रेंस एग्जाम की प्रक्रिया पर नजर डालने की कोशिश कर रहे हैं।

एनएसडी एंट्रेंस एग्जामः एनएसडी अथवा नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, नई दिल्ली को इस कला के शीर्ष ट्रेनिंग संस्थान होने का गौरव प्राप्त है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में यह लंबे समय से कार्यरत है। यहां पर तीन वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ड्रामेटिक आर्ट्स कोर्स का आयोजन किया जाता है। इसके अंतर्गत एक्टिंग, डयरेक्शन, स्टेज क्राफ्ट की अलग-अलग स्पेशियलिटी की भी व्यवस्था है।

प्रत्याशी के पास नाटकों में हिस्सा लेने के लंबे अनुभव के अलावा ग्रेजुएट होना भी जरूरी है। इसके लिए तीन बार से ज्यादा आवेदन नहीं किया जा सकता है। यहां पर अत्यंत सीमित संख्या में सीटों के होने के कारण चयन अखिल भारतीय स्तर के स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए किया जाता है।

स्क्रीनिंग टेस्ट दो चरणों में आयोजित किया जाता है। पहला होता है ऑडिशन राउंड, जिसमें प्रत्याशियों के नेचुरल टेलेंट और नाट्य कला के प्रति उनके रुझान की परख की जाती है। प्रत्याशियों को एक्सपर्ट पैनल के सामने प्रदर्शन करना होता है।

इसका आयोजन देश के पांच राज्यों में किया जाता है। इस चरण में सफल युवाओं को दूसरे चरण की स्क्रीनिंग प्रक्रिया के लिए नई दिल्ली में बुलाया जाता है। यहां पर 3 से 5 दिनों की वर्कशॉप में इन्हें हिस्सा लेना होता है। इस दौरान इनसे विभिन्न प्रकार के इस विधा पर आधारित टास्क करवाए जाते हैं।

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भारतेंदु नाट्य अकादमी फॉर ड्रामाटिक आर्ट्स एंट्रेंसः यह अकादमी लखनऊ में उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में स्थापित की गई है। यहां पर कई तरह के कोर्स इस विधा के विविध आयामों पर संचालित किए जाते हैं जिसमें दो वर्षीय नाट्य कला पर आधारित कोर्स प्रमुख है।

इसके बाद एक वर्षीय इंटर्नशिप भी अनिवार्य तौर पर करवाई जाती है ताकि पूरी तरह से प्रोफेशनल बनाकर ही रंगमंच की दुनिया में इन्हें उतारा जाए। दाखिले प्रवेश परीक्षा के जरिए ही दिए जाते हैं। आवेदन करने के लिए आवेदक का ग्रेजुएट होने के अलावा रंगमंच के क्षेत्र में कार्य का कम से कम दो वर्ष और 10 नाटकों में काम का भी अनुभवी होना चाहिए। लखनऊ में आयोजित चयन परीक्षा, नाट्यकला प्रदर्शन और साक्षात्कार के बाद ही अंतिम रूप से सफल प्रत्याशियों की घोषणा की जाती है।

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