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अल्ट्राफास्ट इमेजिंग सिस्टम सुलझाएगा प्रकाश का रहस्य!

सुलझ सकेंगे प्रकाश के रहस्य!

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- न्यूज डेस्क

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वैज्ञानिक आइस्टीन से लेकर अब तक प्रकाश के रहस्यों को सुलझाने के बहुत प्रयास हुए हैं पर अभी तक इसके विभिन्न आयाम सुलझाए नहीं जा सके। क्या इस दिशा में प्रकाश की गति को भी कैद कर सकने वाला कैमरा क्या इस दिशा में एक बड़ी खोज सिद्ध होगा?

वैज्ञानिकों ने ऐसा कैमरा बनाने का दावा किया है जो प्रकाश की गति को भी कैद कर सकता है। यह शोध द संडे टाइम्स में प्रकाशित हुआ है। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की एक टीम ने दावा किया है कि यह तेज गति वाला कै मरा, ट्यूब के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा करती प्रकाश की किरणों को दिखा सकता है। प्रकाश की किरणें किसी बंदूक की गोली की तरह दौड़ती हैं।
वैज्ञानिकों ने कहा कि इस कैमरे को बाजार में उपलब्ध कराने में अभी वक्त लग सकता है।

एमआइटी मीडिया लैब के प्रोफेसर रमेश रसकर ने बताया कि कैमरे के बेहद तेज इमेजिंग से हम फोटोन के गमन का वास्तविक परीक्षण कर सकते हैं। उनके मुताबिक यह कैमरा थ्रीडी इमेज भी बना सकता है क्योंकि यह वस्तुओं के अंदर भी प्रकाश के फोटोन को देख पाने में सक्षम है। रसकर ने बताया कि ट्यूब में प्रकाश की गति को बहुत ही धीमी रफ्तार से देखा गया। कैमरे में कैद यह रफ्तार इतनी धीमी है कि कोई भी इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हुए देख सकता है।

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विज्ञान के लिए बड़ी उपलब्धि : विज्ञान के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अल्ट्राफास्ट इमेजिंग सिस्टम के जरिए वे प्रकाश के असर का बारीकी से पता लगा सकेंगे। प्रकाश में कई तत्व होते हैं। नई तकनीक बताएगी कि प्रकाश की गति को भी पकड़ लेगा कैमरा!

मोतियाबिंद पकड़ने के लिए आसान उपकरण बनाने वाले भारतीय मूल के वैज्ञानिक ने दुनिया का सबसे तेज कैमरा बनाया। रमेश रासकर ने ऐसा कैमरा बनाया है जो बढ़ते प्रकाश की गति को तस्वीर में कैद कर रहा है। इसे बड़ी खोज कहा जा रहा है।

इससे पहले के प्रयोग ने चौंकाया था लोगों को : 70 साल पहले एमआईटी के इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैरॉल्ड एडगेर्टन ने खास किस्म की लाइट का इस्तेमाल कर दुनिया को चौंका दिया था। उन्होंने सेब पर टकराती गोली की साफ तस्वीर खींच ली। बूंद के टपकते ही उठने वाले कई छीटों को उन्होंने कैमरे में कैद कर लिया। एडगेर्टन की इस खोज ने विज्ञान को एक नई दिशा दी। पता चला कि तेज रफ्तार चीजें कैसा व्यवहार करती है। उनके टकराने से आस पास मौजूद चीजों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

असर का अध्ययन : प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने लाइट जलाई और अल्ट्राफास्ट इमेजिंग सिस्टम की मदद से कई तस्वीरें बनाई। लाइट बुझाने पर वैज्ञानिकों ने प्रकाश के लौटने की प्रक्रिया और उसका रास्ता भी देखा। तकनीक ईजाद करने वाले वह कहते हैं लैब के एक अति संवेदनशील उपकरण स्ट्रीक ट्यूब में कुछ बदलाव किए। इस तरह बना नया उपकरण प्रकाश की चाल को कैद कर सकता है और उसका पीछा भी कर सकता है। स्ट्रीक ट्यूब को नाभिकीय तत्वों की गति को स्कै न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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कैसे हुआ प्रयोग : टीम ने एक बोतल में धुंआ भरा और फिर उसमें लेजर लाइट डाली। अल्ट्राफास्ट इमेजिंग की मदद से वैज्ञानिकों को पता चला कि लेजर बीम किस तरह धुएँ को चीरती हुई बोतल में घुसती है। यह सब एक सेकेंड के 1000 अरब वें हिस्से में हुआ। वैज्ञानिक इस प्रयोग को एक बड़ी सफलता मान रहे हैं। उम्मीद है कि इसकी मदद से प्रकाश के अनसुलझे राज सुलझाए जा सकेंगे। भौतिक, रसायन और जीव विज्ञान सभी को इससे फायदा होगा।

भारतीय मूल के वैज्ञानिक की अहम भूमिका : इस खोज में भारत में पैदा हुए एमआईटी के वैज्ञानिक डॉक्टर रमेश रासकर की अहम भूमिका है। वह एडगेर्टन की खोज से भी आगे जा रहे हैं। डॉक्टर रमेश रासकर मीडिया आर्ट्‌स एंड साइंस लैब में सहायक प्रोफेसर हैं। यह पहला मामला नहीं है जब डॉक्टर रमेश रासकर ने बड़ा प्रयोग किया है।

जुलाई में डॉक्टर रासकर ने एक ऐसा सस्ता और आसान उपकरण बनाया जो आसानी से मोतियाबिंद की पहचान कर सकता है। उपकरण को आईफोन या किसी भी उपकरण में लगाकर कर आंख के सामने लाना है। कुछ ही मिनटों में उपकरण मोतियाबिंद को पकड़ लेगा।

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