कुछ लोगों को जीवन की अपेक्षा मृत्यु से कुछ अधिक ही प्रेम मालूम पड़ता है। आए दिन दुनिया के अंत, प्रलय या कयामत की भविष्यवाणियां किया करते हैं। मान बैठे हैं कि उन्हें छोड़ कर बाकी सभी इतने पापी हैं कि अंतिम न्याय के दिन ईश्वर का सामना नहीं कर पाएंगे। मीडिया वाले भी इन सिरफिरी खबरों को ऐसे ले उड़ते हैं, जैसे चील-कौवे मांस के किसी टुकड़े को। जब कभी कहीं कोई प्राकृतिक आपदा आई हो जैसे 'गत 11 मार्च को जापान में भूकंप और त्सुनामी' तब तो ऐसे भविष्यवक्ताओं की और भी चांदी हो जाती है। हेरॉल्ड कैंपिंग अमेरिका का एक ऐसा ही ईसाई धर्मोपदेशक है। उसने अपनी एक संस्था भी बना रखी है, 'फैमिली रेडियो क्रिश्चन नेटवर्क।' ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाइबल का उद्धरण देते हुए कैंपिंग का कहना है कि 21 मई 2011 धरती पर 'रैप्चर' (कयामत) शुरू होने का दिन बनने जा रहा है अर्थात, इस दिन से ईश्वर धरती पर उन लोगों को चुनना शुरू करेगा, जिनके लिए स्वर्ग में प्रवेश का द्वार खुल जाएगा। इसके ठीक पांच महीने बाद, 21 अक्टूबर 2011 के दिन, दुनिया का अंत हो जाएगा और स्वर्ग में जाने के फाटक भी बंद हो जाएंगे। बाइबल की बातें परमसत्य होती हैं अपने दोनो पैर क़ब्र में लटकाए, कभी सिविल इंजीनियर रहे और अब प्रभु ईशू का स्वयंभु प्रचारक बन बैठे 89 वर्ष के इस सिरफिरे धर्मोपदेशक का दावा है, 'मुझे पक्का पता है कि यह परमसत्य है, क्योंकि बाइबल की बातें हमेशा परमसत्य होती हैं।' यदि मान भी लें कि बाइबल में लिखी बातें 'परमसत्य' हैं, तब भी, यह कैसे मान लें कि बाइबल में लिखी बातों की वही व्याख्या भी परमसत्य है, जो हेरॉल्ड कैंपिंग नाम का यह भूतपूर्व सिविल इंजीनियर हमें दे रहा है?उसने 1992 में अपने खर्चे पर अपनी एक पुस्तक भी प्रकाशित की थी। उसमें दावा किया था कि 4 सितंबर 1994 को इस संसार का अंत हो जाएगा। उस समय भी लिखा था कि अंत से पहले ईश्वर उन लोगों को चुन-चुन कर स्वर्ग में जगह देगा, जो इसके योग्य होंगे। इस बीच करीब 17 साल बीत गए हैं। दुनिया में अनेक तूफान और भूकंप आए, युद्ध भड़के और ज्वालामुखी फूटे, पर दुनिया अब भी अपनी जगह पर है। दुनिया की जनसंख्या घटने की कौन कहे, कुछ अरब बढ़ ही गई है। इस बार दुनिया का अंत हो कर रहेगा खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे। कैंपिंग अब कहते हैं, उनसे गणित के हिसाब लगाने में कुछ गलती हो गई। लेकिन इस बार, उनका दावा है, कि कोई गलती नहीं हुई है। उनका और उनके अंधभक्तों का कहना है कि इस बार दुनिया का अंत हो कर रहेगा। अंत से पहले ईसाइयों के भगवान करीब 20 करोड़ लोगों (विश्व की जनसंख्या के 3 प्रतिशत को) स्वर्ग में अपने पास रहने की जगह देंगे। उन्हीं के शब्दों में: 'बाइबल कहती है कि दुनिया के अंत से पहले जीसस (ईसा मसीह) पांच महीनों तक इस धरती पर राज करेंगे। 21 अक्टूबर के बाद धरती का वास्तव में कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा। ईश्वर अपनी मूल सृष्टि का अंत कर देंगे। जो लोग कयामत के दिन को झेलने के लिए पीछे रह जाएंगे, वे मौत की भीख मांग रहे होंगे। अंतिम दिन से पहले शैतान एक अंतिम बार ईसा मसीह को ललकारेगा, जैसाकि बाइबल में लिखा है।'शरण लें ईसा मसीह की करुणानिधान ईसा मसीह का धर्मप्रचारक होने के नाते हेरॉल्ड कैंपिंग भी पूरी तरह पत्थरदिल नहीं होना चाहते। कहते हैं, 'ईसाई गिरजाघरों में उन लोगों की बाढ़ आ जाएगी, जो ईसा मसीह के हाथों अपने उद्धार के लिए अनुनय-विनय कर रहे होंगे, लेकिन तब तक बड़ी देर हो चुकी होगी। कुछ अपवाद भी ज़रूर होंगे। जिनकी अतीत में प्रभु यिशु में कोई आस्था नहीं थी, वे शीघ्र ही उनकी महानता को महसूस करेंगे।'कैंपिंग आगे कहते हैं, 'कयामत आने तक प्राकृतिक आपदाओं, परमाणु विकिरण और बाढ़ की ऐसी झड़ी लग जाएगी कि प्रमुख शहर तहस-नहस हो जाएंगे। अपूर्व बर्बादी होगी। खाने-पीने की चीजों और शरण लेने की जगहों का अकाल पड़ जाएगा। हिंसा और दंगों का तांडव शुरू हो जाएगा। अंतिम दिनों में धरती नरक बन जाएगी। कहां जाएंगे आप 21 मई 2011 के बाद?'मुझे अपना मार्गदर्शक बनाएं कैंपिग की सलाह है कि गैर-ईसाइयों को इस विकट घड़ी में सबसे पहले उन्हीं की(स्वयं कैंपिंग की ही) शरण में जाना चाहिए। 'कोई चर्च ढूंढिए। कोई ईसाई दोस्त खोजिए। मेरे दोस्त बन जाइए और कयामत आने तक मुझे अपना मार्गदर्शक बनाइए। आपके क्षमादान के लिए मैं प्रार्थना करूंगा। आश्वासन दिलाऊंगा कि जीसस जब आएंगे तब आपका उद्धार करेंगे। मैं स्वर्ग दिलाने का वादा तो नहीं कर सकता, लेकिन वह सही दिशा जरूर दिखा सकता हूं, जहां आपको जीसस के हाथों अपने उद्धार के उपाय मिल सकते हैं।'गैर-ईसाइयों के लिए स्वर्ग में जगह नहीं कैंपिंग साथ ही यह चेतावनी देने से भी नहीं चूकते कि 'जो लोग नास्तिक हैं, झूठे ईसाई हैं या दूसरे धर्मों के अनुयायी हैं, उन्हें 21 मई से 21 अक्टूबर 2011 वाले समय के बीच जीसस के हाथों से प्रताड़ना भी मिल सकती है।' कैंपिंग के जीसस, लगता है, कर्म के बदले केवल धर्म पूछते हैं। मुंह में राम, बगल में छुरी वाले के लिए भी स्वर्ग का दरवाजा खोल देते हैं। जबकि, कहते हैं कि बाईबल में उन्होंने ही कहा है कि यह संभव कि ऊंट सुई के छेद से निकल जाए, पर यह संभव नहीं कि अमीर आदमी स्वर्ग पहुंच जाए। कयामत धर्मप्रचार का हथकंडा कहने की आवश्यकता नहीं कि 89 साल का यह बुढ़ा निरा सिरफिरा नहीं, एक शातिर धर्मप्रचारक है। दुनिया के अंत और अंतिम न्याय के दिन का हौवा दिखा कर सब को अपना भक्त और ईसाई धर्मावलंबी बनाना चाहता है। दुनिया के अंत की भविष्यवाणियां इससे पहले भी सैकड़ों, शायद हजारों बार की गई हैं। पर, सभी सरासर झूठी और बकवास निकली हैं।साढ़े चार अरब वर्षों से है पृथ्वी का अस्तित्व जरा सोचें, पृथ्वी लगभग साढ़े चार अरब वर्षों से अस्तित्व में है। पिछले लगभग दो अरब वर्षों से इस पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में जीवन का भी अस्तित्व रहा है। एक नई प्रजाति के तौर पर आज के मनुष्य की अपनी विकास-यात्रा भी कोई 70 लाख साल पुरानी है। मिस्र, बेबीलोन या हड़प्पा और मोएनजोदड़ो जैसी सभ्यताएं कम से कम दस हजार साल पुरानी हैं। इन सब की तुलना में दो हजार साल पहले ईसा मसीह का जन्म और ईसाई धर्म का प्रचलन पिछले कल-परसों की बातें हैं।इस सारे समय में पृथ्वी ने न जाने कितने भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़ और तूफान ही नहीं, बल्कि आकाशीय उल्कापिंडों की मार भी झेली होगी। तब भी, न केवल वह अभी भी आबाद और अस्तित्वमान है, हम भी संख्याबल में बढ़ते गए हैं। ऐसे में, क्या यह संभव है कि इस महीने के अंत से पहले हमारा ही नहीं, पृथ्वी का भी एक ऐसा अंत शुरू हो सकता है, जो ठीक पांच महीने बाद,21 अक्टूबर 2011 के दिन उसका अस्तित्व ही मिटा देगा?
धर्म के नाम पर अनर्गल बातें
धर्म(अंध-?)विश्वास का विषय हैं, न कि अभिज्ञान और विज्ञान का। लेकिन, जब धर्म के नाम पर अनर्गल बातें की जाएंगी, तब अपने सारे अज्ञान के बावजूद विज्ञान से भी उसकी टक्कर होगी ही। वैज्ञानिकों के पास ऐसा सोचने का रत्ती भर भी कोई कारण नहीं है कि 21 मई से शुरू हो कर केवल पांच महीनों में दुनिया का अंत हो जाएगा या सदियों पहले स्वयं लुप्त हो गई मध्य अमेरिका की माया सभ्यता की कालगणना (कैलेंडर) का क्योंकि 21 दिसंबर 2012 को अंत हो जाता है, इसलिए उस दिन दुनिया का भी अंत हो जाएगा।
कुछ वर्षों से प्रलय-प्रेमी यह भी राग अलाप रहे हैं कि 21 दिसंबर 2012 को दुनिया का अंत हो जाएगा, क्योंकि यही माया सभ्यता वाले कैलेंडर की अंतिम तारीख है।
इतिहास बाइबल का साथ नहीं देता
अमेरिका के ईसाई धर्मप्रचारक हैरॉल्ड कैंपिंग को तो और भी जल्दी है। उन की भविष्यवाणी के अनुसार अगले पांच महीनों में प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों की झड़ी लग जाएगी। लेकिन, इतिहास उनका या उनकी बाइबल का इसमें साथ नहीं देता।
कुछ उदाहरणः
भूकंप- पृथ्वी पर भूकंप सबसे विनाशकारी आपदा सिद्ध होते रहे हैं। वे भूकंप सबसे अधिक प्राणघातक होते हैं, जिनकी तीव्रता रैक्टर पैमाने पर 8 अंक से ऊपर मापी गयी हो। अगस्त 1950 से लेकर अब तक 8.6 या उससे भी अधिक तीव्रता वाले कुल 10 भूकंप आये हैं- चिली, इंडोनेशिया और अमेरिका के अलास्का प्रांत में दो-दो बार, भारत, जापान, रूस और इक्वाडोर में एक-एक बार। इनमें 9.5 की तीव्रता वाला सबसे शक्तिशाली था 22 मई 1960 को चिली के वाल्दीविया में आया भूकंप, जिसने अपने साथ की त्सुनामी लहरों को मिला कर अनुमानतः कुल 5700 प्राणों की बलि ली।
मुख्य रूप से त्सुनामी लहरों के कारण ही अब तक का सबसे जानलेवा भूकंप था 9.1 की तीव्रता वाला 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के पास हिंद महासागर में आया वह भूकंप, जिसने भारत सहित कई देशो में करीब 2,30000 लोगों के प्राण लिए। आज तक किसी और भूकंप ने इतने प्राणों की बलि नहीं ली है। तब भी उससे पृथ्वी पर प्रलय नहीं आया।
ज्वालामुखी- अतीत में ज्वालामुखी उद्गार भी जान-माल की भारी बलि लेते रहे हैं और कई शहरी सभ्यताओं के अंत का कारण बने हैं। ज्वालामुखी विस्फोटों का पिछले 500 वर्षों का इतिहास बताता है कि इस लंबे समय में ऐसे उद्गारों की कुल संख्या केवल 13 थी, जिन में एक हजार से अधिक लोग मरे। इनमें सबसे भयंकर था जुलाई 1812 में इंडोनेशिया के ताम्बोरा ज्वालमुखी का फटना।
उससे इंडोनेशिया में 60000 से अधिक लोग मरे थे। शेष दुनिया की जलवायु में भी ऐसे उतार-चढ़ाव आए कि बीमारियों और सूखे-अकाल के कारण 49 हजार लोग परोक्ष रूप से मरे। पिछला सबसे भयंकर उद्गार था 11 सितंबर 1985 को शुरू हुआ दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया के नेवादो देल रूइज़ ज्वालामुखी का, जो 23 000 लोगों की मौत का कारण बना।
बाढ़- विश्वास नहीं होता, लेकिन सच्चाई यह है कि अतीत में संसार भर में सबसे अधिक मौतें नदियों में आने वाली बाढ़ों से होती रही हैं। रिकॉर्ड है 1887 में चीन की पीत नदी (ह्वांग हो) में आई बाढ़ का, जिसके बारे में अनुमान है कि उस बाढ़ से नौ लाख से लेकर 20 लाख तक लोग मरे हो सकते हैं।
चीन और भारत जैसे घने बसे देशों में नदियों में आने वाली बाढ़ें हर साल हाहाकार मचाती हैं। तब भी न केवल चीन और भारत ही, पूरी दुनिया आज भी जीवित है और फल-फूल रही है।
इस साल बचे, तो अगले साल फंसे ऐसे आकाशीय पिंडों को लेकर भी बार-बार शोर मचाया जाता है, जो कथित रूप से पृथ्वी के बहुत निकट आते रहते हैं और उससे टकरा कर प्रलय मचा सकते हैं। ऐसी ही एक शोरमचाऊ भविष्यवाणी दिसंबर 2012 के लिए की गई है। कहा जा रहा है कि माया सभ्यता का कैलेंडर उस साल 21 दिसंबर से आगे इसलिए नहीं जाता, क्योंकि उस दिन नीबिरू नामका एक ग्रह पृथ्वी से टकरा कर उसे नष्ट कर देगा। हम सब मारे जाएंगे। सच तो यह है कि वैज्ञानिक इस नाम के किसी ग्रह को नहीं जानते। तब भी, यदि कोई बड़ा पिंड एक ही साल बाद पृथ्वी से टकराने वला है, तो वह अरबों प्रकाश वर्ष दूर तक देख सकने वाले खगोलीय दूरदर्शियों और उपग्रहों की नज़र से अब तक बचा नहीं रह पाता।तीन प्रकार के आकाशीय पिंड हां, यह भी सच है कि पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में तीन प्रकार के ऐसे पिंड भटकते रहते हैं, जो जब-तब सौरमंडल के किसी ग्रह से भी टकराते हैं। एक हैं केवल कुछेक मीटर लंबी-चौड़ी ऐसी पथरीली चट्टानें, जो लाखों की संख्या में मंगल (मार्स) और गुरु ग्रह (ज्यूपिटर) के बीच घूमती रहती हैं और उल्काएं (मीटियोराइट) कहलाती हैं। उन्हें रास्ते से भटक कर पृथ्वी पर गिरने के लिए दसियों लाख साल का समय लगता है। हर साल ऐसी औसतन पांच उल्काएं पृथ्वी तक पहुंचती हैं, लेकिन वे लगभग सब जमीन छूने से पहले ही पृथ्वी के घने वायुमंडल के साथ रगड़ खा कर भस्म हो जाती हैं।
उल्का से नुकसान का केवल एक ही प्रमाण किसी उल्का के पृथ्वी से टकरा कर भारी नुकसान पहुंचाने का अब तक केवल एक ही प्रमाण मिला है। 30 जून 1908 को रूसी साइबेरिया के तुंगुस्का नदी-क्षेत्र में नीले रंग की आग का एक गोला गिरा था। उसके विस्फोट से जो प्रघात तरंगे पैदा हुई थीं, उनसे 50 किलोमीटर व्यास वाले एक बड़े क्षेत्र के सारे जंगली पेड़-पौधे भूमिगत हो गए थे। निर्जन इलाका होने के कारण कुछ भेड़ों के अलावा और कोई मारा नहीं गया। अनुमान है कि वह 50 से 100 मीटर व्यास वाला कोई ऐसा पिंड था, जिस में हवा के साथ रगड़ से पैदा हुई आग और गर्मी के कारण कोई 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर विस्फोट हो गया था। उसका कोई टुकड़ा या उससे बना कोई गड्ढा (क्रेटर) जमीन पर नहीं मिला। धूमकेतु- दूसरे पिंड हैं धूमकेतु (कॉमेट), जिन्हें पुच्छलतारा भी कहा जाता है। वे और भी अधिक दूरियों पर बहुत ही दीर्घ-अंडाकार कक्षा में सूर्य के चक्कर लगाते हैं और पृथ्वी के पास तो शायद ही कभी फटकते हैं। खगोलविदों के पास उनकी कक्षा और उनके आने-जाने के समय का लगभग पूरा रिकॉर्ड है। उन पर हमेशा नजर रखी जाती है। लघु या क्षुद्रग्रह- तीसरे पिंड वे हैं, जिन्हें लघु या क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉयड) कहा जाता है। वे तथाकथित 'केप्लर-कक्षा' में रहते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। खगोलविदों ने अब तक ऐसे 5 42 700 लघु और क्षुद्र ग्रहों की गणना की है और उनकी सूची बनाई है, हालांकि उनकी कुल संख्या इसकी कई गुना हो सकती है। उनका कहना है कि इन में से केवल कुछ ही 100 मीटर से बड़े हैं। वे भी सूर्य से बहुत दूर रहते हुए दीर्घ अंडाकार कक्षा में उसकी परिक्रमा करते हैं। इस कारण कुछेक क्षुद्रग्रह बड़े ग्रहों की परिक्रमा कक्षा को कभी-कभी काटते भी हैं। लेकिन, इस प्रसंग में गुरु ग्रह धरती के प्रहरी का काम करता है।
अपने प्रबल गुरुत्वाकर्षण के बल पर वह, कुछेक अपवादों को छोड़ कर, इन क्षुद्रग्रहों को अपनी परिक्रमा कक्षा के भीतर या बाहर रखते हुए पृथ्वी से परे रखता है। कुछ क्षुद्रग्रह ऐसे भी हैं, जो मंगल, बुध या शुक्र ग्रह के सौर परिक्रमापथ को काटते हैं। सौरमंडल की बाहरी सीमा के पास की तथाकथित 'क्युइपर पट्टी' में भी बहुत से लघु और क्षुद्र ग्रह हैं, लेकिन वे पृथ्वी से इतनी दूर हैं कि उनमें से किसी के पृथ्वी तक पहुंचने की संभावना नहीं के बराबर है। वे क्षुद्रग्रह, जो मंगल या शुक्र ग्रह के रास्ते में पड़ते हैं, कभी-कभी पृथ्वी के भी कहीं निकट आ जाते हैं। अब तक पृथ्वी के सबसे पास से जो क्षुद्रग्रह गुजरा है, वह करीब केवल एक मीटर बड़ा था और 9 अक्टूबर 2008 को पृथ्वी से केवल 6 150 किलोमीटर की दूरी पर से गुजरा था। यदि वह पृथ्वी से टकराता भी, तब भी किसी उल्का की तरह वायुमंडल में नष्ट हो जाता। कहीं बड़े आकार वाले ऐसे क्षुद्रग्रह, जो पृथ्वी पर सचमुच विनाशलीला मचा सकते थे, हजारों-लाखों किलोमीटर की दूरी पर से गुजरते रहे हैं।एक ही चिंताजनक भविष्यवाणी है वैज्ञानिकों की ओर से इस समय एक ही चिंताजनक भविष्यवाणी है। आज से 18 साल बाद, शुक्रवार 13 अप्रैल 2029 को, 270 मीटर बड़ा एपोफिस नाम का एक क्षुद्रग्रह पृथ्वी से केवल 30000 किलोमीटर की दूरी पर से गुजरेगा। यह दूरी भूस्थिर कक्षा में स्थापित हमारे दूरसंचार उपग्रहों की दूरी से भी कम है। जहां तक अनुमान है, वह पृथ्वी से टकरायेगा नहीं। लेकिन, उसके रास्ते की अब तक की गणनाएं कहती हैं कि सात साल बाद, 13 अप्रैल 2036 को, वह फिर एक बार पृथ्वी के पास से गुजरेगा। तब उसकी दूरी कितनी होगी, इसका पता 2029 में उसकी सौर परिक्रमा कक्षा की नई गणना करने के बाद ही चल सकेगा। इस तरह, निकट भविष्य में पृथ्वी पर किसी बड़े प्राकृतिक अनिष्ट की यदि कुछ भी चिंता हो सकती है, तो वह केवल 2029 में एपोफिस की निकटता को लेकर ही हो सकती है। यह सही है कि वैज्ञानिक भी सर्वज्ञानी नहीं होते, लेकिन हैरॉल्ड कैंपिंग जैसे लकीर के फकीर पोंगापंथी तो केवल अज्ञानी ही कहला सकते हैं। वे धर्म के नाम पर केवल धोखा ही दे सकते हैं। मानव जाति के इतिहास में धर्मों के प्रचार-प्रसार के लिए हुई लड़ाइयों में मरने वालों की कुल संख्या को यदि देखें, तो प्राकृतिक आपदाओं से कहीं ज्यादा अनिष्ट शायद ईश्वरीय वाक्य कहे जाने वाले धर्मों के नाम पर हुआ है। कयामत की गाज तो उन पर गिरना चाहिए।