Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

क्या नष्ट हो जाएगी दुनिया..?

Advertiesment
हमें फॉलो करें क्या नष्ट हो जाएगी दुनिया..?

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

PR
माया सभ्यता के कैलेंडर के खौफ, धर्मों में उल्लेखित कयामत के दिन और वैज्ञानिकों द्वारा प्राकृतिक आपदा और उल्कापिंड से धरती के नष्ट होने की भविष्यवाणी के बीच 7 अरब की 'जंगली' जनसंख्या ने पशु, पक्षी, जलचर जंतु और प्राकृति संपदाओं को नष्ट करने की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। स्वाभाविक रूप से मानव अब अपने मरने के इंतजार के डर तले जी रहा है



* 4 अरब वर्ष से ज्यादा पुरानी है धरती।
* धरती पर जीवन लगभग 1 अरब वर्ष पूर्व शुरू हुआ।
* 80 लाख वर्ष पूर्व मानव अस्तित्व में आया
* 3 से 4 बार आ चुका है प्रलय, लेकिन जीवन बचा रहा।
* सभी धर्मों में प्रलय को लेकर अलग-अलग मान्यता है।
* धरती स्वयं को संतुलित करने के लिए प्रलय का सृजन करती है

वैज्ञानिक मान्यता अनुसार 80 लाख वर्ष पूर्व मानव अस्तित्व में आया उसमें भी आज के आधुनिक मानव का निर्माण लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ। 75 हजार वर्ष पूर्व सुमात्रा नामक स्थान पर एक भयानक ज्वालामुखी फुट पड़ा था जिसके कारण धरती पर से जीवन लगभग समाप्त हो गया था। चारों ओर आग और धुएं के बवंडर से धरती पर 6 वर्ष तक धंधेरा छाया रहा। वैज्ञानिकों अनुसार अफ्रीका के जंगलों में मुठ्ठीभर मानवों का एक समूह स्वयं को सुरक्षित रख पाया था, जिसके कारण आज धरती पर मानव का अस्तित्व बना हुआ है।

कुछ वैज्ञानिक इसे नहीं मानते, वे मानते हैं कि एशिया से अफ्रीका पहुंचे थे प्रारंभिक मानव। दुनियाभर के आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता और अनुवांशिकी गुणों में इसीलिए समानता है।

प्रलय संबंधी अधुरे ज्ञान और अंधविश्वास के चलते हॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी है वहीं लोगों में भय, कौतुहल और मनमानी चर्चा का दौर जारी है। सवाल यह उठता है कि क्या कारण हैं कि सारी दुनिया को प्रलय से पहले प्रलय की चिंता खाई जा रही हैं? क्या कारण है जो लोगों को भयभीत किया जा रहा है और यह भी कि क्या सचमुच ही ऐसा कुछ होने वाला है? धरती पर से जीवन का नष्ट होना और धरती नष्ट होना दोनों अलग-अलग विचार है।

ये चार कारण हैं जिससे दुनिया डर रही है-
धार्मिक मान्यता : हर धर्म और सभ्यता ने मानव को ईश्वर और प्रलय से डराया है। धर्मग्रंथों में प्रलय का भयानक चित्रण मनुष्य जाती को ईश्वर से जोड़े रखता है। दूसरी ओर माया सभ्यता के कैलेंडर में शुक्रवार 21 दिसम्बर 2012 में दुनिया के अंत की बात कही गई है। कैलेंडर में पृथ्वी की उम्र 5126 वर्ष आंकी गई है।

माया सभ्यता के जानकारों का कहना है कि 26 हजार साल में इस दिन पहली बार सूर्य अपनी आकाशगंगा ‘मिल्की वे’ के केंद्र की सीध में आ जाएगा। इसकी वजह से पृथ्वी बेहद ठंडी हो जाएगी। इससे सूरज की किरणें पृथ्वी पर पहुंचना बंद हो जाएगी और हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा जाएगा।

माया सभ्यता के अंधविश्वास को जर्मनी के एक वैज्ञानिक रोसी ओडोनील और विली नेल्सन ने और हवा दी है। उन्होंने 21 दिसंबर 2012 को एक्स ग्रह की पृथ्वी से टक्कर की बात कहकर पृथ्वी के विनाश की भविष्यवाणी की है। करीब 250 से 900 ईसा पूर्व माया नामक एक प्राचीन सभ्यता स्थापित थी। ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में इस सभ्यता के अवशेष खोजकर्ताओं को मिले हैं।

इससे पूर्व एक ईसाई धर्मोपदेशक हैराल्ड कैपिंग ने बाइबिल के सूत्रों के आधार पर दावा किया था ‍कि 21 मई शनिवार को शाम 6 बजे दुनिया का अंत होना तय है। प्रलय की शुरुआत में तत्काल ही दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रलय के गर्त में समा जाएगी, सिर्फ 20 करोड़ लोग ही बच पाएंगे। 21 मई से 21 अक्टूबर 2011 के बीच प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों की झड़ी लग जाएगी।

कुछ लोग नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी का हवाला देकर अपनी धार्मिक मान्यता को पुष्ट करते हैं। नास्त्रेदमस के विश्लेषकों अनुसार नास्त्रेदमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है कि मैं देख रहा हूं कि आग का एक गोला पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है जो धरती से मानव की विलुप्ति का कारण बन सकता है।

सवाल यह उठता है कि प्रलय की धार्मिक मान्यता में कितनी सच्चाई है या यह सिर्फ कल्पना मात्र है जिसके माध्यम से लोगों को भयभीत करते हुए धर्म और ईश्वर में पुन: आस्था को जगाया जाता है। धार्मिक पुस्तकें किसने लिखी? कलैंडर किसने बनाया? खुद मानव ही है इनका रचनाकार। लेकिन इन भविष्यवाणियों का कोई ठोस आधार न होकर पूर्ववर्ती धारणाएं और ईश्वर का डर ही अधिक है। भय, लालच और युद्ध के दम पर ही कायम है धर्म की कौम।

वैज्ञानिक आशंका : जहां तक सवाल वैज्ञानिक दृष्टिकोण का है तो वह भी विरोधाभासी है। कई बड़े वैज्ञानिकों को आशंका है कि एक्स नाम का ग्रह धरती के काफी पास से गुजरेगा और अगर इस दौरान इसकी पृथ्वी से टक्कर हो गई तो पृथ्वी को कोई नहीं बचा सकता। कुछ वैज्ञानिक यह आशंका जताते रहे हैं कि 2012 के आसपास ही या 2012 में ही अंतरिक्ष से चंद्रमा के आकार के किसी उल्कापिंड के धरती से टकराने की संभावना है। यदि ऐसा होता हैं तो इसका असर आधी दुनिया पर होगा। हालांकि कुछ वैज्ञानिक ऐसी किसी भी आशंका से इनकार करते हैं।

गौरतलब है कि इससे पूर्व कई बार उल्कापिंड धरती पर गिरते रहें, लेकिन वे कोई भी धरती का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए। जावा-सुमात्रा और मेक्सिको के आसपास कई उल्कापिंडों के गिरने से तबाही हुई है।

प्राकृतिक आपदा : ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कहीं सुनामी तो कहीं भूकंप और कहीं तूफान का कहर जारी है। हाल ही में जापान में आई सुनामी ने दुनिया को प्रलय की तस्वीर दिखा दी। इतिहास दर्शाता है कि ऐसी कई सुनामियां, भूकंप, अति जलवृष्टि और ज्वालामुखियों ने कई बार दुनिया में प्रलय का चित्र खींच दिया था।

सिकुड़ता पशु, पक्षी और जलचर जगत : बदलती जलवायु आवसीय ह्रास और मानवीय हस्तक्षेप के चलते पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है और ऐसा अनुमान है कि आने वाले 100 साल में पक्षियों की 1183 प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। 128 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।

हजारों-लाखों की तादाद में पशु, पक्षी और मछलियों के किसी अनजान बीमारी से मरने की खबर से दुनिया सकते में हैं। समुद्री तट पर लाखों मरी हुई मछलियों की खबर आए दिन आती रहती है। हाल ही में अमेरिका के एक छोटे से गांव बीबे में नए साल की सुबह लोगों को सड़कों पर, घरों के आंगन में और पूरे गांव में 5000 ब्लैकबर्ड्स मरे हुए मिले।

आपको बता दें की ये चार कारण हर काल में रहे हैं और रहेंगे। पहला और चौथा कारण छोड़ दें तो बाकी बचे दो कारणों के कारण धरती पर से कई बार जीवन नष्ट हो चुका है, लेकिन धरती कभी नष्ट नहीं हुई। लेकिन स्टीफन हॉकिंग मानते हैं कि धरती नष्ट हो जाएगी तो कहना होगा की विज्ञान भी अंधविश्वास का शिकार हो चला है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi