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चांद पर अंतरिक्ष अड्डा नहीं बनाना पाप है....

मंगल ग्रह पर जाने को रूस ने कमर कसी

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राम यादव

अंतरिक्ष में पहुँचने की होड़ में रूस कभी दुनिया में सबसे आगे हुआ करता था। दो दशक पूर्व अपने यहाँ की राजनैतिक उथल-पुथल और बाद में कुछ दुर्घटनाओं के कारण वह इस बीच पिछड़ने लगा था। रूसी राष्ट्रपति ने तय किया है कि उनका देश इस दशक के अंत तक अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा दुबारा अर्जित कर लेगा।
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रूस के ही यूरी गागरिन 12 अप्रैल 1961 को मनव इतिहास के पहले अंतरिक्षयात्री बने थे। वे बाइकोनूर नाम के जिस अंतरिक्षयान प्रक्षेपण अड्डे से उड़े थे, वह इस बीच एक स्वतंत्र देश बन चुके कज़ाकस्तान में पड़ता है। उसके पट्टे की अवधि और किराए को लेकर रूस और कज़ाकस्तान के बीच विवाद पैदा हो गया है, इसलिए रूस उस के बदले में वोस्तोच्नी नाम से अपने यहाँ एक नया प्रक्षेपण अड्डा बना रहा है। रूस के दक्षिणपूर्व में स्थित वोस्तोच्नी चीन के साथ की रूसी सीमा से केवल 100 किलोमीटर दूर आमूर क्षेत्र में पड़ता है।

वोस्तोच्नी है रूस का नया अंतरिक्ष अड्डा : गागारिन की युगप्रवर्तक उड़ान वाली 52वीं वर्षगाँठ के दिन, इसी वोस्तोच्नी प्रक्षेपण अड्डे से, रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पूतिन ने पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS के अंतरिक्षयात्रियों को संबोधित किया। टेलीविज़न पर भी प्रसारित इस संबोधन में उन्होंने कहा कि सवा नौ अरब डॉलर की लागत से बन रहे इस नए केंद्र से 2015 तक प्रक्षेपण कार्य शुरू हो जायेंगे। तब अमेरिका और यूरोप देश भी अपने उपग्रह आदि यहाँ से अंतरिक्ष में भेज सकेंगे। 2018 से पहली समानव अंतिरक्ष उड़ानें भी यहाँ से शुरू कर दी जायेंगी। चन्द्रमा का फायदा नहीं उठाना पाप है, अगले पन्ने पर...

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चंद्रमा बनेगा रूसी आधार शिविर : राष्ट्रपति पूतिन ने कहा कि 2020 तक रूस अंतरिक्ष अनुसंधान में एक बार फिर अग्रणी बन जायेगा। इसके लिए उनकी सरकार ने 50 अरब डॉलर मंहगा एक अपूर्व अंतरिक्ष कार्यक्रम बनाया है। इस कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए रूसी अंतरिक्ष अधिकरण "रोसकोस्मोस" के निदेशक व्लादीमीर पोपोवकिन ने टेलीविज़न पर बताया कि जल्द ही चंद्रमा पर एक ऐसे स्टेशन के निर्माण की तैयारियाँ शुरू की जायेंगी, जहाँ अंतरिक्षयात्री रह और काम कर सकेंगे। "चंद्रमा ही मंगल ग्रह की उड़ानों के लिए प्रक्षेपण मंच का काम करेगा", पोपोवकिन ने कहा। "वह एक इतना बड़ा आकाशीय पिंड है, जहाँ ढेर सारी चीजें रखी जा सकती हैं। इस का लाभ नहीं उठाना पाप के समान होगा," उनका कहना था।

चंद्रमा ही मंगल ग्रह की उड़ानों के लिए प्रक्षेपण मंच का काम करेगा", "वह एक इतना बड़ा आकाशीय पिंड है, जहाँ ढेर सारी चीजें रखी जा सकती हैं। इस का लाभ नहीं उठाना पाप के समान होगा,"
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परमाणु ऊर्ज-चालित नया रॉकेट-इंजन : रूसी अंतरिक्ष अधिकरण के निदेशक व्लादीमीर पोपोवकिन ने बताया, कि पहले चंद्रमा तक और फिर वहाँ से मंगल ग्रह तक पहुँचने के लिए, रूस 2018 से, परमाणु ऊर्ज-चालित एक नए प्रकार के रॉकेट-इंजन का निर्माण शुरू करेगा। उनका कहना था कि यह नया इंजन बहुत हल्का लेकिन 1000 किलोवाट क्षमता के साथ इतना शक्तिशाली होगा कि अंतरिक्ष उड़ानों की बिल्कुल नई संभावनाएँ उद्घाटित करेगा।

समनाव अंतरिक्षयात्राओं के मामले में रूस इस समय भी अग्रणी है। 2011 से उसी के सोयूज़ यान अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों को भी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS तक लाते-लेजाते हैं। लेकिन, कुछ-एक भूलों और दुर्घटनाओं के कारण अंतरिक्ष अनुसंधान और उपग्रह प्रक्षेपण में वह इधर कुछ समय से पिछड़ने लगा था। जनवरी 2012 में "फ़ोबोस" नाम का उसका मंगल यान बाइकोनूर से प्रक्षेपण के तुरंत बाद प्रशांत महासागर की गोद में समा गया था। क्या है इस मिशन का उद्देश्य, अगले पन्ने पर...

मंगल पर जीवन की खोज : इस विफलता से रूसी रॉकेटों की विश्सनीयता को जो भारी आँच पहुँची थी, वह इस बीच काफ़ी कम हो गई है। गत 14 मार्च को रूसी अंतरिक्ष अधिकरण रोसकोस्मोस और यूरोपीय देशों की "यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA)" ने पेरिस में "एक्ज़ोमार्स" नाम के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके अधीन 2016 और 2018 में रूसी वाहक रॉकेटों की सहायता से मंगल ग्रह की दिशा में दो साझे अन्वेषणयान भेजे जायेंगे। उनका मुख्य काम मंगल ग्रह पर मीथेन गैस-जैसी गैसों या ऐसी चीज़ों को ढूँढना होगा, जो जैविक गतिविधियों से बनती हैं, यानी जिन से इस बात का संकेत मिल सके कि वहाँ कभी किसी प्रकार का जीवन था, अब भी है, या नहीं।

इस समय की योजना के अनुसार, रूस 2020 तक अपने वर्तमान सोयूज़ रॉकेटों की जगह 6 सीटों वाले अंगोरा रॉकेट इस्तेमाल करने लगेगा। उन्हें नए अंतरिक्ष अड्डे वोस्तोच्नी से छोड़ा जायेगा, जो तब तक समानव अंतरिक्ष उड़ानों को भी संभालने लगेगा। इस के बाद रूस पहले चंद्रमा पर कुछ-एक रोबोट-रोवर (विचरण वाहन) भेजेगा, जो वहाँ की मिट्टी आदि के नमूने जमा करेंगे। उन नमूनों के आधार पर तय होगा कि चंद्रमा पर कहाँ ऐसा स्टेशन (आधार शिविर) बनाया जाये, जहाँ मंगल ग्रह की उड़ान के लिए ज़रूरी सामग्रियों का भंडारण किया जा सके और जहाँ मंगल ग्रह के यात्री कुछ समय के लिए रह सकें।

2030 से आधार शिविर की शुरुआत : रूस को आशा है कि 2030 तक चंद्रमा पर आधार शिविर बनाने से जुड़ी तैयारियाँ पूरी हो जायेंगी। रूसी अंतरिक्षयात्री मंगल पर अपने पैर कब रखेंगे, यह कार्यक्रम चंद्रमा पर आधार शिविर बन जाने के बाद ही आकार ग्रहण करेगा। यह भी संभव है कि मंगल ग्रह अभियान बहुत जटिल और ख़र्चीला होने के कारण रूस उसे अकेले निष्पादित करने के बदले अमेरिका और यूरोप के साथ मिल कर साकार करे। रोसकोस्मोस के अधिकारी इस तरह के संकेत कई बार दे चुके हैं।

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