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जी हाँ, सच में टूटता है दिल

'ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम' और हार्टअटैक में अंतर है

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, शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010 (13:04 IST)
प्यार में दिल टूटने के कितने ही फसाने हमने, आपने सुने हैं। किसी के बिछोह में भी दिल टूटने के किस्सों से हम वाकिफ हैं। कई बार तो किसी करीबी द्वारा किया गया विश्वासघात दिल तोड़कर रख देता है। आमतौर पर यह 'दिल का टूटना' अलंकारिक भाषा से उपजी अभिव्यक्ति मात्र मानी जाती है।

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कई समझदार लोग आपको यह कहते हुए मिलेंगे कि 'दिल कोई सचमुच में थोड़े ही टूटता है!' मगर सच तो यह है कि चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि दिल टूटता है। चिकित्सकीय भाषा में इसे 'ताकोत्सुबो कार्डियोपैथी' कहते हैं। हालाँकि बोलचाल में इसे 'ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम' भी कहा जाता है।

मेडिकल साइंस के अनुसार दिल की यह टूटन अचानक किसी बुरी खबर से रूबरू होने पर भी हो सकती है और कोई चौंकाने वाली अच्छी खबर मिलने पर भी। यहाँ दिल टूटने से आशय है अचानक हृदय के बाएँ हिस्से की मांसपेशियों का कुछ देर के लिए कमजोर पड़कर शिथिल हो जाना।

परेशानी की बात यह है कि इसके लक्षण बहुत कुछ दिल के दौरे के लक्षण से मिलते-जुलते होते हैं। ये हैं अचानक सीने, गर्दन और बाँईं बाजू में तीव्र दर्द, साँस फूलना तथा वोमेटिंग सेंसेशन होना। इससे रोगी के परिजन तो असमंजस में पड़ ही जाते हैं, डॉक्टरों के लिए भी तुरंत यह जानना मुश्किल होता है कि रोगी को हार्ट अटैक हुआ है या वह ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम का शिकार है।

ऐसे एक 'टिपिकल' केस का उदाहरण देखिए : अस्पताल में एक अधेड़ महिला इमरजेंसी रूम में लाई जाती है। परिजनों और फैमिली डॉक्टर को यकीन है कि उसे दिल का दौरा पड़ा है क्योंकि सारे लक्षण उसी के हैं। जब ईसीजी और अल्ट्रासाउंड किया जाता है तो डॉक्टर पाते हैं कि उसके दिल का बाँया भाग काम नहीं कर रहा, लेकिन हृदय की किसी भी धमनी में कोई रुकावट नहीं है और न ही हृदय को होने वाले रक्त प्रवाह में कोई गड़बड़ी है। हृदय के वाल्व में भी कोई खराबी नजर नहीं आती।

एकमात्र 'अनियमितता' यह है कि दिल के बाँईं ओर की मांसपेशियाँ शिथिल हो गई हैं, मानो उन्हें लकवा मार गया हो। अस्पताल के डॉक्टर समझ जाते हैं कि यह मामला दिल की 'टूटन' का है। हालाँकि इस स्थिति में जान को जोखिम हो सकता है लेकिन हृदयाघात की तुलना में यह कहीं कम खतरनाक होती है।

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एक दिलचस्प बात यह देखने में आई है कि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की शिकार 90 प्रतिशत मरीज 50 से 70 वर्ष के बीच की महिलाएँ होती हैं। डॉक्टर मानते हैं कि महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन नामक हारमोन के स्तर में आई गिरावट के चलते कोई विस्मयकारी घटना घटने पर उनका ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम अधिक सक्रिय हो उठता है। इससे शरीर में बहुत अधिक मात्रा में स्ट्रेस हारमोन का स्राव हो उठता है और इसी के कारण हृदय की मांसपेशियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

इस अवस्था में रोगी को आईसीयू में कड़ी निगरानी में रखा जाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि डॉक्टर को पता हो कि यह ब्रोकन हार्ट का मामला है और वह हृदयाघात के लिए उपचार शुरू न कर दे। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। हृदय के बाएँ हिस्से की मांसपेशियों में आई शिथिलता धीरे-धीरे कुछ दिन या कभी-कभी कुछ सप्ताह में दूर हो जाती है। इस घटना के कारण मांसपेशी को कोई स्थायी नुकसान नहीं होता।

अब आप सोच रहे होंगे कि दिल की इस टूटन का चिकित्सकीय नाम जापानी-सा क्यों लगता है! इसका कारण यह है कि यह नाम जापानी ही है लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि जापानी महिलाओं का दिल ज्यादा टूटता है। दरअसल ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में मांसपेशियाँ शिथिल पड़ने से हृदय का जो आकार हो जाता है, वह जापान में मछुआरों द्वारा ऑक्टोपस पकड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जाल जैसा लगता है। इस जाल को जापानी भाषा में ताकोत्सुबो कहते हैं। इसी से इस अवस्था का नामकरण 'ताकोत्सुबो कार्डियोपैथी' हुआ।

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