चारों तरफ लाखों लोग मर रहे हैं- कोई बाढ़ से, कोई भूकंप से, कोई सुनामी से तो कोई भूखमरी से। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह प्रलय नहीं तो और क्या है? दुनियाभर की 20 सरकारों की कमीशन रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन आने वाले दिनों में सबसे बड़ी समस्या होगी जो कई विकासशील देशों में बड़ी संख्या में मौत का कारण बनेगी।पर्यावरण से जुड़े संगठन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया में वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित लगभग 10 करोड़ लोगों की मौत हो जाएगी। विकसित देशों के समुह से जुड़े क्लाइमेट फोरम में यह रिपोर्ट मानवीय संगठन डीएआरए ने जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे पहाड़ों पर जमी बर्फ की चोटियां पिघलेंगी। अनुममान है कि पृथ्वी का तापमान लगभग 1 डीग्री बढ़ गया है।इस सबके कारण मौसम बहुत खराब होगा और कहीं भयानक सूखा तो कहीं बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होगी। यह सब बढ़ती जनसंख्या और दुनिया की जीडीपी के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में मंडरा रहा है।रिपोर्ट में यह अनुमान भी लगाया गया है कि हर साल 50 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण और भुखमरी से हो सकती है। जलवायु परिवर्तन से लोगों में गंभीर बीमारियां पैदा होंगी। अगर इसे समय रहते नहीं रोका गया तो वर्ष 2030 तक यह आंकड़ा लगभग हर साल 60 लाख लोगों की मौत तक पहुंच सकता है।रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से 90 फीसदी मौतें विकासशील देशों में होंगी। इसका प्रभाव 2010 से लेकर 2030 तक 184 देशों में होगा। 2030 तक माना जा रहा है कि जीवाश्म ईंधन के ताबड़तोड़ इस्तेमाल की वजह से मृतकों का आंकड़ा 60 लाख प्रति वर्ष तक हो सकता है।एक अनुमान यह भी है कि अगले दस साल में इससे लगभग एक अरब लोगों की मौत हो सकती है जो कि एक भयावह आंकड़ा हो सकता है।
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जलवायु परिवर्तन का मतलब जलवायु में आने वाले व्यापक बदलाव से है। उदाहरण के लिए, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, मौसम बदल रहा है और कहीं अधिक तो कभी कम वर्षा हो रही है। इसके चलते कृषि उत्पादन घटता जा रहा है, प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है और लोग नए तरह के रोग का सामना कर रहे हैं।मौसम के स्वरूप में बदलाव खाद्य उत्पादन के लिए चुनौती पैदा कर रहा है, जबकि समुद्र का बढ़ा हुआ जल स्तर में तटीय जल भंडारों को दूषित कर सकता है और भयंकर बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकती है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टान एवं हिम स्खलन और कुछ आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वनस्पति और प्राणी समूहों में बदलाव होने लगे हैं।जलवायु परिवर्तन का उन देशों पर भीषण असर होगा, जहां आबादी का बड़ा हिस्सा खेती से जुड़ा और मौसम के मिजाज पर निर्भर है। पानी पहले से दुर्लभ हो चुका है और उसका वितरण भी ठीक नहीं है। हिमालय के ग्लेशियर पिघल ही रहे हैं। ऐसे में, खाद्यान्न उत्पादन सिमटने के साथ-साथ भविष्य में जंगल और पेड़-पौधे भी कम होंगे।समुद्र का जल-स्तर बढ़ने के कारण समुद्रतटीय इलाके के लोग पहले ही प्रभावित हैं, भविष्य में भीषण स्थिति आने पर उन क्षेत्रों से भारी संख्या में पलायन होगा, जिससे पहले से ही भीड़ भरे शहरों-महानगरों पर बोझ और बढ़ेगा।
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धरती के 75 प्रतिशत हिस्से पर जल है और सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्से पर ही मावन की गतिविधियां जारी थी। आज से 200-300 सौ साल पहले मानव की आकाश और समुद्र में पकड़ नहीं थी, लेकिन जबसे मानव ने आकाश और समुद्र में दखलअंदाजी की है, धरती को पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है।धरती का अपना एक परिस्थितिकी तंत्र होता था। उस तंत्र के गड़बड़ाने से जीवन और जलवायु असंतुलित हो गया है। मानव की प्रकृति में बढ़ती दखलअंदाजी के चलते वह तंत्र गड़बड़ा गया है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कहीं सुनामी तो कहीं भूकंप और कहीं तूफान का कहर जारी है। दूसरी और धरती के उपर ओजन पर्त का जो जाल बिछा हुआ है उसमें लगभग ऑस्ट्रेलिया बराबर का एक छेद हो चुका है। जिसके कारण धरती का तापमान 1 डिग्री बढ़ गया है।एक अन्य शोध के चलते वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप आदि आपदाओं के कारण धरती अपनी धूरी से 2.50 से 3 डिग्री घिसक गई है जिसके कारण भी जलवायु परिवर्तित हो गया है।
क्या धरती विनाश का सामना करने वाली है? पढ़ें अगले पन्ने पर...
कुछ माह पूर्व जर्नल में छपी एक स्टडी में कैलीफोर्निया की बर्कले यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने इस बात का मूल्यांकन किया कि स्तनधारी और अन्य प्रजातियां संभावित विलुप्ति के मामले में 54 करोड़ साल पहले की तुलना में आज ज्यादा भयानक स्थिति में है।कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रफेसर एंटनी बार्नोस्की ने कहा कि अगर आप विलुप्त होने के कगार पर पहुंचे स्तनधारियों को ही केवल देखें तो वे केवल 1000 सालों में लुप्त हो जाएंगे। यह हमें बताता है कि हम सर्वनाश की ओर बढ़ रहे हैं।' उन्होंने कहा कि खतरे में पड़ी प्रजाति विलुप्त हो जाए और विलुप्त होने की यह दर जारी रही तो छठा सर्वनाश 3 से 22 शताब्दियों के बीच में आ सकता है।