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बरसों बाद सुध आई है बुध की

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राम यादव

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अंतरिक्ष की अपार गहराइयों में 7 अरब 90 करोड़ किलोमीटर चलने के बाद अमेरिकी अन्वेषणयान मेसेंजर इस सप्ताह बुध ग्रह (मर्क्यूरी) के एकदम पास पहुँचने वाला है। सौरमंडल में बुध ग्रह ही सूर्य का सबसे निकटवर्ती, मान्यता प्राप्त ग्रहों में सबसे छोटा और हमारे लिए अब तक सबसे अनजान ग्रह कहलाता है। तीस साल बाद पृथ्वीवासियों को एक बार फिर सुध आई है बुध की।

मेसेंजर तीन अगस्त 2004 को अपनी यात्रा पर चला था। किसी यान को जब इतनी लंबी अंतरग्रहीय यात्रा पर भेजना होता है, तब वैज्ञानिक ईंधन बचाते हुए उसे अधिकतम त्वरण (एक्सिलरेशन) देने के लिए एक अनोखी युक्ति काम में लाते हैं।

वे यान का मार्ग इस तरह तय करते हैं कि वह रास्ते में पड़ने वाले ग्रहों-उपग्रहों के पास से होता हुआ कुछ इस तरह से गुजरे (स्विंग बाई) कि उनके गुरुत्वाकर्षण बल से खिंचकर उसकी गति तो अपने आप और बढ़ जाए, लेकिन वह उनके गुरुत्वाकर्षण के चंगुल में में फँसकर उन्हीं का चक्कर लगाने के बदले अपने लक्ष्य की दिशा में आगे निकल जाए। इससे यात्रा-दूरी और लगने वाला समय काफ़ी बढ़ तो जाता है, लेकिन बहुत कम ईंधन के साथ बहुत दूर-दूर के आकाशीय पिंडों के पास पहुँचना भी संभव हो जाता है।

मेसेंजर भी अमेरिका में केप कैनेवरल, फ्लोरिडा से रवाना होने के ठीक एक साल बाद, दो अगस्त 2005 को सबसे पहले पृथ्वी के ही गुरुत्वाकर्षण बल का लाभ उठाने के लिए उसके पास आता हुआ उससे 2347 किलोमीटर की दूरी पर से गुजरा। इसी तरह वह शुक्र ग्रह के पास से होता हुआ 24 अक्टूबर 2006 को 2990 किलोमीटर की दूरी पर से पहली बार और 5 जून 2007 को केवल 337 किलोमीटर की दूरी पर से दूसरी बार गुजरा।

शुक्रवार 18 मार्च को भारत में जब सुबह के सवा सात बजे होंगे, तब मेसेंजर पहली बार बुध ग्रह की परिक्रमा कक्षा में प्रवेश करेगा। तब वह अगले एक साल तक बुध ग्रह से 200 से 15000 किलोमीटर दूर रहते हुए उसके चक्कर लगाएगा और पहली बार उसकी संपूर्ण ऊपरी सतह का नक्शा बनाने लायक चित्र पृथ्वी पर भेजेगा। इसके अलावा उसमें रखे सात अलग-अलग उपकरण और कैमरे उसकी भूपटलीय और भूगर्भीय संरचना, उसकी उत्पत्ति के इतिहास, वायुमंडल की बनावट, खनिज पदार्थों, उसके चुंबकीय क्षेत्र और सौर आँधियों के उस पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में आँकड़े इत्यादि भेजेंगे।

मेसेंजर इससे पहले तीन बार- जनवरी और अक्टूबर 2008 में तथा सितंबर 2009 में- हर बार बुध ग्रह से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर से गुज़रता हुआ उसके चित्र इत्यादि भेज चुका है। 14 जनवरी 2008 को बुध ग्रह के पास से गुजरते हुए जब उसने पहली बार वहाँ के चित्र भेजे, तो पृथ्वी पर कुछ तकनीक समस्याओं के कारण उसके सिग्नल पाने में वैज्ञानिकों को 10 घंटे लग गए। तीस साल बाद वे एक बार फिर बुध ग्रह की तस्वीरें देख रहे थे। तीस साल बाद एक बार फिर आदमी ने इस ग्रह की सुध ली थी।

बुध काफी रहस्यमय और अजीब ग्रह है। वह इतना छोटा है कि पृथ्वी पर से रात को दिखता नहीं और दिन में भी सूर्य की चमक के आगे नदारद रहता है। केवल कभी-कभी सुबह या शाम के झुटपुटे में उसकी हल्की-झलक मिल जाती है।

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