Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

बिजली के नंगे तार से जानवरों का शिकार

- रायपुर से सुखनंदन बंजारे

Advertiesment
हमें फॉलो करें बिजली के नंगे तार से जानवरों का शिकार
, गुरुवार, 13 जनवरी 2011 (15:56 IST)
छत्तीसगढ़ के जंगल-पहाड़ में जब से नक्सलियों ने कब्जा जमाया है, तब से परिंदा भी पर मारने के पहले कई बार सोचता है। गोलियों की धांय-धांय और बम के धमाकों से अब कहां जंगल में मंगल ? कभी सिंहनाद से जहां पूरा जंगल थर्रा उठता था, वहां हालत यह है कि खुद सिंह ही दुबका हुआ है। हिरणों की उछल-कूद, बंदरों की कारस्तानियां, हाथियों की चिंघाड़, मोर का थिरकना, कोयल, पहाड़ी मैना समेत विभिन्न पक्षियों की मीठी तान, नदियों की कल-कल, झरनों की झर-झर, हवा की सर-सर। यही तो जंगल का आनंद है। यही देखने के लिए नए साल या अन्य अवसर पर लोग दूर-दूर से यहां आते रहे हैं लेकिन अब पर्यटकों की संख्या लगातार घट रही है।
ND
SUNDAY MAGAZINE

उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में अब वह आकर्षण नहीं रहा। नक्सली खौफ के अलावा वनमाफिया की बुरी नजर वन और वन्यजीवों पर लगी हुई है। अब तो जानवरों को मारने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। खाल, हड्डी, नाखून, दांत आदि की तस्करी की जा रही है। ये तस्कर अब जंगली जानवरों को जहर देकर और बिजली के नंगे तार फैलाकर उनकी जान ले रहे हैं और जंगल महकमे के अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

यह भी पढ़े - बढ़ती योजनाएँ, घटते टाइगर

यहां के जंगलों में वन्य प्राणियों का शिकार धड़ल्ले से चल रहा है। शिकार के लिए पहले गोली-बारूद, जाल या अन्य हथियारों का उपयोग किया जाता था। बायसन, हिरण आदि के शिकार के लिए शिकारी कुत्तों को भी छोड़ा जाता था। इसमें शिकारियों को काफी मेहनत करनी पड़ती थी लेकिन शिकारियों ने अब शिकार करने का तरीका बदल लिया है।

अब वे जहर और बिजली का प्रयोग कर रहे हैं। गर्मी में जब जंगल के जल स्रोत सूख जाते हैं और वन्य प्राणी गर्मी से बेहाल पानी के लिए भटकने लगते हैं, तब शिकारियों की बांछें खिल जाती हैं। वे जंगल में किसी छोटे से गड्ढे में पानी भरकर उसमें जहर घोल देते हैं। इसके लिए बहुधा यूरिया खाद का प्रयोग किया जाता है। प्यास बुझाने के लिए वन्य जीव इस जहरीले पानी को पी जाते हैं और वहीं अपने प्राण त्याग देते हैं।

जंगल में जब पानी की समस्या नहीं होती तब शिकार के लिए बिजली का प्रयोग किया जाता है। जंगल के आसपास गांवों से गुजरी बिजली लाइन पर हुकिंग कर जंगल में करंट प्रवाहित तारों का जाल फैला दिया जाता है। विचरण करते हुए जंगली पशु इसकी चपेट में आ जाते हैं और मौके पर ही उनकी मौत हो जाती है।

(आगे पढ़ें...)


गोली-बारूद चलाने से तेज आवाज गूंजती है। इससे शिकारियों की करतूतें उजागर होने और पकड़े जाने का खतरा भी बना रहता है। साथ ही अगर निशाना सही लगा तो ठीक वरना हाथ आया शिकार भी हाथ से निकल जाता है। जहर या बिजली करंट से वन्य प्राणियों को सायलेंट मौत मारा जा रहा है। किसी को शिकार होने की भनक तक नहीं लगती है और आसानी से शिकार भी हाथ आ जाता है बल्कि एक बार में एक साथ कई शिकार भी हाथ लग जाते हैं।
webdunia
ND
SUNDAY MAGAZINE

बार अभयारण्य क्षेत्र में बीते कुछ वर्षों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। कुछ लोग पकड़े भी गए हैं लेकिन वे स्थानीय ग्रामीण हैं। बड़े शिकारी आज भी वन विभाग अधिकारी की पहुंच से दूर हैं। बड़े शिकारी ही वन क्षेत्र के ग्रामीणों का उपयोग करते हैं। इसमें वनकर्मियों की भी मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता। जंगली क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण शिकारी नहीं होते बल्कि वे तो वन और वन्य प्राणियों से प्रेम करते हैं उनकी पूजा करते हैं, उनकी रक्षा करते हैं।

अपवाद स्वरूप जो लोग होते भी हैं, वे कभी-कभार ही मांस खाने के लिए शिकार करते हैं, वह भी पक्षी, मुर्गा, सूअर आदि छोटे पशुओं का। जंगल के तेंदुआ, भालू, हिरण, बायसन, चीतल, सूअर, नील गाय आदि वन्य प्राणियों पर शिकारियों का कहर टूट पड़ा है। शहरी इलाके में पुलिस की निगाह में आने या मुखबिर की सूचना पर तस्करों से तेंदुआ की खाल बरामद करने की घटनाएं आए दिन हो रही हैं।

बार अभयारण्य क्षेत्र में ही कुछ महीनों पूर्व एक हाथी की मौत करंट लगने से हो गई थी। वह एक किसान के खेतों में बोरवेल के लिए खींचे गए बिजली तार की चपेट में आ गया था और खेत में ही उसकी दर्दनाक मौत हो गई थी। हालांकि वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों ने इस पर भी लीपापोती का प्रयास किया। शिकारियों की आपसी लड़ाई से कभी-कभी गुप्त सूचना मिल जाती है तो वन विभाग कार्रवाई करता है। पिछले दिनों कवर्धा जिले के अंतर्गत कुछ ग्रामीणों ने एक बाघ को जहर देकर मार डाला। इस मामले में 9 ग्रामीणों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। उन्होंने बाघ को मारकर उसके कई अंग गायब कर दिए थे। पकड़े जाने पर उन्होंने यह बताया कि वे बाघ से तंग थे। वह आए दिन ग्रामीणों पर हमला कर रहा था।

लेकिन सच तो यह है कि ग्रामीणों ने उसकी खाल, नाखून, दांत आदि के लिए उसे मारा। ग्रामीणों ने बाघ के शिकार में जहर मिलाकर छोड़ दिया था, जिसे खाकर वह मर गया। देश में बाघों की संख्या कम होने के लिए वन विभाग के स्वार्थी और लापरवाह अधिकारी भी कम जिम्मेवार नहीं हैं। वे अपने दायित्व का निष्ठापूर्वक पालन नहीं कर रहे हैं। अपनी कमी छिपाने के लिए यहां के अधिकारी कुछ ग्रामीणों को पकड़कर मामले को दबा देते हैं ।

(आगे पढ़ें...)


दुनिया की सबसे उम्रदराज बाघिन छत्तीसगढ़ के मिनी जू नंदनवन में थी। वह 23 साल की हो गई थी। 2010 में वह भी चल बसी। 'शंकरी' नाम की वह बाघिन तो अपनी पूरी उम्र जीकर मरी लेकिन छह नन्हे तेंदुए और एक उम्रदराज तेंदुए 'बालि' कैसे मरा, यह जांच का विषय है ? बताते हैं कि 'बालि' पिछले कई वर्षों से मिरगी जैसी बीमारी से पीड़ित था।
webdunia
ND
SUNDAY MAGAZINE

पिछले कुछ दिनों से उसकी हालत कुछ ज्यादा गंभीर थी। सवाल यह उठता है कि जब 'बालि' पिछले कई वर्षों से बीमार था तो उसका इलाज क्यों नहीं किया गया ? जाहिर है कि कहीं न कहीं संबंधित अधिकारियों की इसमें लापरवाही है। 1994 में 'बालि' का नंदनवन में ही जन्म हुआ था। वहीं उसने आंखें खोलीं, खेला-कूदा, बड़ा हुआ और वहीं उसने आखिरी सांस ली। वह सबसे अधिक उमर का तेंदुआ था। पिछले पांच महीने में 15 से भी अधिक वन्य जीवों की मौत हो चुकी है। इसके पहले बाघिन 'शंकरी' की मौत का दुख कम नहीं हुआ था कि 'बालि' भी चल बसा।

इसी तरह भिलाई स्थित मैत्री बाग में पिछले महीने छह तेंदुए की ठंड के कारण मौत हो गई। इस मामले में मैत्री बाग प्रबंधन की लापरवाही उजागर हुई। संबंधित अधिकारियों ने ठंड के बावजूद वन्य जावों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। यही कारण है कि मैत्री बाग जैसे प्रतिष्ठित चिड़ियाघर में बेजुबान वन्यजीव मर रहे हैं। प्रबंधन चाहता तो इन तेंदुओं को बचाया जा सकता था।

प्रदेश वनमंत्री विक्रम उसेंडी ने कहा कि वन्यजीवों के लिए आरक्षित वन हैं और वन्य जीवों के शिकार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है। वहीं वन्यजीवों को सुरक्षित रखने के लिए वन विभाग को खास निर्देश दिए गए है ं। इसके तहत शिकारियों और अवैध तस्करी पर रोक लगाई जा सके। वन्यजीवों का शिकार करने का अपराध जो आदमी करेगा उसे बख्शा नहीं जाएगा चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। वन्यजीवों के कारण ही हमारे वन सुरक्षित रहे हैं। वे हमारे लिए बेहद प्रिय हैं। सरकार इस मामले में और भी सख्ती बरतेगी।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) रामप्रकाश ने कहा कि प्रदेश में वन्य जीवों को सुरक्षित करने के लिए लगातार उपाय किए जा रहे है। रहा सवाल शिकार का तो प्रदेश में किसी तरह का शिकार नहीं होता। हां, इतना जरूर है कि पिछले दिनों ग्रामीणों ने जरूर एक बाघ को जहर देकर मार डाला था लेकिन विभाग ने आरोपियों को पकड़ लिया। फिलहाल शेरों की गिनती का काम वर्ल्ड वाइड द्वारा किया जा रहा है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi