बैक्टीरिया का कहर अब ठहर रहा है
, शुक्रवार, 10 जून 2011 (18:05 IST)
जर्मनी और उसके पड़ोसी देश पिछले तीन सप्ताहों से जिस बैक्टीरिया के कहर से कांप रहे थे, वह अब धीरे-धीरे ठंडा पड़ता लग रहा है। रक्तमिश्रित अतिसार (दस्त) पैदा करने वाले आंत्ररोग के लिए कुख्यात यह बैक्टीरिया नौ जून तक कम से कम 26 प्राणों की बलि ले चुका था।'
एन्टेरोहीमोरैजिक एशेरिषिया कोलाई'(Enterohemorrhagic Escherichia coli -EHEC) कहलाने वाला यह बैक्टीरिया 'बिन बादल बरसात' की तरह जैसे आया, अपने आने के स्रोत बताए बिना वैसे ही वापस भी जा रहा लगता है। संक्रामक रोगों पर नजर रखने वाले जर्मनी के केंद्रीय संस्थान बर्लिन स्थित 'रोबेर्ट कोख इंस्टीट्यूट' ने नौ जून को बताया कि नए बीमारों की संख्या अब घट रही है। अस्पतालों में भर्ती होने वाले ऐसे रोगियों की संख्या भी उतार पर है, जो दस्त के साथ खून जाने से पीड़ित हैं। इस तरह के पहले मामले को गत एक मई को दर्ज किया गया था। तबसे अब तक कुल करीब 2800 लोग EHEC से संक्रमित हुए हैं।'
रोबेर्ट कोख इंस्टीट्यूट' के अनुसार, इन में से 722 रोगियों में यह बीमारी उस प्राणघातक गंभीर अवस्था में पहुंच गई, जिसे 'हीमोलाइटिक-यूरेमिक सिंड्रोम' (hemolytic-uremic syndrome-- HUS) कहा जाता है। इस अवस्था में बैक्टीरिया द्वारा पैदा किए जाने वाले विष के कारण गुर्दे खून को साफ नहीं कर पाते। खून में विषाक्तता बढ़ती जाती है और साथ ही रोगी का तंत्रिकातंत्र (नर्वस-सिस्टम) भी जवाब देने लगता है। तब मृत्यु को टालना बहुत मुश्किल हो जाता है। अब तक के 26 मृतकों में से 18 की मृत्यु इसी सिंड्रोम (संलक्षण) के कारण हुई।बैक्टीरिया आया कहां से, रहस्य बरकरार यह बैक्टीरिया कहां से आया और उसका संक्रमण इस तेजी से कैसे फैला, यह अब भी रहस्य बना हुआ है। विशेषज्ञ अब भी कुछ नहीं जानते, पर यही कह रहे हैं कि खीरे, टमाटर, पत्तेदार सलाद और अंकुरित अनाजों व बीजों पर उनका शक अब भी बना हुआ है। रोगियों से हुई पूछताछ में उन्होंने बार-बार यही कहा कि उनका पेट कच्चे खीरे, टमाटर और पत्तेदार सलाद या उनके मिश्रण को खाने के बाद ही बिगड़ा। अंकुरित अनाज भी शक के घेरे में अंकुरित अनाजों वाले सलाद की याद शायद ही किसी रोगी को आई। शक की सूची में उनका नाम बड़े नाटकीय ढंग से शामिल हुआ। रविवार, पांच जून को पता चला कि जर्मनी के लोवर सैक्सनी राज्य की एक बागबानी-नर्सरी में काम करने वाली दो महिला कर्मचारी बीमार पड़ गई हैं। उन्हें आंत्ररोग पैदा करने वाले EHEC बैक्टीरिया का संक्रमण लग गया है। बीमार पड़ने से पहले उन्होंने अपनी नर्सरी के ऐसे कच्चे अंकुरित अनाज खाए थे, जो सलाद बनाने के काम आते हैं।उस नर्सरी को तुरंत बंद कर दिया गया। प्रयोगशाला में परीक्षा के लिए अंकुरित अनाजों व बीजों के पहले 40 और बाद में कई सौ सैंपल लिए गए। पर इन सैंपलों में बैक्टीरिया की 'ई. कोलाई O104:H4' वाली वह प्रजाति नहीं मिली, जो सबको बीमार कर रही थी।विशेषज्ञ एक बार फिर किंकर्तव्यविमूढ़ थे। तब भी वे दो कारणों से अंकुरित अनाजों व बीजों को शक से बाहर नहीं करना चाहते। एक तो यह, कि हो सकता है कि अंकुरित दानों की जिस खेप पर पर ई. कोलाई O104:H4 के रोगाणु चिपके रहे हों, वे इस बीच बिक गईं हों और खा-पी ली गई हों, यानी सैंपल लेने के समय तक बची ही न हों। दूसरा कारण यह है कि जापान में जुलाई 1996 में ऐसा ही एक संक्रमण फैल चुका है, जो वहीं की एक बागबानी फर्म से आए मूली के अंकुरित बीजों से फैला था। उस समय जापान में 10 हजार लोग बीमार पड़े थे और करीब एक दर्जन को अपने प्राण गंवाने पड़े थे।जापान का किस्सा 1996
में जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को आगाह किया था कि वे मूली के अंकुरित बीजों से दूर रहें, हालांकि प्रयोगशालाओं में यह प्रमाणित नहीं हो पाया कि उस फर्म से आए मूली के बीज प्रदूषित थे। उस समय जापान के ओसाका शहर में और उसके आस-पास कुल 9492 लोग अचानक अतिसार वाले एक आंत्ररोग से पीड़ित हो गए थे, जिसके लिए E.coli O157 नामक बैक्टीरिया को जिम्मेदार ठहराया गया।यह बीमारी जापान के अन्य हिस्सों में भी फैली। कुल 10322 लोगों का इलाज करना पड़ा। अधिकतर बीमार बच्चे थे। जापान की खाद्य-स्वच्छ्ता संस्था के प्रमुख सातोशी ताकाया उन दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इस मामले को देख रहे थे। वे बताते हैं कि अधिकतर बीमारों ने सफेद मूली के अंकुरित बीज ही खाए थे, इसलिए संक्रमण का स्रोत भी वही रहे होंगे। एक फर्म ने ये अंकुरित बीज स्कूलों की कैंटीनों को और एक वृद्धजन आश्रम को सप्लाई किए थे। उस आश्रम में भी लोगों को अतिसार होने लगा था। सातोशी ताकाया कहते हैं कि अंकुरित बीज सप्लाई करने वाली फर्म की अच्छी तरह छानबीन की गई। उसके पानी को भी जांचा-परखा गया। लेकिन, सही बैक्टीरिया नहीं मिला। मिला यह कि बीजों के अंकुरण के लिए जो पानी इस्तेमाल किया जाता है, जांच-परख के समय उसमें क्लोरीन की मात्रा इतनी अधिक थी कि यही कहा जा सकता है कि यहां जरूर कुछ हेरफेर की गई है।जापान को भी स्रोत का पता नहीं चला जापानी अधिकारियों को E.coli O157 तो नहीं मिला, तब भी वहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी चेतावनी कायम रखी। लोगों ने अगले कुछ वर्षों तक अंकुरित बीजों और अनाजों के सेवन से इस तरह परहेज किया कि उनकी खेती करने वाले बहुत से किसानों का दीवाला निकल गया। उन्होंने सरकार पर क्षतिपूर्ति का मुकदमा भी दायर किया। सरकार 2003 तक चला मुकदमा हार भी गई, लेकिन E.coli O157 ने फिर कभी सिर भी नहीं उठाया। सरकार ने अनाजों और बीजों को अंकुरित करने की प्रक्रिया में स्वच्छता संबंधी जो कड़े नियम बनाए, उनका आज तक पालन हो रहा है।बागबानी नर्सरी बंद जर्मनी की जिस बागबानी नर्सरी को बंद कर दिया गया है, वहां अलग-अलग देशों से आयातित 18 अलग-अलग प्रकार की दालों, बीजों और सोयाबीन जैसी चीजों को 38 डिग्री गरम पानी में रख कर अंकुरित किया जाता था। अंकुरण क्रिया को तेज करने के लिए इस मिश्रण को कपड़ा धोने की वॉशिंग मशीन वाले ड्रम की तरह के एक ड्रम में रख कर लगातार घुमाया जाता था। इस तापमान और नमी के बीच न केवल अंकुरण-क्रिया तेज हो जाती है, बैक्टीरियों की वंशवृद्धि भी बहुत बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि क्योंकि किसी को बीमार करने के लिए E coli O104:H4 के केवल 10 अदद बैक्टीरिया भी काफी हो सकते हैं, इसलिए उनकी बहुत थोड़ी-सी संख्या भी बहुत-से लोगों को बीमार कर सकती है। अंकुरण प्रक्रिया बहुत साफ-सुथरी लगने पर भी बहुत थोड़ी-सी संख्या में कुछेक सौ बैक्टीरिया इस तरह पैदा हो सकते हैं कि बाद में उनका पता ही न चल सके। नवीनतम समाचारों के अनुसार, संक्रामक रोगों पर नजर रखने वाले जर्मनी के केंद्रीय संस्थान बर्लिन स्थित 'रोबेर्ट कोख़ इंस्टीट्यूट' ने इस बीच खीरे, टमाटर और हरी पत्तियों वाले सलाद को खाने के विरुद्ध अपनी चेतावनी उठा ली है, लेकिन अंकुरित अनाजों और बीजों के बारे में चेतावनी पर और अधिक जोर दे रहा है।
कोई बिल्कुल नया बैक्टीरिया नहीं इस बीच केवल इतना ही पता चल सका है कि E coli O10:H4 कहलाने वाला यह बैक्टीरिया कोई बिल्कुल नया बैक्टीरिया नहीं है, जैसा कि मीडिया में कहा जा रहा है। इस बैक्टीरिया पर शोध के मामले में सबसे अग्रणी जर्मनी के म्युन्स्टर विश्वविद्यालय-अस्पताल के अधीन स्वच्छता संस्थान के निदेशक प्रोफेसर हेल्गे कार्श का कहना है कि 'वह एक ऐसा वर्णसंकर (हाइब्रिड) क्लोन है, जिसमें अलग-अलग रोगाणुओं की उग्रता का मिश्रण हुआ है।' जिन वर्णों का संकरण हुआ है, वे नए नहीं हैं, बल्कि दुनिया में पहले भी देखे गये हैं, हालांकि बहुत ही कम।' प्रो. कार्श के सहयोगी वैज्ञानिकों ने पाया कि इस बैक्टीरिया के खतरनाक गुण वास्तव में 2001 से ही ज्ञात हैं। बैक्टीरियों के बीच वर्णसंकर जर्मनी के ही हैम्बर्ग-एपेनडोर्फ विश्वविद्यालय वाले अस्पताल के शोधकों ने इस बीच चीनी सहयोगियों की मदद से इस बैक्टीरिया के जीनोम (संपूर्ण जीनों) को पढ़ लिया है। उन्होंने पाया है कि वह दो मिलते-जुलते वर्णों वाले E coli बैक्टीरियों के बीच वर्णसंकर से बना है। म्युन्स्टर वाले वैज्ञानिक भी जर्मनी में डार्मश्टाट की एक प्रयोगशाला की जीनोम विश्लेषण मशीन की सहायता से इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उनका कहना है कि E coli O10:H4 में EHEC के साथ-साथ बड़ी आंत के भीतर रहने वाले EAEC और उससे बाहर रहने वाले EIEC प्रकार वाले बैक्टीरियों के गुणों का मेल हो गया है। वह हमारी बड़ी आंत की भीतरी दीवार से बुरी तरह चिपक जाता है और साथ ही एन्टीबायॉटिक दवाओं की काट करने वाला उसका प्रतिरोधी गुण पहले की अपेक्षा बढ़ गया है। हमारे गुर्दे की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करने की उसकी क्षमता भी पहले की अपेक्षा अधिक हो गई है। 50
प्रतिशत रोगियों के तंत्रिकातंत्र में जटिलताएं जर्मनी के अस्पतालों में यह भी देखने में आया है कि बैक्टीरिया द्वारा रक्त में फैलाए जाने वाले विष के कारण गुर्दों के फेल होने और लाल रक्त-कोशिकाओं के मरने की 'हीमोलाइटिक-यूरेमिक सिंड्रोम' (hemolytic-uremic syndrome-- HUS) कहलाने वाली गंभीर अवस्था में करीब 50 प्रतिशत रोगियों के तंत्रिकातंत्र (नर्वस सिस्टम) में जटिलताएं पैदा होने लगती हैं। उनके मस्तिष्क में ये गड़बड़ियां HUS अवस्था शुरू होने के सामान्यतः तीन-चार दिन बाद देखने में आती हैं। वे सिरदर्द से लेकर बोलने की क्षमता में बाधा और मिर्गी के दौरे जैसी भी हो सकती हैं।सबसे चिंता की बात सबसे चिंता की बात यह है कि इन गड़बड़ियों पर लक्षित उपचार तुरंत शुरू करने पर भी रोगी की हालत सुधरती नहीं, बल्कि कई बार तो और भी बिगड़ जाती है। यह भी देखा गया कि मस्तिष्क में होने वाली ये गड़बड़ियां बीमारी के संक्रमण के अंतिम चरण में ही नहीं, आरंभिक अवस्था के साथ भी पैदा हो सकती हैं। इसलिए, सभी अस्पतालों से कहा जा रहा है कि HUS वाले लक्षणों का संदेह होते ही तंत्रिका विशेषज्ञों (न्यूरोलॉजिस्ट) की भी सेवाएं लें और रक्ताधान के लिए लोगों से रक्तदान का आग्रह करें।यह सब बहुत ही भयावह और चिंताजनक बातें हैं। आशा यही करनी चाहिए कि EHEC बैक्टीरिया के आतंक का शिखर अब सचमुच पीछे छूट रहा है। यह कहर अब सचमुच उतार पर है और हम शीघ्र ही राहत की सांस ले सकते हैं।