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ब्रह्मकण: जानिए संपूर्ण जानकारी तथा विश्लेषण

वैज्ञानिक पहुंचे ब्रह्मकण की ड्यौढ़ी पर

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राम यादव

स्विट्ज़रलैंड में जेनेवा स्थित यूरोपीय परमाणु भौतिकी प्रयोगशाला 'सेर्न' के वैज्ञानिक सृष्टिरचना के अब तक के सबसे अबूझ रहस्य पर से पर्दा उठाने की ड्यौढ़ी पर पहुंच गए हैं। पदार्थ को एकजुट रखने वाले ब्रह्मकण (गॉड-पार्टिकल) हिग्स-बोसोन को हालाँकि वे अब भी मुठ्ठी में कस नहीं पाए हैं, पर आशा करते हैं कि 2012 के अंत तक यह लुका-छिपी ख़त्म हो जायेगी।

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हिग्स-बोसोन का अस्तित्व है भी या नहीं, यह प्रश्न लगभग पाँच दशकों से वैज्ञानिकों को छका रहा हैं। भारत के सत्येंद्रनाथ बोस (जीवनकाल 1894 से 1974 तक) और 83 वर्षीय ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम वाले परमाणु भौतिकी के ये मूलकण (एलीमेंट्री पार्टिकल), जिन्हें ''कण'' कहना शायद सही भी नहीं है, परमाणु संरचना के तथाकथित ''स्टैंडर्ड मॉडल'' की एक बड़ी कमी को दूर करते हैं।

इस मॉडल में परमाणु के मूलकणों को भारहीन माना गया था, जबकि समय के साथ पाया गया कि हर मूलकण का कुछ न कुछ भार (द्रव्यमान / मास) भी होता है। बिना भार के वे प्रकाशकण जैसे ही रह जाते। उनके मेल से कोई ठोस वस्तु नहीं बन पाती। इस बीच यह माना जाता है कि हिग्स-बोसोन ही पदार्थ-- अर्थात परमाणु-- की संरचना में शामिल अब तक ज्ञात सभी 12 मूलकणों (क्वार्क, लेप्टॉन, इत्यादि) को उन का भार (द्रव्यमान / मास) प्रदान करते हैं।

जिस तरह हम समझते हैं कि ईश्वर शरीर में प्राण फूँक कर उसे जीवंत बनाता है, उसी प्रकार वैज्ञानिकों का मानना है कि हिग्स-बोसोन ही परमाणु के सभी मूल संघटकों में भार फूँक कर परमाणु को पदार्थ की इकाई का रूप देते हैं। लेकिन, ईश्वर की ही तरह हिग्स-बोसोन भी आज तक किसी की पकड़ में नहीं आये हैं। ईश्वर की ही तरह उन के अस्तित्व का भी आज तक खंडन या मंडन नहीं हो सका है।

कैसे मिला ब्रह्मकण, पढ़े अगले पन्ने पर...


इस दायरे के भीतर दोनों प्रयोगों में उस के होने के बड़े ही दिलचस्प संकेत मिले हैं, लेकिन वे किसी खोज का दावा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।'' (हिग्स-बोसोन का रहस्य खुलने के निकट)
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हिग्स -बोसोन की पुष्टि वर्ष के अंत तकः दिसंबर से मार्च तक 'सेर्न' का मूलकण महात्वरक (लार्ज हैड्रन कोलाइडर LHC) रखरखाव व मरम्मत कार्यों के लिए बंद रहा। मार्च में उसे पुनः सक्रिय किया गाया। और अब, बुधवार 5 जुलाई 2012 को, पत्रकारों को बताया गया कि हालाँकि अब भी हिग्स-बोसोन के होने या न होने का अंतिम रूप से खंडन या मंडन नहीं किया जा रहा है, लेकिन सारी संभावना यही है कि उनका पता लग गया है। सारे संदेहों से परे अंतिम पुष्टि इस वर्ष के अंत तक हो जानी चाहिये।

'सेर्न' के महात्वरक में प्रकाश-जैसी गति पर प्रोटोन कणों के बीच टक्कर से जो कुछ घटित होता है, उसे दो विशाल डिटेक्टर ''एटलस'' और ''सीएमएस'' नोट करते हैं। दोनों के आँकड़ों के बीच मिलान के द्वारा हिग्स बलक्षेत्र (इलेक्ट्रॉन वोल्ट) वाले उस दायरे को लगातार संकुचित किया जा रहा है, जिस में बोसोन को पूरी तरह घेरे जा सकने की संभावना है।

जब रो पड़े पीटर हिग्स, पढ़िए अगले पन्ने पर...


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पीटर हिग्स की आँखें भर आयीं : इस समय यह संभावना 16 लाख में एक बार बताई जा रही है कि प्रोटोन कणों की टक्करों के दौरान कोई मापन-अवलोकन भूल-चूक भी हुई हो सकती है। हिग्स बलक्षेत्र और उससे घिरे बोसोन के अस्तित्व की औपचारिक पुष्टि तभी की जाएगी, जब भूल-चूक की संभावना 0.0001 प्रतिशत भी नहीं रह जाएगी।

इस बार की गई घोषणा के समय 83 वर्षीय पीटर हिग्स भी अतिथि को तौर पर उपस्थित थे। उनकी आँखे भर आयीं। भर्राए स्वर में उन्होंने कहा, ''मैंने कभी सोचा तक नहीं था कि मेरे जीवनकाल में ही मेरे कहे की पुष्टि हो जाएगी।'' अटकलें है कि भौतिकी का इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार पीटर हिग्स को ही मिलेगा।

'काश! सत्येंद्रनाथ बोस भी आज जीवित होते', 'सेर्न' में उपस्थित भारतीय वैक्षानिकों ने सोचा होगा। उल्लेखनीय है कि भारत के भी क़रीब दस विश्वविद्यालय एवं संस्थान इस प्रयोग से जुड़े हुए हैं और कई भारतीय वैज्ञानिक भी 'सेर्न' प्रयोगशाला में काम कर रहे हैं।

पीटर हिग्स ने परमाणु के संघटक मूलकणों को भार प्रदान करने वाले बलक्षेत्र की अवधारणा 1964 में पेश की थी, जबकि सत्येंद्रनाथ बोस ने सबसे आदि मूलकण (बोसोन) की परिकल्पना उनसे कई दशक पहले ही करली थी। इसीलिए संभावित ब्रह्मकण को ''हिग्स-बोसोन'' कहा जाता है। उसे हिंदी में ब्रह्मकण कहना ही सबसे उचित है, क्योंकि सारे भौतिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति संभवतः उसी से हुई है। वही ब्रहमांड के हर पिंड के आकार और रह प्राणी के शरीर को एकजुट रखता है।

मूलकण भौतिकी के इस समय के ''स्टैंडर्ड मॉडल'' के अनुसार हिग्स-बोसोन के बिना हमारे सूर्य जैसे तारे अपने भीतर नाभिकीय संगलन की क्रिया द्वारा कोई ऊर्जा पैदा नहीं कर पाते। इस ऊर्जा के बिना कहीं जीवन भी संभव नहीं होता।

1960 वाले दशक तक ''स्टैंडर्ड मॉडल'' से इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता था कि जिन मूलकणों के मेल से परमाणु के संघटक कण इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रान और प्रोटॉन बनते हैं, वे लेशमात्र भी जगह नहीं घेरते, तब भी, यह कैसे हो सकता है कि चाहे जितना नगण्य सही, उनका अपना एक भार भी होता है। यह भार उन्हें कैसे मिलता है?

क्या है हिग्स फिल्ड की परिकल्पना, अगले पन्ने पर...


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हिग्स परिकल्पनाः पीटर हिग्स और दो अन्य वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति वाले महाधमाके (बिग बैंग) के तुरंत बाद सभी मूलकणों का अपना कोई भार, कोई द्रव्यमान नहीं था। समय के साथ जब ब्रह्मांड ठंडा होने लगा तब एक अदृश्य 'बलक्षेत्र' बना और उस के साथ ही बना वह आदि मूलकण, जिसे आज हम 'हिग्स-बोसोन' कहते हैं। उस 'बलक्षेत्र' को 'हिग्स-बलक्षेत्र' (हिग्स फ़ील्ड) नाम दिया गाया।

हिग्स -बलक्षेत्र : माना जाता है कि यह बलक्षेत्र संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। जो भी मूलकण इस बलक्षेत्र से गुज़रता है, वह उस के साथ अभिक्रिया करता है, (यानी उससे रगड़ खाता या खिंचता है)। इस अभिक्रिया से ही उसे कुछ न कुछ द्रव्यराशि मिलती है। यानी वह कुछ न कुछ भारी हो जाता है। कोई मूलकण हिग्स-बलक्षेत्र के साथ जितनी ही ज्यादा अभिक्रिया करता है, वह उतना ही भारी हो जाता है। जो मूलकण कोई अभिक्रिया नहीं करते, उन्हें कोई द्रव्यराशि नहीं मिलती और वे भारहीन रह जाते हैं।

हिग्स -बोसोन कण : 'जितनी ज़्यादा अभिक्रिया, उतना ही ज़्यादा भार' का यह भी मतलब है कि कोई मूलकण जितना ही भारी होगा, उताना ही अधिक हिग्स-बलक्षेत्र को प्रकंपित भी करेगा। हिग्स-बलक्षेत्र की परिकल्पना का सिद्धांत कहता है कि बलक्षेत्र का प्रकंपन भौतिक धरातल पर अपने आप को हिग्स- बोसोन कणों के रूप में अभिव्यक्त करता है। प्रयोगों द्वारा इन मूलकणों की पुष्टि ही हिग्स-बलक्षेत्र के अस्तित्व की भी पुष्टि होगी।

हिग्स-बलक्षेत्र के साथ अभिक्रिया को समझने के लिए एक रोचक उदाहरण दिया जाता है। मान लें कि एक हॉल है, जिसमें बॉल-डांस चल रहा है। हॉल ब्रह्मांड है और नाच रहे लोगों की भीड़ हिग्स-बलक्षेत्र। नाच के दौरान एक प्रसिद्ध व्यक्ति हॉल में आता है। उसे एक मूलकण मान लें। अब होगा यह कि वहाँ जमा लोग इस प्रसिद्ध व्यक्ति को घेर लेंगे और उससे हाथ मिलाना चाहेंगे।

वह यदि इस भीड़ के बीच से आगे बढ़ना चाहता है, तो उसे अपना रास्ता बनाने के लिए कुछ ताक़त लगानी पड़ेगी। यह ताक़त ही वह भार है, जो भीड़ के बिना पैदा नहीं होता। यही ब्रह्मांड में भी होता है। जैसे ही कोई मूलकण कहीं पैदा होता है, उसे ब्रह्मांड में व्याप्त अदृश्य हिग्स-बोसोन वाले क्षेत्र के बीच से अपना रास्ता बनाना पड़ता है। दोनो के बीच घर्षण से मूलकण किंचित भारी हो जाता है।

कितनी आयु होती है हिग्स-बोसोन कणों की, अगले पन्ने पर...


अत्यंत अल्पजीवी : इस उदाहरण में और वास्तविक हिग्स-बोसोन कणों में अंतर यह है कि एक व्यक्ति तो लंबे समय तक देखा-सुना जा सकता है, लेकिन हिग्स-बोसोन हर समय और हर जगह होते हुए भी इस तेज़ी से बनते व लुप्त होते रहते हैं कि उन्हें भाँप या माप पाना बिना भारी तामझाम के संभव नहीं है।

उनके अस्तित्व को तभी सिद्ध किया जा सकता है, जब उन्हें अतिरिक्त ऊर्जा दे कर इतना शक्तिशाली बनाया जा सके कि डिटेक्टर उनमें भरी ऊर्जा को माप सकें। 'सेर्न' का महात्वरक प्रोटोन कणों को प्रकाश जैसी गति देने वाली भारी ऊर्जा देते हुए आपस में टकरा कर यही करता है। इस टक्कर से प्रोटोन कणों के परखचे उड़ जाते हैं और किसी गेंद में भरे मटर के दानों की तरह वे सारे कण फूट कर बिखर जाते हैं, जिनके मेल से प्रोटोन कण बने होते हैं। इसी मलबे में अत्यंत अल्पजीवी हिग्स-बोसोन भी छिपे होते हैं।

'सेर्न' के वैज्ञानिकों को अगले कुछ महीनों में यह भी देखना होगा कि वे जिन सबसे मूलकणों को हिग्स-बोसोन मान रहे हैं, वे वही कण हैं या नहीं, संशोधित ''स्टैंडर्ड मॉडल'' जिनकी भविष्यवाणी करता है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वैज्ञानिकों को अपनी व्याख्या के लिए कोई नया मॉडल गढ़ना पड़ेगा। ''स्टैंडर्ड मॉडल'' यह भी कहता है कि हमें ज्ञात पदार्थ के परमाणु जिन 12 मूल कणों के बने हैं, ब्रह्मांड में उन सब के ठीक विपरीत विद्युत आवेश (चार्ज) वाले प्रतिमूलकण भी होने चाहिये। प्रयोगशालाओं में ये सारे प्रतिमूलकण प्रमाणित किये जा चुके हैं।

काले द्रव्य का रहस्य बना रहेगाः 'सेर्न' में जुटे वैज्ञानिक यदि इस वर्ष के अंत तक हिग्स-बोसोन के मिल जाने की पुष्टि कर भी देते हैं, तो इससे ''स्टैंडर्ड मॉडल'' की एक और महत्वपू्र्ण वैधता सिद्ध तो हो जाएगी, पर इस प्रश्न का उत्तर फिर भी नहीं मिलेगा कि ब्रह्मांड में जो अदृश्य काला द्रव्य (डार्क मैटर) व्याप्त है, वह किस चीज़ का बना है? अनुमान है कि ब्रह्मांड में व्याप्त संपूर्ण द्रव्य का 20 प्रतिशत काला द्रव्य ही है।

तीन-चौथाई अंतरिक्ष काली ऊर्जा (ब्लैक एनर्जी) से भरा हुआ है, जबकि हम जिस द्रव्य या पदार्थ को देखते-जानते हैं, उसका हिस्सा केवल चार से पाँच प्रतिशत ही है। वैज्ञानिक कहते हैं कि ब्रह्मांड में काले द्रव्य का अस्तित्व होना ही चाहिये, वर्ना ब्रह्मांड के असंख्य ज्योतिर्मंडल (गैलेक्सी) जिस तेज़ गति घूम रहे हैं, उस गति पर उन्हें पूरी तरह बिखर जाना चाहिये। यदि ऐसा नहीं हो रहा है, तो इसका अर्थ यही है कि उनके बीच ऐसा काला द्रव्य भी फैला हुआ है, जो अपने गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा उन्हें बिखरने से रोके हुए है।

''सुपर -सिमेट्री'' : 'सेर्न' में चल रहे प्रयोग को जानने वाले कुछ वैज्ञानिकों को एक और आशा है। यह कि वर्ष के अंत तक जब सभी आँकड़ों-अवलोकनों को छान-बीन लिया गाया होगा, तब शायद कुछ ऐसे तथ्य भी सामने आ सकते हैं, जिनसे हिग्स-बोसोन के अलावा किन्हीं दूसरे कणों के अस्तित्व का भी संकेत मिलता हो।

उदाहरण के लिए, 125 गीगा इलेक्ट्रॉनवोल्ट ( GeV) द्रव्यमान वाले जिस नए बोसोन के होने की चर्चा है, वह उस ''सुपर-सिमेट्री'' का सूचक हो सकता है, जिसे 135 GeV से कम का होना चाहिए। ''स्टैंडर्ड मॉडल'' का ''सुपर-सिमेट्री'' सिद्धांत कहता है कि परमाणु संरचना में शामिल सभी मूलकण दोहरे रूप में होते हैं। यदि ऐसा है, तो अभी कुछ और मूलकणों की खोज करनी होगी। हो सकता है, उनके बीच वह कण भी मिल जाए, जो काले द्रव्य के लिए ज़िम्मेदार होता हो।

समस्या यह है कि परमाणु भौतिकी के प्रयोगों के लिए संसार की सबसे नयी और सबसे शक्तिशाली मशीन होते हुए भी 'सेर्न' का महात्वरक LHC ''सुपर-सिमेट्री'' के सिद्धांत की पुष्टि करने वाले अब तक के अज्ञात अन्य मूलकणों की खोज के उपयुक्त नहीं है। LHC वास्तव में रिंग के आकार का एक मूलकण त्वरक (एक्सिलरेटर) है, जबकि ''सुपर-सिमेट्री'' के लिए सरलरेखीय आकार वाला त्वरक चाहिये। इस समय संसार में कहीं ऐसा त्वरक नहीं है।

वह इतना मँहगा होगा कि उसे कई देशों को मिल कर बनाना होगा। 30 किलोमीटर लंबे एक ऐसे ही भूमिगत त्वरक की अभिकल्पना तो तैयार है, पर कोई नहीं जानता वह कहाँ और कब बनेगा-- कभी बनेगा भी या नहीं।

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