भविष्य की कारें बिजली से चलेंगी। यह भविष्यवाणी हम कम से कम 40 वर्षों से सुन रहे हैं। पाते यही हैं कि सड़कों पर सारी रेलपेल आज भी उन्हीं वाहनों की है, जो डीज़ल या पेट्रोल से चलते हैं। कहाँ हैं बिजली से चलने वाली इलेक्ट्रो कारें? जर्मनी के फ्रैंकफ़र्ट नगर में हर दो साल पर नवीनतम कारों की अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी लगती है। इस बार की प्रदर्शनी का संकेत है, कि हमें अभी और धैर्य रखना होगा।
मोटरकार का आविष्कार जर्मनी में ही हुआ था। 29 जनवरी 1886 के दिन जर्मनी के कार्ल बेंज़ (सही उच्चारण है कार्ल बेंत्स) ने मानहाइम के पेटेंट कार्यालय में बग्घी जैसी दिखने वाली अपनी ''मोटर गाड़ी'' के पेटेंट का आवेदन किया था। इसी तारीख़ को मोटरकार का जन्मदिन और बेंज़ को उसका जन्मदाता माना जाता है। उसी साल कुछ समय बाद जर्मनी के ही गोटलीब डाइमलर और विलहेल्म मायबाख़ ने भी अपनी-अपनी मोटर गाड़ियाँ पेश कीं। आविष्कार के 11 साल बाद ही, 1897 में, जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 8 मोटरकारों की पहली प्रदर्शनी लगी। 1951 से यह प्रदर्शनी फ्रैंकफ़र्ट में लगने लगी और अब हर दो साल पर वहीं लगती है। इस बीच संसार के और भी कई शहरों में कार-प्रदर्शनियाँ लगती हैं, लेकिन कार के आविष्कारक जर्मनी की फ्रैंकफ़र्ट प्रदर्शनी का अपना अलग ही महत्व है।
64 वीं प्रदर्शनी : 13 से 25 सितंबर तक चली इस बार की 64 वीं प्रदर्शनी में कारें और उन से संबंधित कल-पुर्ज़े व साज-सामान बनाने वाली 32 देशों की एक हज़ार से अधिक कंपनियों ने अपनी क्षमता और कौशल के प्रदर्शन के साथ-साथ भविष्य की भी झाँकी प्रसतुत की। स्वाभाविक ही है कि कार-प्रेमियों और दर्शकों की मुख्य रुचि यह जानने में थी कि कार-निर्माण तकनीक किस दिशा में जा रही है? किस तरह की नयी कारें बाज़ार में आने वाली हैं? आम आदमी के काम लायक चिरप्रतीक्षित इलेक्ट्रो कारें भला कब सर्वसुलभ हो पायेंगी?
फ्रैंकफ़र्ट की कार प्रदर्शनी यही कहती लगी कि कार-निर्माण की तकनीक में जल्द ही कोई क्रांति नहीं होने जा रही। अभी लंबे समय तक तेल जलाने वाली दहन-इंजन तकनीक का ही वर्चस्व रहेगा। बिजली के मोटर वाली इलेक्ट्रो कारें हालाँकि 2012-2013 से बाज़ार में बिकने लगेंगी, लेकिन क़ीमत की दृष्टि से उन्हें सर्वसुलभ और इस्तेमाल की दृष्टि से आकर्षक बनने तक हम शायद सन 2050 लिख रहे होंगे।
वैसे तो इस समय स्वयं जर्मनी की अपनी सड़कों पर भी पूरी तरह बिजली से चलने वाली 2300 से अधिक कारें व अन्य वाहन दौड़ रहे हैं, लेकिन वे अभी भी व्यावहारिक परीक्षण की अवस्था में ही हैं। उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है इस समय की बैट्रियों का बहुत भारी और मँहगा होना और उन्हें रि-चार्ज करने में काफ़ी समय लगना। यही स्थिति जापान, दक्षिण कोरिया या फ्रांस जैसे अन्य प्रमुख कार-निर्माता देशों मे भी है।
तीन दिशाओं में समानांतर प्रयास : ऐसे में जब तक सस्ती, हल्की और तेज़ी से रीचार्ज होने वाली भरोसेमंद बैट्रियाँ उपलब्ध नहीं हैं, तब तक तीन दिशाओं में समानांतर प्रयास चलते रहेंगेः वर्तमान दहन-इंजन तकनीक को और भी परिष्कृत करते हुए तेल की खपत और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को लगातार घटाना, दहन इंजन और इलेक्ट्रो इंजन के मेल वाली हाइब्रिड कारों को और भी कार्यकुशल व सस्ती बनाना तथा इलेक्ट्रो कारों के लिए आदर्श बैट्री की खोज जारी रखना। कार इंजीनियरिंग के अधिकतर विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बैट्री से चलने वाली इलेक्ट्रो कार भी घटते तेल और बढ़ते प्रदूषण का कोई अंतिम नहीं, केवल अंतिरिम समाधान ही हो सकती है। अंतिम समाधान शायद हाइड्रोजन वाली फ्यूल-सेल तकनीक से ही मिल सकता है। (क्रमश:)