मॉस्को में मंगल अभियान की तैयारियाँ
मंगल अभियान का धरती पर अभ्यास : 150 दिन पूरे हुए
वे अंतरिक्ष यात्रियों की तरह दिखते हैं। अपने दैनिक कार्यक्रम का कठोर अनुशासन के साथ पालन करते हैं। पर, अभी धरती पर हैं। मॉस्को के पास एक कंटेनर प्रयोगशाला में 150 दिनों से बंद हैं। स्वयं तो मंगल ग्रह तक कभी पहुँचेंगे नहीं, पर उनकी आपबीती भावी मंगल यात्रियों के बड़े काम आयेगी। उन्हें अभी एक साल और दीन-दुनिया से अलग-थलग रहना है।मानव निर्मित किसी यान को मंगल ग्रह पर पहली बार उतरे दो दिसंबर को 39 साल हो जायेंगे। इस बीच कई अमेरिकी अन्वेषण यान वहाँ उतरे हैं, उसके चक्कर लगा चुके हैं या अब भी लगा रहे हैं। समय आ गया है कि अब आदमी स्वयं मंगल ग्रह की ज़मीन पर अपने पैर रखे। तैयारियां चल रही हैं। अमेरिका ही नहीं, यूरोपीय संघ, रूस, चीन, जापान, यहाँ तक कि भारत भी उन महत्वाकांक्षी देशों में शामिल है, जो मंगल ग्रह पर अपना झंडा गाड़ना चाहते हैं।लेकिन, मंगल ग्रह पृथ्वी से इतना दूर है कि वहाँ जाने-आने में लगभग दो साल का समय लगेगा। इतने लंबे समय तक पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष के निपट एकाकीपन में रहने का अभी तक मनुष्य के पास कोई अनुभव नहीं है। इन्हीं दिनों 10 साल पूरे कर चुके अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISI से कई उपयोगी अनुभव मिले ज़रूर हैं, लेकिन ISI पृथ्वी से औसतन केवल 350 किलोमीटर ही दूर है। उसके अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर उड़ान नियंत्रण केंद्र के साथ ही नहीं, अपने परिवारों के साथ भी संपर्क में रहते हैं, अपने शहरों तक को ऊपर से देख सकते हैं और कुछेक दिनों या महीनों में पृथ्वी पर लौट आते हैं। मंगल ग्रह तक की लंबी यात्रा इससे कहीं ज़्यादा निर्मम होगी। उस की चुनौतियों की पृथ्वी पर ही नकल करने और उनका अभ्यास करने के विचार से यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण E S A, रूसी अंतरिक्ष अधिकरण "रोसकोस्मोस" और जर्मनी के एरलांगन तथा म्यूनिक विश्वविद्यालयों ने मिल कर एक दीर्घकालिक प्रयोग की योजना बनायी। इस अनुकरण (सिम्युलेशन) योजना के पहले चरण के लिए, जो एक अप्रैल 2009 से 14 जुलाई 2009 तक चला, रूस के चार और जर्मनी तथा फ्रांस के एक-एक परीक्षण यात्री को एक कंटेनर प्रयोगशाला में 105 दिनों के लिए बंद कर दिया गया। यह प्रयोगशाला मॉस्को के पास रूसी चिकित्सा और जीवविज्ञान संस्थान (IM B P) के परिसर पर मॉड्यूल कहलाने वाले कंटनेरों जैसी चार इकाइयों को मिला कर बनायी गयी है। प्रयोगशाला किसी अंतरिक्षयान के नमूने पर बनायी गयी है, पर हू-बहू नहीं, क्योंकि पृथ्वी पर भारहीनता नहीं पैदा की जा सकती। पहला मॉड्यूल शोध और चिकित्सा सामग्रियों से भरा था। दूसरे में बिस्तर इत्यादि के साथ सोने की व्यवस्था थी। तीसरे में मंगल ग्रह की ऊपरी सतह की नकल की गयी थी। चौथे मॉड्यूल में डिब्बाबंद खाने-पीने की चीज़ों व अन्य उपभोग्य सामग्रियों का भंडार था। "
मार्स-500" : पहले अनुकरण के 11 महीने बाद, तीन जून 2010 को, इसी कंटेनर-प्रयोगशाला में 520 दिन चलने वाला दूसरा अनुकरण "मार्स-500" शुरू हुआ। इस बार भी अलग-अलग देशों के छह लोग प्रयोगशाला में बंद कर दिये गये। उन्हें 11 अंतिम प्रतियोगियों के बीच से चुना गया था। तीन रूसी हैं और एक-एक इटली, फ्रांस और चीन का रहने वाला है। महिला प्रतियोगी भी थीं, पर वे अंतिम छह में नहीं पहुँच पायीं। चयन उन्हीं कसौटियों के अनुसार किया गया, जो सच्चे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनायी गयी हैं। प्रयोग के सभी सहभागी अंग्रेज़ी और रूसी भाषा बोलते हैं, साथ ही चिकत्साविज्ञान, इंजीनियरिंग, जीवविज्ञान और कंप्यूटर तकनीक का अनुभव रखते हैं। आयु है 27 से 44 वर्ष के बीच।
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मार्स-500" : पहले अनुकरण के 11 महीने बाद, तीन जून 2010 को, इसी कंटेनर-प्रयोगशाला में 520 दिन चलने वाला दूसरा अनुकरण "मार्स-500" शुरू हुआ। इस बार भी अलग-अलग देशों के छह लोग प्रयोगशाला में बंद कर दिये गये। उन्हें 11 अंतिम प्रतियोगियों के बीच से चुना गया था। तीन रूसी हैं और एक-एक इटली, फ्रांस और चीन का रहने वाला है। महिला प्रतियोगी भी थीं, पर वे अंतिम छह में नहीं पहुँच पायीं। चयन उन्हीं कसौटियों के अनुसार किया गया, जो सच्चे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनायी गयी हैं। प्रयोग के सभी सहभागी अंग्रेज़ी और रूसी भाषा बोलते हैं, साथ ही चिकत्साविज्ञान, इंजीनियरिंग, जीवविज्ञान और कंप्यूटर तकनीक का अनुभव रखते हैं। आयु है 27 से 44 वर्ष के बीच। अंतरिक्ष यात्रियों जैसी दिनचर्या : 520 दिनों के लिए खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, लिखने-पढ़ने, वैज्ञानिक प्रयोगों और मनबहलाव का वह सरा सामान भी, जिसकी ज़रूरत पड़ सकती है और जो कोई सच्चा मंगल यान अपने साथ ले जा सकता है, पहले ही दिन से प्रयोगशला में बंद कर दिया गया है। खाना और दिनचर्या बिल्कुल वैसी ही है, जैसी अंतरिक्ष स्टेश ISI के यात्रियों की है। हफ्ते में दो दिन काम से छुट्टी रहती है, बशर्ते कि किसी आकस्मिक समस्या से निपटने या पहले से चल रहे किसी वैज्ञानिक प्रयोग के कारण छुट्टी मनाना संभव न हो।
एक छोटी-सी जगह में उन्हीं 5-6 लोगों के बीच 520 दिन, यानी डेढ़ साल बिताने की सबसे बड़ी चुनौती है मानसिक संतुलन बनाये रखना, धीरज और सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा पर खरा उतरना।
सीधी बातचीत संभव नहीं : किसी सच्ची अंतरिक्ष यात्रा की तरह इस टीम को भी काफ़ी कुछ अपने भरोसे ही छोड़ दिया गया है। केवल रेडियो-फ़ोन के ज़रिये प्रयोगशाला की निगरानी कर रहे निंयत्रण कक्ष के साथ संपर्क किया जा सकता है। यह कक्ष किसी सच्चे उड़ान नियंत्रण केंद्र के समान है। जर्मन अंतरिक्ष अधिकरण DLR की ओर से इस परियोजना के प्रॉजेक्ट मैनेजर पेटर ग्रैफ़ बताते हैं, "70 दिन बाद इस क्रू (टीम) के साथ सीधी बातचीत संभव नहीं रही। अब केवल लिखित रूप से या वीडियो के द्वारा ही संवाद होता है, वह भी एक पूर्वनिश्चित विलंब के साथ। यदि वे मंगल पर होते, तो वहां से रेडियो सिग्नल आने और यहाँ से जवाब जाने में हर बार हर दिशा में 20- 20 मिनट का समय लगता। यानी, यदि किसी ने कोई प्रश्न पूछा तो उसे उसका उत्तर पाने के लिए 40 मिनट तक इंतज़ार करना पड़ेगा। इसका मतलब है कि क्रू को यथासंभव अपने ही भरोसे काम करना होगा और समस्याओं को कफ़ी कुछ अकेले ही हल करना होगा।"सच्ची मंगल यात्रा के दौरान रेडियो संकेतों के पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच आने-जाने में लगने वाले समय के इस अंतर को मॉस्को की प्रयोगशाला में लगा सर्वर (कंप्यूटर) अपनी तरफ़ से पैदा करता है। पेटर ग्रैफ़ ने बताया कि वैसे तो सारे मॉड्यूलों को मिलाकर प्रयोगशाला में कुल 180 वर्गमीटर की जगह है, पर अधिकतर जगह सामानों और उकरणों से भरी हुई है। टीम के हर सदस्य के पास निजी इस्तेमाल के लिए केवल तीन वर्गमीटर जगह बचती है। इसी जगह में उसे उठना-बैठना और सोना है। "हम यही तो देखना चाहते हैं" उनका कहना है "कि जगह की तंगी, दुनिया से अलग थलग रहना, रोज-रोज़ की एकरसता, ऊपर से काम का दबाव और अपने आप को स्वस्थ रखना भी-- इस सब को वे कैसे झेल पाते हैं।"मानसिक संतुलन सबसे बड़ी चुनौती : कहने की आवश्यकता नहीं कि एक छोटी-सी जगह में उन्हीं 5-6 लोगों के बीच 520 दिन, यानी डेढ़ साल बिताने की सबसे बड़ी चुनौती है मानसिक संतुलन बनाये रखना, धीरज और सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा पर खरा उतरना। "यदि कोई सदस्य हार मान जाता है", पेटर ग्रैफ़ का कहना है, तो वह इस प्रयोग को भंग कर सकता है। हर सदस्य हर समय किसी प्रयोग या उसके किसी हिस्से को पूरा करने से मना कर सकता है और कंटेनर से बाहर निकल सकता है। लेकिन, हमने अब तक पाया है कि क्रू बहुत ही उत्साहित है। मुझे विश्वास नहीं होता कि क्रू का कोई सदस्य अपने बल पर बाहर निकलने का फ़ैसला करेगा।"
"अवतरण दल" के तीनों सदस्य 30 दिनों तक रूस में बना "ओर्लान" नाम का विशेष अंतरिक्ष सूट पहने रहेंगे। यह सूट मंगल ग्रह पर की कड़ाके की ठंड और वहाँ ख़तरनाक ब्रह्मांडीय किरणों की बौछार को ध्यान में रख कर विशेष तौर पर बनाया गया है।
जर्मनी में म्यूनिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक देखना चाहते हैं कि लंबे समय तक सबसे अलग थलग रहने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोध प्रणाली पर क्या असर पड़ता है। अब तक की लंबी अंतरिक्ष यात्राएँ दिखाती हैं कि अंतरिक्ष में भारहीनता की स्थिति मानव शरीर के लिए सबसे बड़ा बोझ है। शरीर में तरलता की कमी होने लगती है। ख़ून गाढ़ा होने लगता है और पैरों के बदले सिर की तरफ बहने लगता है। हड्डियाँ और मांसपेशियाँ गलने लगती हैं और चेहरा फूल जाता है। साथ ही रोगप्रतिरोध क्षमता घटने लगती है। भारहीनता का अभ्यस्त हो जाने के बाद पृथ्वी पर लौटे अंतरिक्ष यात्री तुरंत चल-फिर नहीं पाते, इस में समय लगता है।मानव जाति के भविष्य पर लक्षित: मॉस्को में चल रहे प्रयोग के चीनी सहभागी वांग युए को खुशी है कि उन्हें भारहीनता के बोझ से फिलहाल नहीं जूझना पड़ रहा है, "मैं इस महत्वपूर्ण प्रयोग में भाग ले कर बहुत खुश हूँ। यह अंतरिक्ष य़ात्रा की एक नकल-भर है, न कि ज़िदगी और मौत का सवाल। लेकिन, मैं कहूँगा कि इस के कुछ पक्ष इस कारण और भी महत्वपूर्ण हैं कि यह प्रयोग मानव जाति के भविष्य पर लक्षित है।" मंगल ग्रह पर पहुँचने, वहाँ रुकने और वहाँ से लौटने में लगने वाले समय के अनुरूप मॉस्को में चल रहे अनुकरण-प्रयोग के सहभागियों में से तीन, प्रयोग शुरू होने के 250 दिन बाद, यानी आगामी फ़रवरी के शुरू में, "मंगल ग्रह पर उतरेंगे"। उतरने का मतलब है, वे अब तक के कंटेनरों से निकल कर 30 दिन उस मॉड्यूल में बितायेंगे, जिसमें मंगल ग्रह की ज़मीन और परिस्थितियों की नकल उतारी गयी है। बाक़ी तीन सहभागी अपनी-अपनी जगह इस तरह बने रहेंगे, मानो वे मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाले परिक्रमा-यान में बैठे हैं। "अवतरण दल" के तीनों सदस्य 30 दिनों तक रूस में बना "ओर्लान" नाम का विशेष अंतरिक्ष सूट पहने रहेंगे। यह सूट मंगल ग्रह पर की कड़ाके की ठंड और वहाँ ख़तरनाक ब्रह्मांडीय किरणों की बौछार को ध्यान में रख कर विशेष तौर पर बनाया गया है।
ओर्लान नाम का विशेष अंतरिक्ष सूट : 30 दिन बाद, यानी 280वें दिन जब प्रयोग के सभी सहभागी फिर से एकसाथ हो जायेंगे, तब अगले 240 दिन एकसाथ ही रहेंगे। यह वह समय है, जो मंगल ग्रह पर सचमुच पहुँचने के बाद पृथ्वी पर वापसी में लगता। मॉस्को के अनुकरण में यह वापसी 5 नवंबर 2011 को होगी। उस समय तक जिन सहभागियों ने मानसिक या शारीरिक कारणों से पहले ही घुटने नहीं टेक दिये होंगे, उन में से हर एक को 80 हज़ार यूरो (क़रीब 48 लाख रूपये) के बराबर पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा। तब वे अधिकार के साथ यह भी कह सकेंगे कि मंगल ग्रह तक की असह्य लंबी यात्रा को किसी हद तक सहनेयोग्य और सुखद बनाने में उनका भी योगदान रहा है। यह यात्रा अगले दो से तीन दशकों के बीच जब भी संभव हो पायेगी, मॉस्को में चल रहे प्रयोग की कृपा से कुछ और निकट ही आ गयी कहलायेगी।
(सभी चित्र ESA/DLR के सौजन्य से)