नोटों की गड्डियों को संभालकर घर ले जाते हुए दशकों पहले क्या आपके दिमाग में कभी एटीएम कार्ड या डेबिट कार्ड का ख्याल आया था? मीलों दूर बैठे परिजन के विरह में आंसू बहाते हुए उससे वीडियो कांफ्रेंस की कल्पना आपने कभी की थी? आम जीवन की ऐसी बहुत छोटी छोटी समस्याओं का हल एक समय नामुमकिन लगता था, लेकिन साइंस फिक्शन यानी वैज्ञानिक उपन्यासों में इन समस्याओं के निदान पहले ही बता दिए गए थे।
आज जिन एटीएम कार्डस को हम आराम से जेब में रखकर घूमते हैं इनकी कल्पना आज से लगभग सवा सौ साल पहले ही कर ली गई थी। वर्ष 1888 में एडवर्ड बेलामे के उपन्यास ‘लुकिंग बैकवर्ड’ में प्लास्टिक मनी का जिक्र आज से कुछ साल पहले बेशक हैरान करता हो लेकिन आज यह नकदी के लेनदेन का सुरक्षित और आसान साधन है।
साइंस फिक्शन लेखन में कल्पनाओं का इस्तेमाल बेशक व्यापक स्तर पर होता है लेकिन जब वर्षों पूर्व लिखे गए इन उपन्यासों की बातों को आज हम सच होते देखते हैं तो इन पर यकीन अपने आप ही बढ़ जाता है। ऐसा नहीं है कि इन उपन्यास की हर बात अक्षरश: सच साबित होती है लेकिन विज्ञान के इन उपन्यासों में की गई बहुत सी भविष्यवाणियां आज तकनीक की मदद से हकीकत का रूप ले चुकी हैं।
साइंस फिक्शन का महत्व बताते हुए विज्ञान पत्रकार डॉक्टर संजय वर्मा कहते हैं, ‘लोगों की रूचि विज्ञान के क्षेत्र में जगाने में साइंस फिक्शन एक अहम कड़ी के रूप में काम करती है। इसके अभाव में विद्यार्थी विज्ञान की असीम संभावनाओं से सीधा जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते।'
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‘ईश्वर हर जगह है और आपको देख रहा है’ जैसी बातें तो आपने अपने बुजुर्गों से खूब सुनी होंगी लेकिन विज्ञान ने वाकई एक ऐसी निगाह बना डाली है जो आपकी हर हरकत पर नजर रखती है। ये निगाहें कुछ और नहीं बल्कि मेट्रो समेत कई सार्वजनिक स्थलों और निजी परिसरों में लगे सीसीटीवी कैमरे हैं।
इन सीसीटीवी कैमरों का जिक्र भी जॉर्ज आरवैल के 1949 में लिखे गए उपन्यास ‘1984’ में आया था। इसमें उन्होंने एक ऐसे ‘बिग ब्रदर’ की बात की थी जो सर्वव्यापी था और टेलीस्क्रीन की मदद से नागरिकों पर अपनी नजर बनाकर रखता था। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के लगभग बीस साल बाद ऐसा कैमरा ब्रिटेन में बन गया था।
हल्के युद्धक विमानों की परियोजना पर काम कर चुके भारत सरकार के पूर्व वैज्ञानिक एमबी वर्मा छात्रों में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा पैदा करने में साइंस फिक्शन को महत्वपूर्ण मानते हैं। वे कहते हैं, ‘विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की के लिए रटंत शिक्षा की जगह प्रयोगात्मक शिक्षा पर जोर दिया जाना जरूरी है। विभिन्न प्रयोगों, कार्यकारी मॉडलों के साथ-साथ साइंस फिक्शन भी विद्यार्थियों में जिज्ञासा बढ़ाने का काम करते हैं।’
विज्ञान की ऐसी कहानियों को पढ़कर खुद को भविष्य दृष्टा जैसा महसूस करने पर सिर्फ विज्ञान के छात्र ही नहीं बल्कि आम पाठक भी रोमांच से भर उठते हैं। आज दिखाई पड़ने वाले ऑनलाइन न्यूजपेपर, टच स्क्रीन तकनीक, स्वचलित सीढ़ियों और ऑटोमेटिक दरवाजे ऐसे ही कई आविष्कार हैं जो वर्षों पहले साइंस फिक्शन में पढ़ने पर चमत्कार से कम प्रतीत नहीं होते थे। (भाषा)