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स्मार्टफोन करेंगे बीमारों की जीवनरक्षा

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राम यादव

बॉन , सोमवार, 28 नवंबर 2011 (12:20 IST)
यह हो नहीं सकता कि तरह-तरह के औद्योगिक और व्यापारिक मेलों के देश जर्मनी में डॉक्टरी व चिकित्सा विज्ञान से जुड़े उपकरणों का कोई मेला न लगता हो। ड्युसल्डोर्फ के संसार के सबसे बड़े मेडिकल उपकरण मेले ''मेडिका'' में इस बार ''टेलीमेडिसिन '' (दूरचिकित्सा) संबंधी उपकरणों की, विशेषकर इस बात की धूम रही कि स्मार्टफ़ोन कहलाने वाले हरफन-मौला मोबाइल फ़ोन रोगी और डॉक्टर को किस तरह हमेशा जोड़े रख सकते हैं।

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कंप्यूटर युग शुरू होने के बाद से हमें जो अनगिनत नए-नए शब्द सीखने और समझने पड़ रहे हैं, उनकी लंबी सूची में अब एक और शब्द जुड़ गया है- मोबाइल हेल्थ, संक्षेप में ''एम हेल्थ''। नवंबर के मध्य में जर्मनी के ड्युसल्डोर्फ़ नगर में लगे 'मेडिका' मेले में वह इस बार एक ' टॉप' विषय था। स्मार्टफ़ोन अपने आप में ऐसे मोबाइल मिनी-कंप्यूटर ही तो हैं, जो अब केवल फ़ोन करने, ईमेल और अन्य दूरसंचार सेवाओं का लाभ उठाने के ही काम नहीं आएंगे, घर बैठे रोगी को उसके डॉक्टर या अस्पातल की निगरानी में रखने और संकटकाल में तुरंत सहायता उपलब्ध कराने के भी काम आएंगे।

इसीलिए, जर्मनी की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी 'टेलेकोम' भी, जो पहले जर्मनी की राष्ट्रीय टेलीफ़ोन सेवा हुआ करती थी, मोबाइल चिकित्सा लायक अपने विशेष उपकरणों के साथ इस मेले में भाग ले रही थी। इन उपकरणों को बिनातार वाली 'ब्ल्यूटूथ' तकनीक से रोगी के आईफ़ोन, आईपॉड या आईपैड के साथ जोड़ देने पर वे उसकी बीमारी संबंधी विभिन्न सूचनाएं अपने आप उस के डॉक्टर या अस्पताल को भेजते रहते हैं।

स्मार्टफ़ोन ही कर लेगा रोगी की जाँच- उदाहरण के लिए, जर्मन 'टेलेकोम' का ''ग्लूकोडॉक'' (मूल्य 99 यूरो/ लगभग साढ़े छह हज़ार रुपए) मधुमेह के रोगी के रक्त में शर्करा की मात्रा को नापने और उसे डॉक्टर तक पहुँचाने के काम आता है। ''कार्डियोडॉक'' (मूल्य 129 यूरो/ लगभग साढ़े आठ हज़ार रुपए) रक्तचाप और हृदयगति को नापता है। इसी तरह ''थर्मोडॉक'' (मूल्य 79 यूरो/ लगभग सवा पांच हज़ार रुपए) शरीर के तापमान पर नज़र रखता है। जर्मन 'टेलेकोम' के प्रवक्ता का कहना था कि एक निःशुल्क प्रयोजन-सॉफ्टवेयर (ऐप या ऐप्लिकेशन), जिसका नाम ''विटाडॉक'' है, इन सूचनाओं वाले आँकड़ों को 'प्रॉसेस' करता है और डॉक्टर या अस्पताल के कंप्यूटर के पास भेजने तक उन्हें स्मार्टफ़ोन की स्मृति (मेमरी) में संभाल कर रखता है।

फ़ोन खुद ही बताया करेगा रोगी का हाल- इस प्रवक्ता का कहना था कि अब तक इन सूचनाओं को ईमेल द्वारा डॉक्टर या अस्पताल के पास भेजना पड़ता है। लेकिन, भविष्य में इंटरनेट का एक विशेष मेडिकल सर्वर-कंप्यूटर उन्हें अपने पास जमा रखेगा और वही उन्हें डॉक्टर या अस्पताल के पास भी स्वयं ही पहुंचा दिया करेगा। इस तरह डॉक्टर को रोगी की स्थिति के बारे में सारी आवश्यक जानकारियां मिलती रहेंगी। उसे केवल तब कोई क़दम उठाने की ज़रूरत पड़ेगी, जब रोगी का स्वास्थ्य किसी हस्तक्षेप की मांग करेगा।

डॉक्टर के पास जाना कम हो जाएगा- विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2015 तक जर्मनी के अधिकांश डॉक्टरों के पास ऐसे सॉफ्टवेयर (ऐप्स) हो जाएंगे, जो स्मार्टफ़ोनों से रात-दिन आने वाली सूचनाओं को छाँटने, उस के अपने कंप्यटूर में उन्हें जमा रखने और अगली कार्रवाई की तैयारी करने में उसकी सहायता करेंगे। रोगियों को भी बात-बात पर डॉक्टर के पास जाने और वहां अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने से छुट्टी मिल जाएगी। जर्मनी में स्वास्थ्य संबंधी कोई 15 हज़ार ऐप्स अभी से उपलब्ध हैं। एक ही साल में उनकी संख्या दोगुनी हो गई है।

स्मार्टफ़ोन ही बन जाएगा माइक्रोस्कोप- कुछ बीमारियों के प्रसंग में रोगी को तब तक डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी, जब तक डॉक्टर उसे आने को न कहे। उदाहरण के लिए, कोई चर्मरोग, त्वाचा-कैंसर या फ़ोड़ा-फुन्सी होने पर। जर्मनी की एक कंपनी ने 600 यूरो मंहगा ''हैंडीस्कोप'' नाम का एक ऐसा माइक्रोस्कोप दिखाया, जो स्मार्टफ़ोन में बने कैमरे के साथ जुड़ कर उसे किसी सूक्ष्मदर्शी की तरह बना देता है। ''हैंडीस्कोप'' की सहायता से मोबाइल फ़ोन वाला कैमरा त्वचा की बनावट को 20 गुना बढ़ा कर देखने लगता है। इस तरह उससे त्वचा के ऐसे चित्र लिए और सीधे डॉक्टर के कंप्यूटर पर भेजे जा सकते हैं, जिन में 20 गुना अधिक बारीक़ी होती है। स्मार्टफ़ोन चित्र लेने की तारीख़ और रोगी के नाम-पते जैसे कई अन्य विवरण भी उस पर अपने आप लिख देता है। अपने कंप्यूटर के मॉनीटर पर इस चित्र को देख कर डॉक्टर अनुमान लगा सकता है कि रोगी को क्या बीमारी है, वह किस स्थित में पहुँच गई है और अब क्या करने की ज़रूरत है।

स्मार्टफ़ोन जो सूचनाएं डॉक्टर के पास भेजता है, उन्हें वह अपनी या रोगी के कंप्यूटर की मेमरी (स्मृतिभंडार) में जमा रख सकता है। इस तरह रोगी के पास अपनी बीमारी का एक ऐसा अभिलिखित इतिहास बन जाएगा, जिसे वह परामर्श के लिए किसी अन्य डॉक्टर या विशेषज्ञ को दिखा कर उस की भी राय ले सकता है।

ख़ूबियां हैं, तो कमिया भी हैं- इस में कोई शक नहीं कि मोबाइल या स्मार्टफ़ोन के डॉक्टरी उपयोग के कई लाभ हैं, लेकिन, इसका यह मतलब भी नहीं है कि उस के साथ कोई कमियां या समस्याएं नहीं हैं। सबसे बड़ी कमी तो यही है कि स्मार्टफ़ोन को डॉक्टरी उपयोग लायक बनाने के लिए जो अतिरिक्त उपकरण (मॉड्यूल) एवं प्रयोजन (ऐप्स) ख़रीदने पड़ेंगे, वे सस्ते कतई नहीं कहे जा सकते। इस की भी कोई गारंटी नहीं है कि एक ही उपकरण हर मोबाइल फ़ोन निर्माता कंपनी के स्मार्टफ़ोन के साथ मेल खायेगा। दूसरे शब्दों में, हार्ड और सॉफ्टवेर के बीच तालमेल (कंपैटिबिलिटी) की समस्याएं पैदा होंगी।

एमहेल्थ एक महंगा सौदा- दूसरी बड़ी समस्या है डिजिटल सूचनाओं (डेटा) की गोपनीयता के साथ-साथ उनकी हमेशा उपलब्धता को भी बनाए रखना। वे तब भी उपलब्ध रहनी चाहिए, जब इंटरनेट बैठ जाए या कंप्यूटर ठप्प पड़ जाए। भारत जैसे देशों में, जहां ब्रॉडबैंड इंटरनेट सब जगह उपलब्ध नहीं है और बिजली का घंटों गुल रहना आए दिन की बात है, एमहेल्थ एक महंगा सौदा सिद्ध हो सकता है। साथ ही, डॉक्टर और रोगी के बीच की वे गोपनीयताऋं भी बनी रहनी चाहिए, जिन का औरों को मालूम पड़ना वांछित या उचित नहीं है।

क़ानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं- जर्मनी सहित कई देशों के क़ानून ऐसे है कि जिस किसी दवा, उपकरण या मशीन का रोगों और रोगियों से कुछ भी लेना-देना है, उस की बिक्री या उपयोग की वैधता के लिए समय-समय पर सरकारी प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है। इस का अर्थ यह हुआ कि रोगियों के स्मार्टफ़ोनों और डॉक्टरों तथा अस्पतालों के कंप्यूटरों के बीच संयोजन (नेटवर्किंग) होने पर सभी संबद्ध पक्षों के वे सॉफ्टवेयर भी क़ानूनी प्रमाणन के दायरे में आ जाएंगे, जो मूल रूप में प्रशासनिक कार्यों या बहीखाते के लिए बने हैं। डॉक्टर और अस्पताल इसे पसंद नहीं करेंगे कि उन्हें अपने कंप्यूटरों के सॉफ्टवेर के लिए समय-समय पर सरकारी प्रमाणपत्र लेना पड़े।

आंकड़े ही सब कुछ, या दिल-दिमाग भी हैं कुछ- सोचने की एक बात यह भी है कि कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन आने से लोगों के बीच मिलना-जुलना पहले ही बहुत कम हो गया है। अब, जब डॉक्टर के बदले स्मार्टफ़ोन रोगी की, घर बैठे ही, बहुत सारी जांच करने और डॉक्टर को बताने लगेगा, तब दोनो के बीच प्रत्यक्ष संपर्क की तो बहुत कम ही नौबत आएगी। वह रोगी के रक्तचाप या हृदयगति वाले आँकड़े तो डॉक्टर को बता देगा, पर क्या वह डॉक्टर को यह भी बता पायेगा कि रोगी के दिल पर क्या गुज़र रही है?

मन को गोली से अधिक बोली की भूख- क्या बीमार आदमी मशीनों द्वारा नापे-तौले जा सकने वाले ऑकड़ों और ग्राफ़ों का पुलंदा-भर ही होता है, या तन के साथ- साथ उस के पास एक मन, एक आत्मा भी होती है, जो अपने डॉक्टर से कुछ कहना और उससे कुछ सुनना भी चाहती है? आधुनिक पश्चिमी चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) अब भी समझ नहीं पाई है कि बीमारियां यदि मशीनो से जांचने और गोलियां खिलाने से ही ठीक हो सकतीं, तो मशीनों और दवाओं की संख्या बढ़ने के अनुपात में बीमारों और बीमारियों की संख्या घटनी चाहिए थी। किंतु, ऐसा है नहीं। इसलिए नहीं है, क्योंकि बीमार केवल तन ही नहीं, मन भी होता है। मन को नापा-तौला नहीं जा सकता। मन को टटोलना पड़ता है। उसे गोली से अधिक बोली की भूख रहती है।

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