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हल्दी खोलेगी आतंकवादी इरादों की पोल

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हमें फॉलो करें हल्दी खोलेगी आतंकवादी इरादों की पोल

राम यादव

, शनिवार, 30 अप्रैल 2011 (12:55 IST)
हल्दी दुनिया को भारत की देन है। वह रसोई में मसाले और शादी में हाथ पीले करने के ही काम नहीं आती, शरीर में सूजन और जलन के अलावा कैंसर की रोकथाम के लिए भी बहुत उपयोगी है। बहुत संभव है कि जल्द ही विस्फोटक पदार्थों का सुराग बताने वाले उन डिटेक्टरों में भी हल्दी इस्तेमाल होने लगे, जो हवाई अड्डों जैसी जगहों पर यात्रियों और उनके सामान की जाँच करने के काम आते हैं।

भारतीय रसोई में तो हल्दी का सिक्का जमा ही हुआ है, विदेशों में ''करी पाउडर'' के नाम से सुपरिचित मसालों के मिश्रण का भी वह एक अभिन्न अंग है। वह भारत की देन तो है ही, अमेरिका में पढ़ या पढ़ा रहे तीन भारतीयों ने ही विस्फोटक पदार्थों का सुराग देने वाली उसकी 'कलई खोल' नयी भूमिका भी उद्घाटित की है।

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अभिषेक कुमार, मुकेश पांडे और जयंत कुमार - लॉवेल, अमेरिका में यूनीवर्सिटी ऑफ़ मैसाच्यूसेट्स से संबंध रखते हैं और उसके ''सेंटर फ़ॉर एडवांस्ड मैटीरियल्स-- CAM'' की प्रयोगशालाओं में विस्फोटक-संवेदी नये पदार्थों की खोज में लगे थे। वे जानना चाहते थे कि हर चीज़ को अपने चटकीले रंग में रंग देने वाली हल्दी के और क्या गुण हैं। उन्होंने पाया कि आस-पास की हवा में किसी विस्फ़ोटक की बहुत अल्पमात्रा होने पर भी हल्दी के अणुओं की चमक में ऐसा परिवर्तन हो सकता है कि उससे विस्फोटक पदार्थ का भेद खुल जाये।

अभिषेक कुमार यूनीवर्सिटी ऑफ़ मैसाच्यूस्ट्स में भौतिक विज्ञान (फ़ीज़िक्स) के छात्र हैं। मुकेश पांडे डॉक्टर की उपाधिप्राप्त फ़ेलो हैं और हारवर्ड मेडिकल स्कूल से भी जुड़े रहे हैं। जयंत कुमार भौतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर और साथ ही ''सेंटर फ़ॉर एडवांस्ड मैटीरियल्स'' के निदेशक भी हैं। वे ही इस शोध-टीम के मुखिया भी थे। खोज की पहली ख़बर गत फ़रवरी के मध्य में प्रकाशित हुई थी।

हल्दी ऑप्टिकल सेंसर है : अभिषेक कुमार बताते हैं कि 'जब हमने हल्दी के पाउडर को बारीक़ी से देखा, तब हमने पाया कि उसे तो प्रकाशीय संवेदक (ऑप्टिकल सेंसर) बनाने के बहुत ही उपयुक्त होना चाहिये।

उनका कहना है कि TNT (ट्राइनाइट्रो-ल्युओल), जिसे स्वयं एक विस्फोटक पदार्थ होने के साथ-साथ किसी विस्फोट-शक्ति की इकाई भी माना जाता है, और PETN (नाइट्रोपेंटा, पेन्ट्रीट या पेन्टा-एरिथ्रिटील- टेट्रानाइट्रेट) जैसे विस्फोटकों को हवा के सहारे भांप पाना बहुत ही टेढ़ी खीर है। हवा के प्रति एक अरब अणुओं के बीच उनके इतने गिने-चुने ही अणु हो सकते हैं कि वे किसी डिटेक्टर की पकड़ में शायद आयें ही नहीं। हमारा प्रकाशीय संवेदक उनके अणुओं की एक पिकोग्राम से भी कम मात्रा को पहचान सकता है, वे कहते हैं।

सारा चमत्कार है हल्दी की चमक का : एक पिकोग्राम एक ग्राम के 10 खरबवें हिस्से के बराबर होता है। हल्दी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसके अणु निओन-लाइट की तरह प्रदीप्ति (फ़्लुओरसेंस) पैदा करते हैं। इन अणुओं पर यदि अदृश्यमान पराबैंगनी (अल्ट्रावॉयलेट) प्रकाश डाला जाये, तो वे अपनी तरफ़ से किसी दूसरे रंग (वेवलेंग्थ) का प्रकाश पैदा करते हैं। इस प्रदीप्ति की चमक कितनी तेज या निस्तेज है, यह इस पर निर्भर करता है कि हल्दी के अणुओं के साथ किस तरह के दूसरे अणु इत्यादि मिल गये हैं।

अन्य अणुओं की अतिसूक्षम संख्या भी हल्दी के अणुओं की प्रदीप्ति को इतना घटा सकती है कि इस कमी को जाना और पहचाना जा सके। इसी कारण हल्दी के पाउडर को एक उत्तम प्रकाश-संवेदी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। वह किसी अति संवेदनशील नाक की तरह हवा में घुल-मिल गये अन्य पदार्थों, विशेषकर विस्फ़ोटक पदार्थों को आसानी से भाँप सकता है।

व्यावहारिक उपयोग का टेढ़ा रास्ता : इस विधि के व्यावहारिक उपयोग पर प्रकाश डालते हुए अभिषेक कुमार कहते हैं कि व्यावहारिक उपयोग के लिए हमें हल्दी वाली प्रकाश-संवेदी सामग्री की एक बहुत ही पतली परत चाहिये। परत चढ़ाने के प्रचलित तरीकों से, जिनमें किसी धारक पट्टी पर संवेदी सामग्री के घोल वाली कुछ बूँदें टपका कर उन्हें सूखने दिया जाता है, बात नहीं बनेगी।

हल्दी के अणु एक-दूसरे को इतना चाहते हैं कि किसी घोल में वे आपस में चिपक कर तुरंत गुच्छों-जैसे बन जाते हैं। तब, न तो वे कोई चमक पैदा करते हैं और न ही किन्हीं दूसरे अणुओं को अपने पास फटकने देते हैं। इसे रोकने के लिए हमें कोई ऐसा कृत्रिम विलेयक (सॉलवंट) चाहिये था, जो प्रदीप्तिकारी अणुओं को एक-दूसरे से परे रखे।

अभिषेक कुमार की टीम ने PDMS ( पॉली-डाइमिथाइल-साइलोक्सेन) नाम के गाढे क़िस्म के एक रासायनिक पॉलिमर (बहुलक) को इसके सबसे उपयुक्त पाया। कुछेक तरकीबों के साथ वे हल्दी के अणुओं और इस पॉलिमर के घोल से काँच की स्लाइड-जैसी किसी धारक सतह पर ऐसी अत्यंत झीनी परत (फ़िल्म) चढ़ाने में सफल रहे, जो केवल 40 नैनोमीटर जितनी, यानी हमारे बलों के हज़ारवे हिस्से जितनी मोटी थी। इस अत्यंत झीनी परत पर अदृश्य पराबैंगनी प्रकाश डालने और उससे लौट कर आने वाले प्रदीप्त प्रकाश की मात्रा को मापने पर तेज़ी से बताया जा सकता है कि उस परत पर किसी विस्फोटक पदार्थ के कुछ अणु भी इस बीच चिपके हैं या नहीं।

हर पदार्थ का सुराग मिल सकता है : इस झीनी परत को तैयार करने की विधि के आधार पर सिद्धांततः हवा में घुले-मिले किसी भी पदार्थ या ज़हरीली गैसों को भी जाना-पहचाना जा सकता है। लेकिन, मैसाच्यूसेट के इन वैज्ञानिकों का सारा ध्यान विस्फोटक पदार्थों की न्यूनतम मात्रा को भी पहचान कर उनका सुराग पाने पर केंद्रित रहा है। इसीलिए उन्होंने हल्दी के अणुओं के साथ एक ऐसा रिसेप्टर भी जोड़ दिया है, जो TNT या PETN जैसे विस्फोटकों के अणुओं को विशेष रूप से अपनी ओर आकर्षित करता है।

अभिषेक कहते हैं कि विस्फोटक पदार्थों के अणु बहुत ही छोटे होते हैं इसलिए उन्हें प्रमाणित करना बहुत ही मुश्किल काम है। जैसे ही ऐसा कोई अणु हल्दी वाले अणु के साथ चिपकता है, हल्दी वाले अणु का प्रदीप्त प्रकाश कम हो जाता है। इस घटे हुए प्रकाश का वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) तुरंत कलई खोल देता है कि किस के चिपकने से वह वह कम हुआ है।

दिन में तारे गिनने जैसी संवेदनशीलता : हल्दी वाला यह प्रकाश-संवेदी डिटेक्टर हवा के एक अरब अणुओं के बीच किसी विस्फोटक सामग्री के केवल एक अकेले अणु को भी पहचान सकता है। पहचानने के बाद डिटेक्टर की हल्दी-धारक पट्टी पर से शुद्ध हवा गुज़ारते ही पराये अणु अलग हो जाते हैं और डिटेक्टर फिर से इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है।

इस तरह के डिटेक्टर हवाई अड्डों या अन्य स्थानों पर होने वाली सुरक्षा जाँचों को बहुत सरल और तेज़ बना सकते हैं। किसी आतंकवादी के कपड़ों या सामन में छिपी विस्फोटक सामग्री या बम से निकल हवा में मिले गिने-चुने अणुओं का सुराग पाते ही वह क्षण भर में ख़तरे की घंटी बजा सकता है।

नहीं होगी बाडी स्क्रीनिंग : हवाई यात्रियों को लगभग नंगा कर दिखाने वाली बॉडी-स्क्रीनिंग या उनके साथ की चीज़ों पर की धूल का नमूना लेकर उसकी जाँच करने की ज़रूरत नहीं रह जायेगी। केवल एक ही समस्या है। इस तरह के अन्य सेंसरों या डिटेक्टरों की तरह ही हल्दी के पाउडर वाला सेंसर-डिटेक्टर भी अक्सर ग़लत अलार्म बजा दिया करेगा।

आतंकवादी भी आतंकित होंगे : इस कमी को दूर करने के बारे में अभिषेक कुमार कहते हैं कि हम कई सेंसरों के बीच मेल बैठा कर इस समस्या को हल करने में लगे हैं। इस तरह हम उन पदार्थों को, जिन्हें जानने में हमारी मुख्य दिलचस्पी है, साफ़-साफ़ पहचान सकेंगे। यदि इसमें सफलता मिल जाती है और सेंसर की संवेदनशीलता और अधिक बढाई जा सकी, तो हो सकता है कि हल्दी से एक दिन आतंकवादी भी आतंकित होने लगें।

साथ ही वह भूमिगत विस्फोटक सुरंगों का भी दूर से ही पता लगाने में सहायक बन सकती है। अनुमान है कि दुनिया के विभिन्न देशों में इस तरह की 6 करोड़ सुरंगें बिछी हुई हैं। उनके भीतर अधिकतर PETN भरा होता है। हल्दी से जल्दी ही उनका भी सफ़ाया हो सकेगा।

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