हृदयरोग की जड़ में अनेक कारण हो सकते हैं- धूम्रपान, गलत खान-पान, आराम की जिंदगी, चलने-फिरने और शारीरिक श्रम में कोताही या फिर दौड़-धूप और तनाव की अधिकता। लेकिन एक कारण ऐसा भी है, जिसके बारे में कोई नहीं सोचता। जब बिजली की बत्ती नहीं होती थी, लोग दिये, मोमबत्ती या लालटेन से काम चलाते थे, तब हृदय रोग से हम लगभग अनजान थे।
अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन ने 130 साल पहले जब बिजली के बल्ब का आविष्कार किया, तब उसने भी नहीं सोचा था कि उसका दिया प्रकाश एक दिन कुछ लोगों का प्राण-दीप बुझा सकता है। अनुमान है कि आजकल के लोग उस जमाने की तुलना में औसतन एक घंटा कम सोते हैं, जब बिजली के बल्ब का अता-पता नहीं था। इस आविष्कार ने रात को दिन बनाना और रातों में भी काम करना इतना सरल और सस्ता बना दिया कि रातें अब केवल सोने के ही काम नहीं आतीं।
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रिश्ता नींद और सेहत का ब्रिटेन में वार्विक मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिक दो टूक जानना चाहते थे कि नींद और सेहत के बीच आखिर कितना घनिष्ठ संबंध है। दोनो के बीच कुछ न कुछ संबंध तो है, यह पहले से ही जाना जाता था। लेकिन, यह नहीं मालूम था कि वह कहाँ तक पहुँचता है। उन्होंने वे सारे तथ्य और आँकड़े जमा किए, जो इस बारे में अब तक के ठोस और गंभीर किस्म के वैज्ञानिक अध्ययनों में मिल सकते थे।
अंत में उनके पास कुल मिलाकर ऐसे 475 000 हजार लोगों के बारे में जानकारियों का अंबार लग गया, जिनका 7 से 25 वर्षों तक अवलोकन किया गया था। उनके बीच कुल 16 000 ऐसे मामले हुए थे, जो नींद और बीमारियों के बीच संबंध के डॉक्टरी मामले थे। इन डॉक्टरी मामलों की जाँच-परख के बाद वार्विक मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिक इस निष्पत्ति पर पहुँचे कि भरपूर नींद नहीं मिलने पर होने वाली नींद की कमी से हृदयाघात (दिल का दौरा पड़ने) का खतरा 48 प्रतिशत बढ़ जाता है।
यही नहीं, नीद की कमी होने पर मस्तिष्काघात (लकवा मार जाने) का खतरा भी 15 प्रतिशत बढ़ जाता है। प्रश्न यह है कि कितने घंटे की नींद को 'कम नींद' माना जाए? इन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि कोई हर दिन 5-6 घंटे भी नहीं सोता, तो उसे नींद की कमी से पीड़ित माना जाना चाहिए।
कम भी खतरनाक, ज्यादा भी नुकसानदेह बात यहीं समाप्त नहीं होती। नींद और स्वास्थ्य के बीच अजीब-सा रिश्ता है। आप सोचते हैं कि नींद की कमी से स्वास्थ्य बिगड़ता है, तब उसकी अधिकता से स्वास्थ्य जरूर बनता होगा, तो आप गलत सोचते हैं। स्वास्थ्य नींद की कमी से ही नहीं, अधिकता से भी बिगड़ता है। संतुलित भोजन की तरह शरीर को नींद भी संतुलित मात्रा में चाहिऐ। न अधिक, न कम।
वार्विक मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने पाया कि जो लोग नियमित रूप से हर रात बहुत देर तक सोते हैं (8-9 घंटों से अधिक), वे भी दिल के दौरे या लकवे को न्यौता देते हैं। उनके प्रसंग में दिल का दैरा पड़ने का खतरा 38 प्रतिशत, जबकि लकवा मार जाने का ख़तरा 65 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
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कुंभकर्णी नींद एक बीमारी नींद की कमी से स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ जाने की तो एक जानी-मानी व्याख्या उपलब्ध है कि लंबे समय तक पूरी नींद नहीं मिलने पर शरीर की चयापचय क्रिया (मेटाबॉलिज़्म) और रोगप्रतिरक्षण प्रणाली ( इम्यून सिस्टम) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लेकिन, नींद की अधिकता के भी नींद के अभाव जैसे ही हानिकारक प्रभाव वैज्ञानिकों के लिए पहेली हैं।
किसी विश्वसनीय व्याख्या के अभाव में उनका अनुमान है कि हो सकता है कि अधिक नींद सचमुच बीमार बनाती हो। पर, यह भी हो सकता है कि जो लोग अधिक सोते हैं, वे पहले से ही बीमार हैं और नहीं जानते कि वे बीमार हैं। कुंभकर्णी नींद भी शायद अपने आप में एक बीमारी है।
जानलेवा हो सकती है नींद से छेड़छाड़ कम सोने के पीछे अधिकतर कुछ बाहरी कारण होते हैं- काम का बोझ, शिफ्ट में काम करना, घर में छोटे बच्चे का रोना, रातों में देर तक मौज़-मस्ती करना या टेलीविजन देखना। इससे समय के साथ बीमारियों से लड़ने की शरीर की आत्मरक्षा प्रणाली कमजोर होती जाती है। साथ ही चयापचय क्रिया में गड़बड़ी से वजन बढ़ने लगता है। हृदयगति और रक्तचाप में गड़बड़ी पैदा होने लगती है। दिल का दौरा पड़ना इसका सबसे गंभीर व प्राणघातक रूप है।
बस, एक मीठी नींद... हृदयरोग और लकवे के साथ नींद के गहरे संबंध को दिखाने वाले इस नए अध्ययन से यही संदेश मिलता है कि अपनी नींद के साथ जोर-जबर्दस्ती या खिलवाड़ न करें। हमेशा थका-माँदा या उनींदा महसूस करने पर, बार-बार झपकी आने और सो जाने पर शरीर की माँग को स्वीकार करें। बत्ती बुझाएँ और सो जाएँ। भरपूर सोएँ। हृदयरोग और लकवे की संभावना पर आधी विजय इतने भर से ही मिल जाएगी।