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‘सहारा’ रेगिस्तान भी था हरा-भरा!

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संदीपसिंह सिसोदिया

, शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010 (12:59 IST)

दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान और दुर्गम क्षेत्र ‘सहारा’ का नाम सुनते ही कुछ याद आता है तो सिर्फ धूल, आग उगलता सूरज, गर्म रेतीली हवाएँ, और दूर-दूर तक पानी का नामों-निशान नहीं, कुल मिलाकर जीवन के लिए असंभव परिस्थितियाँ क्योंकि जहाँ पानी नहीं वहाँ जीवन भी नहीं। दरअसल रेगिस्तान के बारे में आमतौर पर हमारी धारणा यही रहती है। अफ्रीका महाद्वीप में 9,400,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैले रेत के इस महासागर को अरबी भाषा में ‘अस-सहारा अल कुब्रा’ अर्थात महान रेगिस्तान कहा जाता है।

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पर गर्म रेत के विशाल टीलों वाले दुनिया के सबसे बड़े मरुस्थल सहारा में यदि 5000 साल पुराने किसी कब्रिस्तान में एक माँ की अस्थियाँ मिलें, जिसे उसके दो बच्चों के साथ दफनाया गया था, तो आप क्या कहेंगे? चमत्कार! नहीं, इससे साफ है कि सहारा में कभी जीवन था। जीवन ही नहीं बल्कि शोधकर्ता तो यहाँ तक कह रहे हैं कि सहारा रेगिस्तान कभी हरा-भरा और उपजाऊ भी था।

क्या से क्या हो गया: सहारा रेगिस्तान के चप्पे-चप्पे से परिचित जानकारों का कहना है कि 6000 साल पहले तक वहाँ हरियाली बिखरी पड़ी थी। उत्तरी अफ्रीका का एक बड़ा हिस्सा पेड़ों और झीलों से भरा पड़ा था। स्वाभाविक तौर पर क्षेत्रफल में आस्ट्रेलिया से बड़े इस इलाके पर जीवन भी था।

ऐसे हुआ खुलासा: शिकागो विश्वविद्यालय का एक अनुसंधान दल दक्षिण-पूर्वी अल्जीरिया में डायनोसोर के अवशेष तलाश रहा था, तभी उन्हें एक विशालकाय कब्रिस्तान का पता चला। विस्तृत खोज करने पर इंसानों के साथ ही पशुओं, बड़ी मछलियों और मगरमच्छों के अवशेष भी मिले। इतिहास के पन्नों को अगर थोड़ा पलटें तो नेशनल जियोग्राफिक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 और 2006 में भी इस स्थान पर 200 कब्रों का पता लगाया गया था।

(आगपढ़े...)


डायनासोर भी विचरते थे इस जगह : सहारा के प्राचीनकाल में हरे-भरे होने का एक और प्रमाण मिलता है वहाँ मिले जीवाष्मों से। नाइजर में जीवाष्मों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों को सहारा रेगिस्तान में मिले जीवाश्मों से माँसाहारी डायनासोर के दो नए प्रकारों की पहचान की है। जिनके बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी।

2008 में एक्टा पैलेंटोलोजिका पोलोनिका जर्नल में प्रकाशित एक खबर में कहा गया है कि एक डायनासौर संभवत: जीवित जानवरों का शिकार करता था और दूसरा मृत और अधखाए प्राणियों को खाता था। दोनों बड़े माँसाहारी समूहों का प्राचीन रिकॉर्ड बताता है कि ये अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और भारत में कम से कम पाँच करोड़ साल पहले रहे होंगे।

दूसरे प्रकार का नाम ईओकारकैरिया डाइनोप्स रखा गया है, जिसके दाँत ब्लेड की तरह थे। इससे अनुमान जताया गया है कि वह जीवित जानवरों का शिकार करता था। क्रिप्टोप्स पैलिओस नामक डायनासौर की लंबाई संभवत: 25 फीट थी और आधुनिक लकड़बग्घे की तरह यह भी मुर्दाखोर था।
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सहारा रेगिस्तान की तलछटी की परतों के अध्ययन के बाद विशेषज्ञों को इस निष्कर्ष पर पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा कि यह मरुस्थल कभी एक हरा था। वहाँ उपजाऊ मिट्टी होने के प्रमाण भी मिले हैं। एक शोधकर्ता सेरेनो डेविट ने बताया कि पूरे क्षेत्र में बड़ी तादाद में इंसानों के साथ ही जानवरों की अस्थियाँ बिखरी हैं। इससे साफ है कि वहाँ कभी घनी आबादी भी रही होगी।

कौन थे सहारा के निवासी : शोधकर्ता सहारा में दो भिन्न प्रकृति के समूहों के पनपने की बात करते हैं। पहले समूह में किफियान (7700 से 6200 बीसी) का नाम लिया जाता है। माना जाता है कि ये लोग सहारा में लगभग 10,000 से 8000 साल पहले रहे होंगे। शोध में यह भी पता चला है कि किफियान लोग काफी स्वस्थ्य और लंबे-चौड़े रहे होंगे। इनकी औसतन लंबाई 6 फीट आँकी गई। जिससे पता चलता है कि उस समय यहाँ खाने-पीने की प्रचुरता थी।

दूसरा समूह, टेनेरियन्स (5200 से 2500 बीसी) का बताया गया है। ये लोग तुलनात्मक रूप से कम हष्ट-पुष्ट और शारीरिक आकार में भी छोटे थे। ये 7000 और 4500 साल पहले वहाँ बसते थे। यह कम होते संसाधनों की ओर इशारा करता है।

टेनेरियन्स को लेकर एक खास बात यह पता चली है कि ये आभूषण पहना करते थे। कब्र में मिली एक युवती के कंकाल में उसके हाथ में ब्रेलसेट देखा गया है, जो जंगली घोड़े की हड्डियों का बना था। एक कब्र में पुरुष को मिट्टी के बने कछुए पर बैठा पाया गया। अंदाजा लगाया जाता है कि उसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के तहत दफनाया गया होगा।

कैसे है संभव : एरिजोना विश्वविद्यालय के जैवपुरात्तवविद् चेरिस स्टोजांकोस्वास्की का कहना है कि एक बारगी तो विश्वास नहीं होता है कि दो भिन्न तरह की सभ्यताएँ सहारा रेगिस्तान में पनपी होगी। दो भिन्न तरह के लोग, उनकी शारीरिक बनावट के साथ ही रहने के तौर-तरीके और खान-पान में भी अंतर देखा गया है।

स्टोजांकोस्वास्की ने बताया कि जब उन्होंने एक कब्र में पुरुष को देखकर साफ तौर पर लगता है कि उसके पैर काफी मजबूर और लंबे रहे होंगे। वह किफियान था। उसका खान-पान काफी पौष्टिक रहा होगा।

वर्तमान प्राणियों से समानता : दूसरी तरफ, पशुओं की अस्थियों के बारे में हाथियों, जिराफ, आदि की अवशेषों का अध्ययन करने वाली वियना के म्यूजियम ऑफ नेचरल हिस्ट्री की पुरात्तवविद् हेलेन जोउसे ने चौंकाने वाली बात कही कि वहाँ मिली पशुओं की हड्डियाँ वर्तमान में केन्या के सेरेनगेटी में पाए जाने वाले पशुओं से मिलती है।

कैसे सूख गया सहारा : अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि हरा-भरा सहारा कैसे रेगिस्तान बन गया? यह अचानक हुआ या वर्षों पुरानी प्रक्रिया का परिणाम था? इस बारे में तरह की बातें कही गई है। वैज्ञानिकों के एक धड़े का कहना है कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे से अंतर से ऐसा हुआ था। कुछ विशेषज्ञ इसे सदियों की प्रक्रिया करार दे रहे हैं।

बहरहाल, यह तो पता लगा लिया गया कि कभी सहारा हरियाली और जीवन से भरपूर था, लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि हालात कैसे बदल गए। वह कौन-सी परिस्थितियाँ रही होंगी जिनके चलते यहाँ पर जीवन असंभव हो गया। विशेषज्ञों के सामने चुनौती है कि इसकी भी तह तक जाएँ जिससे वर्तमान विश्व पर छाए ग्लोबल वॉर्मिंग के संकट का सामना करने में शायद कुछ मदद मिल सके।

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