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21 दिसंबर 2012 को कोई प्रलय नहीं आएगा!

राम यादव

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हमें फॉलो करें 21 दिसंबर 2012 को कोई प्रलय नहीं आएगा!
, मंगलवार, 11 दिसंबर 2012 (12:38 IST)
दुनिया के अंत का डर मानव के अस्तित्व से ही बना हुआ है। इसी तर्ज पर बनी हॉलीवुड फिल्म 2012 में दिखाया गया है कि 21 दिसंबर 2012 को एक ग्रह आएगा। पृथ्वी से टकराएगा। प्रलय आ जाएगा। दुनिया तहस-नहस हो जाएगी। कई सालों से भविष्यवक्ता ढोल पीट रहे हैं कि दुनिया का अंत तय है, हम सब मारे जाएँगे...एक कयामत होगी जो धरती से टकराएगी, ग्रह का नाम होगा नीबीरू।
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नीबीरू काफी समय से चर्चा में है। उसे प्लानेट एक्स भी कहा जाता है। भारत में भी विशेषकर निजी टेलीविजन चैनल उसका खूब ढोल पीट रहे हैं। कहते हैं कि 21 दिसंबर 2012 को महाप्रलय आने वाला है। दुनिया नष्ट होने वाली है। माया सभ्यता के लोग इस की भविष्यवाणी कर गए हैं। उनका कैलेंडर इसी तारीख के साथ समाप्त हो जाता है।

तथ्य यह है कि अमेरिकी महाद्वीप पर माया सभ्यता स्वयं भी कब की लुप्त हो चुकी है। उस के कैलेंडर के अंत को विश्व का अंत भला क्यों मान लिया जाए? तथ्य यह भी है कि महाप्रलय और विश्व के अंत की भविष्यवाणियाँ पहले भी अनेक हो चुकी हैं। पृथ्वी चार अरब वर्षों से अपनी जगह पर है। न प्रलय आया और न विश्व नष्ट हुआ। यह सब समय-समय पर सनसनी और आतंक फैलाकर पैसा बनाने वालों की कारस्तानी है।

अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक डेविड मॉरिसन कहते हैं कि नीबीरू नाम के किसी ग्रह का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं है।

वे कहते हैं 'सबसे सीधी बात यह है कि नीबीरू का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यह पूछने के बदले कि उस के बारे में इतना शोर पैदा कैसे हुआ, खगोलविदों से यह पूछें कि वे क्या जानते हैं? नीबीरू या प्लानेट एक्स जैसी कोई चीज दिसंबर 2012 में यदि सौर मंडल के भीतर आने वाली होती, तो दुनिया भर के पेशेवर और शौकिया खगोलविद दशकों से उस पर नजर रखे रहे होते। अब तक तो वह नंगी आँखों से भी दिखने लगा होता, लेकिन, उसका कोई अता-पता नहीं है।'

कहां से आया है यह नीबुरू, अगले पन्ने पर..


नीबीरू मूल रूप में अमेरिका के विस्कॉन्सिन में रहने वाली नैन्सी लीडर नाम की एक महिला के दिमाग की उपज है। उस का कहना है कि उस के मस्तिष्क में एक प्रतिरोपण है, जिसके जरिये वह जेटा रेटीकुली नाम की एक ग्रह प्रणाली के लोगों के साथ संपर्क में रहती है। 1995 में जेटा रेटीकुली वालों ने उसे मनुष्य जाति को आगाह करने के लिए कहा कि मई 2003 में एक विशाल पिंड सौरमंडल में से गुजरेगा। वह पृथ्वी के ध्रुवों को इस तरह बदल देगा कि मानव जाति का लगभग अंत हो जाएगा। नैन्सी लीडर ने 1995 में जेटा टॉक्स नाम से एक इंटरनेट वेबसाइट बनाई और अपने कपोलकल्पित प्रलय का प्रचार करने लगी।

2003 में कुछ नहीं हुआ। कहा गया कि 2010 के आस-पास जरूर प्रलय आएगा। अब 2010 भी ड्योढ़ी पर खड़ा है। नीबीरू का कहीं नाम-निशान नहीं है। इसलिए माया सभ्यता के कैलेंडर की आड़ लेकर 21 दिसंबर 2012 को नया प्रलय दिवस घोषित कर दिया गया है। नीबीरू के आने के साथ यह भी जोड़ दिया गया है कि हमारा सूर्य आकाशगंगा के मध्य में सरककर कई आकाशीय पिंडों की सीध में आ जाएगा, जो कि हमारे लिए महा-अनिष्टकारी होगा।

नासा के डेविड मॉरिसन इस डर को भी निराधार बताते हैं, 'पृथ्वी पर से देखने पर सूर्य हर साल दिसंबर में आकाशगंगा के बीच की ओर जाता दिखता है, लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है। यदि आपको दिसंबर 2009 को लेकर कोई चिंता नहीं है, तो दिसंबर 2012 को लेकर भी कोई चिंता नहीं करें।'

अंतरिक्ष पर चौतरफा नजर रखना अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा का एक प्रमुख काम है। उसके रिसर्च सेंटर की ओर से डेविड मॉरिस ने एक वीडियो संदेश में प्रलय की सारी संभावनाओं का खंडन करते हुए कहा कि कई आकाशीय पिंडों का एकसीध में आना भी कोई अनहोनी बात नहीं है। यह जिज्ञासा का विषय हो सकता है, लेकिन किसी सच्ची वैज्ञानिक दिलचस्पी का विषय नहीं है।

उनका कहना है, 'पृथ्वी के ध्रुवों को लेकर भी चिंता फैलाई जा रही है कि वे बदल जाएँगे, पर कोई नहीं कहता कि यह होगा कैसे। यदि बात पृथ्वी की घूर्णन-धुरी वाले ध्रुवों की है, तो ऐसा कोई परिवर्तन न तो कभी हुआ है और न होगा। हाँ, पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव जरूर हर कुछ लाख वर्षों पर अपनी जगह बदल देते हैं। लेकिन उस के भी 2012 में होने के कोई प्रमाण नहीं हैं और न उससे कोई नुकसान हो सकता है। कुछ लोग इसके साथ सौर सक्रियता और सौर ज्वालाओं के बढ़ जाने को जोड़ कर देखते हैं। सौर सक्रियता का चक्र हर 11 वर्ष पर अपने चरम पर होता है। कभी-कभी उससे पृथ्वी पर कुछ नुकसान भी होता है, पर कोई सच्चा नुकसान नहीं होता। अगली अधिकतम सौर सक्रियता 2013 में आने वाली है, न कि 2012 में और वह भी अब तक के औसत से कम उग्र होगी।'

यानी 2012 का सारा हौवा बकवास है, झूठ है। अपने एक वक्तव्य में नासा ने कहा है कि इस समय एक ही लघुग्रह है, एरिस, जो सौरमंडल की बाहरी सीमा के पास की कुइपियर बेल्ट में पड़ता है और आज से 147 साल बाद 2257 में पृथ्वी के कुछ निकट आएगा, तब भी उससे छह अरब चालीस करोड़ किलोमीटर दूर से निकल जाएगा। कोई प्रलय नहीं आ रहा है, 2012 जैसी चाहे जितनी फिल्में बनें।

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