पूरी दुनिया पर एक बड़ी सुनामी का खतरा मंडरा रहा है। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि पूरी पश्चिमी अंटार्कटिका बर्फ की चादर टूट सकती है और सारी दुनिया में समुद्र के स्तर में 10 फुट की बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है। दशकों से बढ़ रहे तापमान से बर्फ पिघल रही है और इसी दर से यह होता रहा तो अगले 60 साल में में खतरनाक स्थितियां बन जाएंगी। पिछले साल वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि पश्चिमी अंटार्कटिका के अमुंडसन समुद्र के बर्फ के पहाड़ पिछले साल ही न रुकने वाले क्षय की स्थिति में पहुंच चुके हैं।
एक नए शोध के मुताबिक समस्या गहरा चुकी है और इसके अनुसार पहले सिर्फ अमुंडसन समुद्र के ग्लैशियर पिघलने का दावा किया गया था परंतु अब सारे पश्चिमी अंटार्कटिका के ग्लेशियरों पर खतरा मंडरा रहा है। इसके परिणाम भयंकर होंगे। सारे ग्लैशियर पिघलने से समुद्र में जल का स्तर तीन मीटर यानी 9.8 फुट बढ़ जाएगा, ऐसी आशंका वैज्ञानिकों ने जताई है।
अगले पन्ने पर, तो डूब जाएंगे न्यूयॉर्क जैसे शहर..
वर्तमान में 150 मिलियन से ज्यादा लोग वैश्विक तौर पर समुद्र से करीब 1 मीटर दूरी पर रहते हैं। युनाइटेड स्टेट्स में समुद्र स्तर में हुई 3 मीटर की बढ़ोतरी से न्यूयोर्क और मियामी जैसे शहर डूब जाएंगे। नेशनल एकेडमी ऑफ सांइसेज के शोधों में एक ग्लेशियर के पिघलने पर आने वाले खतरों के प्रति आगाह किया गया है। अमुडंसन समुद्र को हमेशा से ही सबसे कमजोर बर्फ की परत माना गया है परंतु नए शोध में अमुडंसन समुद्र में आए बदलाव से पूरी अंटार्कटिका बर्फ की चादर गहरा नुकसान पहुंचेगा। अंटार्कटिका बर्फ की चादर की चौड़ाई में कमी से समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है।
जोहांनेस फेल्डमैन, पोट्स्डम इंस्टीट्युट के प्रमुख लेखक, कहते हैं ,'जिसे हम अंटार्टिका की हमेशा जमी रहने वाली बर्फ समझ रहे थे वह हमेशा जमी नहीं रहेगी।' नासा ने भी एक हालिया शोध में पाया है कि अंटार्टिका में बर्फ की चादर में ज्यादा बर्फ जुड़ रही है बजाय घटने के परंतु यह स्थिति बहुत समय तक नहीं बनी रहेगी। समुद्रों में बढ रही गर्माहट के कारण बर्फ नीचे से पिघलना शुरू हो चुकी है। इस शोध के अनुसार अंटार्टिका में बर्फ की चादर मोटी हो रही है वहीं ग्लेशियर पिघल रहे हैं।
नासा का शोध, पहले की जा चुके अन्य अध्ययनों की रिपोर्ट नकारता है जिनमें इंटरगोवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चैंज की 2013 में आई रिपोर्ट है जिसमें अंटार्टिका पर से जमीन पर की बर्फ को घटता हुआ बताया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि अंटार्टिका में बर्फ बढ़ना करीब 10,000 पहले शुरू हुआ और यह पूर्वी अंटार्टिका और पश्चिमी अंटार्टिका में 0.7 इंच की दर से बढ़ाता गया। शोधकर्ताओं ने उपग्रह से मिले डेटा के माध्यम से दिखाया है की अंटार्टिका की बर्फ की चादर में 112 बिलियन टन की बढ़ोत्तरी हर वर्ष साल 1992 और 2001 के दौरान हुई है।
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नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर ग्रीनबेल्ट के ग्लेशिओलोगिजिस्ट जे ज़्वालै कहते हैं, 'हम उन सभी रिपोर्टों के पक्ष में हैं जिनमें अंटार्टिका, पेनिनसुला, थवैट्स और पाइन द्वीपों पर बर्फ में वृद्धि दर्शयी गई है। हमारी रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी और पश्चिमी अंटार्टिका में बर्फ में बढ़ोत्तरी हुई है जो ग्लेशियर में घटी बर्फ से कहीं ज्यादा है।'
फेल्डमैन कहते हैं, 'हमारे शोध के अनुसार, अभी की दर से बर्फ घटने पर अगले 60 साल में ऐसी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी जिसे बाद में रोकना नामुमकिन होगा और जो हजारों साल तक चलेगी। इस प्रक्रिया से समुद्र स्तर में 3 मीटर की बढ़त होगी जो निश्चिततौर पर बहुत लंबी प्रक्रिया है।'
आईपीसीसी सी-लेवल एक्सपर्ट एंडरेस लेवेर्मैन कहते है कि अभी तक हमारे पास पर्याप्त सुबूत नहीं हैं कि अमुंडसेन में बर्फ के पिघलने के पीछे ग्रीनहाउस गैसों और ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार माना जा सके। परंतु यह साफ है कि ग्रीनहाउस गैसों के निकलने से बर्फ के पिघलने के खतरों का पश्चिमी अंटार्टिका में इजाफा जरूर होगा। इससे हमें डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह बहुत धीरे धीरे होता है। परंतु इसके लिए चिंता की जानी आवश्यक है क्योंकि इससे हमारा भविष्य बर्बाद हो जाएगा। हम जिन शहरों में रहते हैं उनका नामो निशान मिट जाएगा अगर अभी से कार्बन स्त्राव में कमी न लाई गई तो।