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खगोल विज्ञान की उत्पत्ति क्या भारत में हुई?

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अनिरुद्ध जोशी

खगोल विज्ञान अर्थात एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) परंतु हमारे देश में प्राचीनकाल से ही ज्योतिष अर्थात एस्ट्रोलॉजी (Astrology) प्रचलित रही है। क्या एस्ट्रोनॉमी से भिन्न है एस्ट्रोलॉजी। पर सवाल यह उठता है कि फिर क्या भारत में खगोल विज्ञान की उत्पत्ति नहीं हुई।
 
 
अब तक ब्रह्मांड में लगभग 19 अरब आकाश गंगाओं के होने का पता चला है और प्रत्येक आकाश गंगा में लगभग 10 अरब तारे होने का अनुमान है। आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है। इन सभी की गणना करना और इनके बारे में जानना ही एस्ट्रोनॉमी है परंतु जो लोग इनका धरती पर प्रभाव मानते हैं या किसी व्यक्ति विशेष पर इसका प्रभाव मानते हैं उन्हें परंपरागत रूप से ज्योतिष मानते हैं परंतु ऐसा नहीं है।
 
संपूर्ण विश्व को खगोल विज्ञान देने का श्रेय भारत को ही जाता है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। इससे पहले वेद वाचिक परंपरा द्वारा संरक्षित रखे गए थे। वाचिक परंपरा जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है।
 
ऋग्वेद में खगोल विज्ञान से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। यूरेनस को एक राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्चून को 1648 वर्ष तथा प्लूटो को 2844 वर्षों का समय लगता है। वैदिक काल में खगोल विज्ञान को ज्योतिष कहा जाता था। गुप्तकाल में वेदों के इस खगोलीय विज्ञान को भविष्य देखने के विज्ञान में बदल दिया गया, जो कि भारत के लिए दुर्भाग्य साबित हुआ।
 
वेदांगा ज्योतिष में सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्रों, सौरमंडल के ग्रहों और ग्रहण के विषय में सटीक जानकारी दी गई है जो आज का विज्ञान भी सही मानता है। वेदों के ज्योतिष अंग में संपूर्ण ब्रह्मांड की गति और स्थिरता का विवरण मिलता है।
 
आर्यभट्ट ने वेद, उपनिषद आदि का अध्ययन करके के बाद ही कहा था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर रहते हुए सूर्य की परिक्रमा पूरी करती है। आर्यभट्ट ने इस रहस्य को विस्तार से बताकर विश्‍व के समक्ष रखा। आज का आधुनिक विज्ञान भी यही मानता है। उन्होंने ने पांचवीं सदी में यह बताया था कि पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 356 दिन 5 घंटे और 48 सेकंड का समय लेती है।
 
हमारे देश में खगोल विज्ञान के कई वैज्ञानिक रहे हैं जैसे भास्कराचार्य, आर्यभट्ट, वराह मिहिर, लगध, ब्रह्मगुप्त, कणाद आदि। ये सभी अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के बारे में उसी तरह जानते थे जिस तरह की आज का विज्ञान जान रहा है।

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