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मंगल के जटिल किन्तु रोचक अभियान

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शरद सिंगी

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अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में मंगल से आ रही सूचनाओं का बड़ी उत्सुकता से इंतजार किया जा रहा है। चांद को खंगालने के बाद जब खगोल वैज्ञानिकों को कुछ हाथ नहीं लगा तो उन्होंने मंगल की ओर रुख किया, क्योंकि सौरमंडल का यही एक सदस्य ऐसा है, जहां वैज्ञानिकों को जीवन की कुछ संभावना लगी। मंगल हमारे सौरमंडल का एक महत्वपूर्ण एवं पड़ोसी सदस्य है।

आयरन ऑक्साइड (जंग) लगी चट्टानें की वजह से इसकी सतह लाल है और इसलिए इसे लाल ग्रह के नाम से भी पुकारते हैं। पृथ्वी की तरह अपनी धुरी पर झुका हुआ, आकार में आधा और पृथ्वी के सामान ही चौबीस घंटे से चालीस मिनिट अधिक का दिन। किन्तु वर्ष 687 दिनों का होता है। तापमान सर्दियों में शून्य से 90 डिग्री नीचे तथा गर्मियों में शून्य डिग्री तक पहुंचता है।

किसी भी ग्रह पर पृथ्वी जैसा जीवन होने के लिए अनेक तत्व और संयोग आवश्यक हैं, उनमें से महत्वपूर्ण हैं प्राणवायु याने ऑक्सीजन, उपयुक्त तापमान, एक ऐसा सूर्य जैसा तारा जो उर्जा और प्रकाश का स्त्रोत हो तथा पानी का तरल अवस्था में होना। शायद ही सबको पता हो कि मंगल पर यान भेजने की चालीस से ज्यादा प्रयास किए गए। कुछ सफल रहे तो कई असफल।

अस्सी के दशक के वाइकिंग -1 और 2 उन सफल यानों में से थे, जो कई सालों तक सूचनाएं भेजते रहे। वर्तमान में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा भेजे गए दो रोबोट चालित यान 'क्यूरोसिटी' और 'अपार्चुनिटी' मंगल की सतह पर कार्यरत हैं, जो अनेक महत्वपूर्ण और रोचक जानकारियां एकत्रित करके पृथ्वी पर भेज रहे हैं।

अभी तक की जानकारी के अनुसार यहां भी पहाड़, घाटियां, बादल और विभिन्न मौसम हैं, किन्तु जीवन का कोई नामो-निशान नहीं। पानी भी नहीं। हां, सतह पर मिले कुछ निशानों से ऐसा प्रतीत होता है कि संभवत: कभी पानी वहां से बहा होगा। वायुमंडल 95% कार्बन डाई आक्साइड से भरा हुआ है, जो जीवन की संभावना को और कमजोर कर देता है। पिछले सप्ताह मंगल से आए एक फोटो में फूल जैसी आकृति देखकर नियंत्रण कक्ष में उत्तेजना की लहर दौड़ी पर वे चट्टानों के टुकड़े ही निकले।

अपने सौरमंडल की उत्पत्ति और ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने की जिज्ञासा वैज्ञानिकों को नित नई चुनौतियां देती है। उन्नीसवीं सदी के महानतम वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन को तो सब जानते हैं पर यह कम लोग जानते हैं कि उनके किस प्रतिपादन के लिए उन्हें महानतम कहा जाता है। आइंस्टीन ने दुनिया के वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड को खोलने की चाभी दी। उन्होंने सापेक्षता (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी) के दो सिद्धांत दिए।

पहला सिद्धांत यह है कि हर गतिमान वस्तु की गति सापेक्ष होती है। उदाहरण के लिए एक ही दिशा में सौ किमी प्रति घंटे की गति से दौड़ रही दो कारों के बीच की गति शून्य होगी, वहीं धरती पर खड़े पर्यवेक्षक के लिए उनकी गति सौ किमी प्रति घंटा होगी। यदि इन कारों को विपरीत दिशा में दौड़ा दिया जाए तो एक कार की गति दूसरी कार के सापेक्ष 200 किमी प्रतिघंटा होगी।

रहस्य जितने गूढ़, सिद्धांत उतने ही जटिल पर मानव की जिजीविषा भी अनंत। कभी तो परदा उठेगा, कभी तो रहस्य खुलेंगे
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आइंस्टीन का दूसरा सिद्धांत थोड़ा जटिल है। इसमें उन्होंने अंतरिक्ष और समय के बीच एक दिलचस्प युति का होना बताया है, जो लम्बाई और चौड़ाई की तरह एक नया आयाम बनाता है। प्रकाश की गति जो लगभग 300000 किमी मीटर प्रति सेकंड है, एक स्थिर अंक है जो निरपेक्ष है। यह गति विश्व के सृजन के मूल आधारों में से एक है और सार्वलौकिक गति सीमा भी। पर्यवेक्षक स्थिर हो या गतिमान, प्रकाश की गति में कोई बदलाव नहीं होता है।

आइंस्टीन के अनुसार प्रकाश की गति पाना संभव नहीं क्योंकि गति के साथ वस्तु का द्रव्यमान भी बढ़ता जाता है और प्रकाश की गति पाने पर द्रव्यमान अनंत हो जाता है। अनंत द्रव्यमान को प्रकाश की गति से चलने के लिए चाहिए अनंत उर्जा चाहिए जो संभव नहीं। इस नियम से ब्रह्मांड की चाभी तो मिल गई पर अब यही नियम आगे की प्रगति में अवरोध बन गया है।

रचियता के इस संसार में दूरियां इतनी हैं कि हमारे सौरमंडल के बाहर सबसे नज़दीक ग्रह तक पहुंचने के लिए चार प्रकाश वर्ष चाहिए। एक प्रकाशवर्ष माने एक वर्ष में 300000 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से प्रकाश द्वारा चली गई दूरी। प्रकाश की गति पाना तो संभव नहीं और आज हमारे पास जो गति है उस गति से यदि हम सौरमंडल के बाहर के सबसे नजदीकी ग्रह की ओर चलें तो हम कई पीढ़ियों के बाद उस तक पहुंचेंगे।

विज्ञान अभी अविकसित है और चुनौतियां गगनचुम्बी। ब्रह्मांड का विस्तार अनंत है और मानव की शक्तियां तुच्छ। यहां हमारे पुराणों के अलौकिक चरित्र नारद मुनि का स्मरण होना स्वाभाविक है, जिन्हें पलक झपकते ही किसी भी लोक या ग्रह पर पहुंचने की सिद्धि प्राप्त थी। इसलिए हे नारद मुनि कृपा करो, पलक झपककर ग्रहों को पार करने वाला रहस्य बताओ नहीं तो मानव की कई पीढियां खटेंगी इस सौरमंडल से बाहर निकलकर आकाशगंगा में विचरण करने के लिए।

यदि नारद मुनि के पास प्रकाश की गति से चलने का वरदान है तो आइंस्टीन के अनुसार प्रकाश की गति पाने वाले पर समय का प्रभाव खत्म हो जाता है और उसी क्षण वह गंतव्य पर होता है जिस क्षण वह गंतव्य के लिए निकला था। हां किंतु बाहर के लोगों के लिए तब तक शायद युग बदल जाए। रहस्य जितने गूढ़, सिद्धांत उतने ही जटिल पर मानव की जिजीविषा भी अनंत। कभी तो परदा उठेगा, कभी तो रहस्य खुलेंगे और कभी कोई पीढ़ी सौरमंडल की सीमाओं से परे इस विस्तार को देखेगी।

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