सुपरसॉनिक जांबाज ने प्रेम के आगे घुटने टेके
, मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012 (20:05 IST)
जांबाजी के शौकीन ऑस्ट्रिया निवासी 43 वर्षीय फेलिक्स बाउमगार्टनर ने एक बार फिर दुनिया को स्तब्ध कर दिया है। अब तक यह जांबाज अधिकतर एक से एक ऊंची इमारतों और खतरनाक पहाड़ियों पर से 'बेसजंप' लगाता रहा है। लेकिन, 14 अक्टूबर को उसने ध्वनि से भी तेज सुपरसॉनिक गति से 'स्पेसजंप' लगाते हुए गति और ऊंचाई के अब तक के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए।
ऑस्ट्रियाई सेना का यह भूतपूर्व सैनिक जान हथेली पर रख कर हर खतरनाक ऊंचाइयों पर से धुकधुकी भरी छलांगें लगाने का माहिर है। 2005 से हर असंभव-जैसे जोखिम को स्वयं ही चुनौती देता रहा है। हारना तो वह जानता ही नहीं। लेकिन, इस बार ख्याति के शिखर पर पहुंचते ही उसने अपनी हार मान ली है। प्रकृति के आगे नहीं, अपनी प्रेमिका के आगे। ध्वनि की गति वाली लक्षमण-रेखा को तोड़ने के साथ ही फेलिक्स बाउमगार्टनर ने अपनी गर्लफ्रेंड से वादा किया है कि अब वे किसी कमाल-धमाल के चक्कर में नहीं पड़ेंगे। बाउमगार्टनर को अपनी ऐतिहासिक छलांग की लंबी तैयारी करनी पड़ी थी। रॉसवेल, अमेरिका में कम से कम तीन बार तकनीकी या मौसमी कारणों से उन्हें अपना जांबाजी प्रयास स्थगित करना पड़ा था। प्लास्टिक के बने और हीलियम गैस से भरे 120 मीटर व्यास और 212 मीटर ऊंचाई वाले एक विशाल पारदर्शी गुब्बारे की सहाता से उन्हें पहले 39.045 किलोमीटर (128 100 फुट) की ऊंचाई पर पहुंचाया गया। लगभग पौने दो मीटर व्यास वाला 1315 किलो भारी उन का विशेष कैप्सूल गुब्बारे के निचले छोर से लटक रहा था। स्ट्रैटोस्फियर अंतरिक्ष नहीं है : स्ट्रैटोस्फियर कहलाने वाली ऊंचाई पर पहुंचने में गुब्बारे को लगभग ढाई घंटे का समय लगा। हवा वहां इतनी विरल है कि बाहरी तापमान शून्य से भी 23 डिग्री सेल्जियस नीचे गिर जाता है। विरल हवा और भीषण ठंड के कारण इस ऊंचाई पर वैसा ही प्रेशर (दबाव) सूट पहनना जरूरी है, जैसा अंतरिक्षयात्री पहनते हैं। बाउमगार्टनर ने भी ऐसा ही एक सूट पहन रखा था। सूट की आस्तीन की बायीं कुहनी के पास ऊंचाई बताने वाला एल्टीमीटर और दोनों पांयचों पर एक-एक हाई डेफिनिशन (HD) वीडियो कैमरा लगा हुआ था। स्ट्रैटोस्फियर अंतरिक्ष नहीं है। अंतरिक्ष वह अवस्था है, जहां हवा लगभग बिल्कुल नहीं है और उड़ान की गति इतनी अधिक होती है कि किसी चीज़ का कोई भार नहीं रह जाता। स्ट्रैटोस्फियर में अंतरिक्ष जैसा शून्य नहीं होता। बहुत विरल ही सही, तब भी वहां हवा भी होती है और पृथ्वी पर की तरह ही हर चीज़ का अपना भार भी होता है। हां, वहां बादल नहीं होते और न हवा बहती है।स्ट्रैटोस्फियर में हवा बहुत विरल होने और तापमान बहुत कम होने से दो ऐसे प्रभाव पैदा होते हैं, जो अधिकतम 10 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक पहुंचने वाले यात्री विमानों से कूदने पर नहीं देखने में आते। हवा बहुत विरल होने से वायु-प्रतिरोध बहुत कम हो जाता है, यानी नीचे गिरने की गति हवा की विरलता के समानुपात में बढ़ती जाती है। तापमान बहुत कम होने से ध्वनि फैलने की गति घट जाती है।उदाहरण के लिए, 20 डिग्री सेल्ज़ियस तापमान पर ध्वनि की गति लगभग 1235 किलोमीटर प्रतिघंटा है। लेकिन, 39 किलोमीटर की ऊंचाई पर से नीचे गिरते हुए फेलिक्स बाउमगार्टनर नें जिस ऊंचाई पर 1342.8 किलोमीटर की अधिकतम गति का रेकॉर्ड बनाया, उस ऊंचाई और तापमान पर ध्वनि की गति केवल 1078 किलोमीटर प्रतिघंटा थी।