मां ललिता जयंती का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है। इस दिन मां ललिता की पूजा की जाती है। इन्हें दस महाविद्याओं की तीसरी महाविद्या माना जाता है। माता ललिता की पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और मरने के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए माघ पूर्णिमा के दिन मां ललिता की पूजा करना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है। ललिता जंयती के दिन मां ललिता की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
9 फरवरी 2020 : ललिता जंयती 2020 : शुभ मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त - दोपहर 12 बजकर 13 मिनट से रात 1 बजे तक
अमृत काल मुहूर्त - शाम 6 बजकर 17 मिनट से शाम 7 बजकर 43 मिनट तक
निशिथ मुहूर्त- रात 12 बजकर12 मिनट से रात 1 बजकर 1 मिनट तक (10 जनवरी 2020)
महत्व
ललिता जंयती प्रत्येक साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है। इस दिन मां ललिता की ललिता की आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनकी अराधना करने से व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। मां ललिता की पूजा करने वाले व्यक्ति को जीवित रहते ही सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
ललिता जंयती के दिन मां ललिता के साथ स्कंदमाता और भगवान शंकर की पूजा भी की जाती है। माता ललिता को राजेश्वरी, षोडशी,त्रिपुरा सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है। माता ललिता मां पार्वती का ही एक रूप है। इनका एक नाम तांत्रिक पार्वती भी है।
ललिता जयंती की पूजा विधि
1. मां ललिता की पूजा करना चाहते हैं तो सूर्यास्त से पहले उठें और सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
2. इसके बाद एक चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें और स्वंय उतर दिशा की और बैठ जाएं फिर चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं।
3. चौकी पर कपड़ा बिछाने के बाद मां ललिता की तस्वीर स्थापित करें। यदि आपको मां षोडशी की तस्वीर न मिले तो आप श्री यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं।
4.इसके बाद मां ललिता का कुमकुम से तिलक करें और उन्हें अक्षत, फल, फूल, दूध से बना प्रसाद या खीर अर्पित करें।
5.यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद मां ललिता की विधिवत पूजा करें और ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ मंत्र का जाप करें।
6. इसके बाद मां ललिता की कथा सुनें या पढ़ें।
7. कथा पढ़ने के बाद मां ललिता की धूप व दीप से आरती उतारें और उन्हें सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं।
8.इसके बाद मां ललिता को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं और माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें।
9. पूजा के बाद प्रसाद का नौ वर्ष से छोटी कन्याओं के बीच में वितरण कर दें।
10. यदि आपको नौ वर्ष से छोटी कन्याएं न मिले तो आप यह प्रसाद गाय को खिला दें।