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कितना सकारात्मक होगा पैकेज का असर?

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देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट के संकेत दिख रहे हैं। एक समय पर दो अंकों में चल रही अर्थव्यवस्था को 7 प्रतिशत के विकास लक्ष्य पर बनाए रखने के लिए सरकार जूझ रही है।

दरअसल मंदी इस समय देशभर में है और भारत में कर्ज की ऊँची लागत की वजह प्रोडक्शन और डिमांड दोनों पर असर पड़ रहा है। अर्थशास्त्री यह मानने लगे हैं कि इस कारोबारी साल में देश 7 प्रतिशत की रफ्तार से ही तरक्की कर पाएगा। यह बात और है कि विकास वृद्धि को लेकर सरकारी दावे अभी भी उदारता से भरे हैं।

मंदी के प्रभाव को दूर करने के लिए सरकार द्वारा घोषित प्रोत्साहन पैकेजों एवं रियायतों का पिटारा खोल दिया गया है लेकिन इसके लाभ होने के साथ कुछ नुकसान होने की आशंका है। पैकेज और रियायतों के चलते चालू वित्तवर्ष में वित्तीय घाटा तय लक्ष्य की तुलना में दुगने से भी अधिक हो जाने का अनुमान है।

हालाँकि वित्त सचिव अरुण रामानाथन का मानना है कि सरकार जो उपाय कर रही है, उसका असर देखने में थोड़ा वक्त लगेगा। उन्होंने कहा कि दूसरा राहत पैकेज लाने का कतई यह मतलब नहीं है कि पहले पैकेज का असर बाजार में ज्यादा नहीं दिखा। सरकार इसलिए निरंतर उपाय कर रही है ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार पर वैश्विक मंदी का असर कम हो। पर यह असर कितना कम हो सकेगा, इसको लेकर सरकारी और गैर सरकारी अनुमानों में काफी अंतर हो सकता है।

इन राहत पैकेजों का सबसे बड़ा असर जीडीपी पर पड़ेगा और इसके बहुत बढ़ने की आशंका जाहिर की जा रही है। सरकार ने 2008-09 में वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ढाई प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य रखा था किंतु वैश्विक वित्तीय मंदी के असर को दूर करने के लिए उठाए गए कदमों से इसके बढ़कर 5 प्रतिशत तक पहुँच जाने की आशंका है।

वित्तीय सचिव अरुण रामानाथन भी मानते हैं कि अब तक जो दो प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए गए हैं, उनमें दी गई रियायतों से राजस्व प्राप्ति में 400 अरब रु. का नुकसान होने का अनुमान है। सरकार ने पहले प्रोत्साहन पैकेज में सैनवेट की चार प्रतिशत की दर को हटाया था।

पर सरकार के इस उपाय का लाभ आम आदमी तक पहुँच सकेगा, इस बात को लेकर आशंका बनी रहेगी। चालू वित्तवर्ष के पहले 8 माह के दौरान वित्तीय घाटा 17 खरब 70 अरब रुपए पर पहुँच गया है, जो वार्षिक लक्ष्य का 132.4 प्रतिशत है।

उधर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलूवालिया ने कहा है कि वर्तमान में जो भी संकेत हैं उन्हें देखते हुए वैश्विक लिहाज से अगला वित्तवर्ष बहुत मुश्किलों भरा होगा। हालाँकि सरकार की ओर से यह दावे किए जा रहे हैं कि स्थिति में लगातार सुधार होगा।

सरकार की वित्तीय राहत पैकेज क‍ी दूसरी किस्त की घोषणाओं के पीछे छिपी निराशा को साफ पढ़ा जा सकता है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलूवालिया का कहना कि यह अंतिम राहत पैकेज है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी पैकेज की जरूरत पड़ी तो उसके लिए हमें दिल्ली की गद्दी पर नई सरकार के बैठने का इंतजार करना होगा, जो जून 2009 में संभव है।

इसलिए अब अहम सवाल यह है कि क्या इस कारोबारी साल में फूँकी गई जान और अब तक सामने आई वित्तीय नीतियाँ आगे भी राहत के रास्ते दिखाना जारी रखेंगी और क्या खुद इसे आगे तक ले जा सकेंगी?

नीति-निर्माताओं व अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अगले कारोबारी साल में 7 फीसदी से ज्यादा तेजी से बढ़ेगी। हालाँकि इसके लिए घोषित की जा चुकी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को समुचित रूप से लागू करना होगा तथा आर्थिक एजेंट की भूमिका निभाने वाले वित्तीय संस्थानों और निवेशकों को ठोस विचारों के साथ फैसला करना होगा, पर सवाल यह है कि यह कहाँ तक संभव हो पाएगा?

उन्होंने 'तर्कों से परे' इस भविष्यवाणी को दरकिनार कर दिया कि अगला साल और मुश्किलें लेकर आएगा और ब्याज दरें इस साल से भी निचले स्तर पर रहेंगी। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) के चेअरमैन सुरेश तेंडुलकर अगले कारोबारी साल में 7.5 फीसदी से ज्यादा वृद्धि दर की उम्मीद कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के क्रियान्वयन को रफ्तार देने में कामयाब होती है और नकदी भंडार रखने वाली कंपनियाँ (हालाँकि कुछ कंपनियों की आमदनी पर चोट पड़ी है लेकिन इसके बावजूद उनके पास नकदी है) उत्पाद एवं सेवाओं का प्रवाह जारी रखती हैं तथा इकानॉमिक एजेंट (बैंक, निवेशक और कर्जदार) सही फैसले लेते हैं तो अर्थव्यवस्था अगले कारोबारी साल में कम से कम 7.5 फीसदी की गति पकड़ सकती है। पर इन सभी तथ्यों के साथ अगर, मगर, किंतु, परंतु भी जुड़े हुए हैं।

ईएसी के सदस्य सौमित्र चौधरी का मानना है कि कारोबार से जुड़े भरोसे में कमी की वजह से थमी निवेश गतिविधियाँ अगले कारोबारी साल की दूसरी छमाही में दोबारा रफ्तार पकड़ेंगी और आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती अगली दो तिमाहियों में खत्म हो जाएगी। अगले वित्तवर्ष की दूसरी छमाही में मजबूत निवेश गतिविधियों के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था वापसी करेगी जिससे कारोबारी साल में वृद्धि दर 7 फीसदी के ऊपर पहुँच जाएगी।

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के प्रमुख अर्थशास्त्री डीके जोशी को उम्मीद है कि वित्तीय बाजारों में अब सुधार देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक की ओर से किए गए मौद्रिक उपाय ब्याज दरों को लेकर संवेदनशील सेक्टरों में फिर जान फूँकने के लिए पर्याप्त हैं। हालाँकि निर्यात आधारित सेक्टरों को वापसी करने में कुछ वक्त जरूर लगेगा लेकिन घरेलू माँग से प्रभावित होने वाले सेगमेंट में बढ़त दर क्या अगली दो तिमाहियों में गति पकड़ लेगी?

आम आदमी की सबसे बड़ी चाहत थी कि सरकार ने जिस तरह से 20 लाख रुपए तक के होम लोन पर ब्याज दर 9.25 फीसदी कर दी है, अब 30 लाख रुपए तक के होम लोन को भी इसी दायरे में लाया जाए। मगर ऐसा नहीं हुआ। पैकेज पेश करने के बाद योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलूवालिया ने कहा कि ऐसा करने का न तो सरकार का इरादा है और न इसकी जरूरत।

वित्त सचिव अरुण रामानाथन ने भी उनकी बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अब तक आँकड़ों को देखा जाए तो सरकारी बैंकों ने कुल दिए होम लोन में से करीब 93 फीसदी लोन 20 लाख रुपए या उससे कम के दिए हैं। यानी 20 लाख रुपए तक के होम लोन की डिमांड ही ज्यादा है।

अहलूवालिया ने यह खुलासा भी किया कि आने वाले समय में किसी टैक्स में कोई छूट नहीं दी जाएगी। इससे यह बात जाहिर हो गई है कि टैक्स छूट बढ़ाने की जो बात कही जा रही थी, अब वह पूरी नहीं होगी।

इसके अलावा उम्मीद यह भी थी कि दूसरे राहत पैकेज में सरकार केंद्रीय मूल्य संवर्धित कर (सेनवैट) में और कमी करेगी। पिछले पैकेज में उसने इसमें 4 फीसदी की कटौती की थी। विभिन्न वस्तुओं पर सेनवैट की दर 8, 10 और 14 फीसदी है। पिछले राहत पैकेज में इसमें कमी के बावजूद एफएमसीजी कंपनियों ने अभी तक वस्तुओं की कीमतें नहीं घटाई हैं। इन कंपनियों का मानना है कि यह कमी मौजूदा परिस्थितियों में नाकाफी है। अगर सरकार इसमें और कमी करेगी तभी हम कीमतों में कमी करने के बारे में सोच सकते हैं। ऐसी हालत में सरकारी प्रयासों का असर आम आदमी तक पहुँच सकेगा?

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