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खाद्य तेल की माँग बढ़ी

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नई दिल्ली (वार्ता) , मंगलवार, 6 जनवरी 2009 (12:01 IST)
देश में खाद्य तेलों की बढ़ती माँग के साथ-साथ इनका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देते हुए एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि इस तरफ तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दस साल में खाद्य तेलों की माँग एव आपूर्ति के बीच का फासला करीब दोगुना हो जाएगा।

एसोचैम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक देश में खाद्य तेलों की माँग और आपूर्ति का फासला जो कि इस समय 47 लाख टन है, वह बढ़कर 81 लाख टन तक पहुँच जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि उत्पादन पर ध्यान नहीं दिया गया तो खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता बढ़ती जाएगी और फिर हम पूरी तरह से विदेशी बाजारों पर निर्भर हो जाएँगे।

एसोचैम की खाद्य तेल-2008 नामक इस अध्ययन रिपोर्ट में तिलहनों की खेती का दायरा और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिंचित भूमि पर इसकी खेती कराने की सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है कि ज्यादातर तिलहनों की खेती को कम पानी की जरूरत होती है, इसलिए इनकी खेती में पानी की भी बचत होगी और दूसरी तरफ आयात पर निर्भरता भी कम होगी।

एसोचैम महासचिव डीएस रावत ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि लोगों की खानपान की आदतों में बदलाव आने और प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के साथ ही खाद्य तेल की खपत तेजी से बढ़ी है, जबकि इसके मुकाबले खाद्य तेलों के उत्पादन में उतनी वृद्धि नहीं हो पाई।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1986-87 से लेकर 2006-07 के पिछले 20 साल के दौरान देश में खाद्य तेलों की खपत 49.59 लाख टन से बढ़कर 114.50 लाख टन तक पहुँच गई, जबकि इस दौरान इनका उत्पादन 34.70 लाख टन से बढकर 67.10 लाख टन तक ही पहुँच पाया। माँग में जहाँ औसतन हर साल 4.25 प्रतिशत वृद्धि हुई वहीं उत्पादन की औसत सालाना वृद्धि 3.35 प्रतिशत ही रही।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाना काफी मुश्किल काम होता जा रहा है। तरह-तरह की फसलों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते इसमें सुधार की गुंजाइश कम रह जाती है। दूसरी खेती और सिंचाई वाली भूमि में पिछले कई सालों से कोई उल्लेखनीय सुधार देखने को नहीं मिला है।

एसोचैम महासचिव के मुताबिक खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए तिलहन की खेती का दायरा बढ़ाना एक बड़ी समस्या है। रिपोर्ट कहती है कि सरसों की खेती का कुछ दायरा बढ़ने के बावजूद सिंचाई की सुविधाओं के अभाव में इनका उत्पादन स्थिर बना हुआ है। प्रति हेक्टेयर कम उत्पादन की वजह से किसानों को भी ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता है, इसलिए उनकी इसमें रुचि भी कम होने लगती है।

रिपोर्ट में देश में पॉम तेल की पैदावार बढ़ाने का ठोस सुझाव देते हुए कहा गया है कि देश के उपयुक्त इलाकों में इसकी खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट कहती है कि इसमें प्रति इकाई अधिक तेल की प्राप्ति होती है। हालाँकि सरकार ऑइल पॉम डेवलपमेंट प्रोग्राम के जरिये इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है लेकिन अभी तक वांछित सफलता इसमें नहीं मिली है।

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