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ड्रैगन भी मंदी की चपेट में

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कमल शर्मा

लो अब ड्रैगन भी मंदी की चपेट में आता जा रहा है। चीन की तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍था अब अपनी भविष्‍यवाणी के विपरीत ठंडी पड़ती जा रही है, जिसने दुनिया के सामने यह चिंता पैदा कर दी है जो अर्थव्‍यवस्‍था उनकी माँग के आधार पर नैया पार लगा सकती थी, वही अब उनके वित्तीय संकट को और बढ़ा देगी।

  चीन के 1.3 अरब लोगों का सामूहिक खर्चा पिछले साल 1.2 खरब डॉलर रहा, जबकि अमेरिका के 30 करोड़ लोगों ने 9.7 खरब डॉलर खर्च किए      
चीन सरकार ने जो आँकड़े पेश किए हैं, उनके मुताबिक चीन की आर्थिक विकास दर वर्ष दर वर्ष तीसरी तिमाही में नौ फीसदी रही। यह दर अभी भी बढ़िया दिख रही है, लेकिन यह तेजी से घटती भी जा रही है। दूसरी तिमाही में विकास दर 10.1 फीसदी रही जो पहली तिमाही में 10.6 फीसदी थी। चीन की आर्थिक विकास दर वर्ष 2002 के बाद पहली बार दस फीसदी से नीचे रहने की संभावना है। अनेक अर्थशास्‍त्री तो चीनी सरकार के इस विकास दर को तेज करने के अनेक कदम उठाने के बावजूद अगले साल आठ फीसदी से कम रहने की आशंका जता रहे है।

अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े उपभोक्‍ताओं की माँग तेजी से घटने की वजह से निर्यात को झटके लग रहे हैं। इससे चीन के प्रॉपर्टी बाजार की भी हालत कमजोर हो रही है। बीजिंग सहित दूसरे कई शहरों में ढेरों इमारतों को आज भी अपने खरीददारों का इंतजार है। पीटरसन इंस्‍टीट्‍यूट ऑफ इंटरनेशनल इकॉनामिक्‍स के वरिष्‍ठ फैलो निकोल्‍स लॉर्डी का कहना है कि यद्यपि चीन की वित्तीय प्रणाली साख संकट से अभी बची हुई है, लेकिन पर्याप्‍त विकास के लिए उठाए जा रहे कदम गलत दिशा में उठ रहे हैं।

चीन में सितंबर से लेकर अब तक ब्‍याज दरों में दो बार कटौती हो चुकी है। महँगाई दर भी फरवरी के 8.7 फीसदी से कम होकर सितंबर में 4.6 फीसदी रही, लेकिन ड्रैगन पर पड़ रही मंदी की छाया धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि वहाँ की सरकार ने अब लचीली और दूरदर्शी आर्थिक नीतियों का वादा किया है, जबकि पहले वह स्थिर और तेजी से विकास करने वाली अर्थव्‍यवस्‍था की हामीदार थी। चीन सरकार ने कपड़ा और श्रम-रियायत आधारित उत्‍पादों के लिए कर छूट में बढ़ोतरी करने, छोटे कारोबारियों को बैंक कर्ज अधिक देने, हाउसिंग सौदों पर कर घटाने और इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर निर्माण को गति देने का वादा किया है।

हालाँकि इस समय चीन में उपभोक्‍ता खर्च का हिसाब किताब बेहतर है। खुदरा क्षेत्र में सितंबर में रिटेल बिक्री बढ़कर 17.9 फीसदी पहुँच गई जो इस साल की शुरुआत में 13 से 14 फीसदी थी। लेकिन मई से वहाँ कार की बिक्री, दहाई अंक की विकास दर और हवाई यात्राओं में हर महीने कमी आती दिख रही है। होम फर्निशिंग और एप्‍लायंसेस की बिक्री घटती जा रही है। अर्थशास्‍त्री इस बात की साफ शंका जता रहे हैं कि वहां असल उपभोक्‍ताओं की स्थिति सुर्खीयों में चमकाए जा रहे उपभोक्‍ताओं से अलग है।

चीन के बाजार में जर्मन मशीन टूल निर्माता और जापानी कंस्ट्रक्शन उपकरण निर्माता जो अब तक मौज कर रहे थे, मंदी की ठंडक से परेशान हो उठे हैं। चीन में जर्मनी की वस्‍तुओं का आयात 2.5 फीसदी घटा है। दक्षिण कोरिया से चीन को होने वाला निर्यात भी सितंबर में 15.5 फीसदी रहा जो अगस्‍त में 20.7 फीसदी और जुलाई में 30.4 फीसदी था। चीन में यही हाल जापानी कंपनियों का है।

चीन सरकार मानती है कि वैश्विक वित्त संकट ने अनेक देशों के निवेशकों और उपभोक्‍ताओं के विश्‍वास को हिला दिया है और चीन इससे अपवाद नहीं है। हालाँकि दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था में अभी भी चीन का अहम स्‍थान है और उसके अकेले के दम पर काफी कुछ निर्भर करता है।

समूची दुनिया में प्रति व्‍यक्ति आय के मामले में चीन का स्‍थान 100वाँ है। जबकि बाजार विनिमय दर के आधार पर इसका योगदान छठे स्‍थान पर है। खरीद शक्ति पैरीटी के आधार पर चीन दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था का दसवाँ हिस्‍सा खपत करता है, जो काफी अहम है। चीन विकास के रास्‍ते पर है लेकिन उसकी अपनी घरेलू माँग उतनी अधिक नहीं है जितनी आबादी के हिसाब से होनी चाहिए थी। चीन के 1.3 अरब लोगों का सामूहिक खर्चा पिछले साल 1.2 खरब डॉलर रहा, जबकि अमेरिका के 30 करोड़ लोगों ने 9.7 खरब डॉलर खर्च किए।

चीन में लोगों का खर्चा हाउसिंग क्षेत्र में बढ़ा है, जिसकी वजह से सीमेंट और स्‍टील का आयात तेजी से बढ़ा। लेकिन पिछले साल वहाँ हाउसिंग के दाम तेजी से बढ़ने की वजह से सरकार चिंतित हो उठी और उसने बैंकों से दूसरे आवास के लिए दिए जाने वाले कर्ज के नियम कड़े करने को कहा। इस कदम से इस साल चीन के अनेक शहरों में हाउसिंग के दाम या तो स्थिर हैं अथवा गिर गए हैं।

चीन के अनेक बिल्‍डर मानते हैं कि आने वाले दिनों में दाम और गिरेंगे जिसकी वजह से खरीददार भी इंतजार करो की नीति अपना रहे हैं। अर्थशास्‍त्री यह मानते हैं कि चीन की सरकार विकास की गर्मी को बनाए रखने के पूरे प्रयास कर रही है लेकिन वैश्विकरण के दौर में आई इस मंदी की ठंडक से कोई देश नहीं बच सकता।

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