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मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की

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-संदीप तिवारी

केन्द्र सरकार और आरबीआई बाजार को मंदी से उबारने के लिए जो भी कोशिश कर रहे हैं लेकिन इसका कोई असर देखने में नहीं आ रहा है। बाजार संभालने के लिए वित्तमंत्री ने तरलता और बढ़ाने के लिए सीआरआर में एक फीसदी कटौती कर दी, लेकिन गुरुवार को बाजार में फिर गिरावट हावी रही।

पहले डेढ़ फीसदी सीआरआर में कटौती कर बैंकों में करीब 65 हजार करोड़ रुपए दिए गए लेकिन बुधवार को फिर रिजर्व बैंक ने एक फीसदी सीआरआर दर को कम किया और गवर्नर डी. सुब्बाराव ने कहा कि सरकार के इस कदम से बाजार में 40 हजार करोड़ रुपया पहुँचेगा।

सीआरआर की घटी हुई दर 11 अक्टूबर से ही प्रभावी मानी जा रही है। इससे पहले भी रिजर्व बैंक ने म्युचुअल फंडों को नकदी की किल्लत दूर करने के लिए विशेष अल्पकालिक ऋण की पेशकश की थी, लेकिन इसका वाँछित परिणाम नहीं निकला। बैंकों ने इस योजना का लाभ न लेना ही उचित समझा।

सरकार को म्युचुअल फंडों में नकदी की जरूरत पूरा करने के लिए कहा गया था और कहा गया था कि भुगतान दबाव को कम से कम रखा जाए। इसे देखते हुए सरकार ने सेबी और आरबीआई से बैठक करने और मामले को सुलझाने को कहा था।

केन्द्रीय बैंक ने जानकारी दी है कि यह कर्ज चौदह दिनों का होगा और इसे 9 फीसदी वार्षिक दर से लागू किया गया है, क्योंकि ज्यादातर म्युचुअल फंडों को नकदी फंडों में भुगतान के दबाव का सामना करना पड़ रहा है।

पर अब स्थिति यह है कि जमाकर्ताओं की ओर से निकासी की माँग बढ़ने के कारण नकदी फंडों की कुल परिसंपत्ति का मूल्य नकारात्मक होता जा रहा है। फिर भी उम्मीद की जा रही है कि बैंकों का शीर्ष प्रबंधन और म्युचुअल फंड कंपनियों को कर्ज देंगे।

म्युचुअल फंडों को जमा प्रमाणपत्रों को बतौर गारंटी बैंकों के पास जमा कराना होगा। म्युचुअल फंड उद्योग बैंकों से ली गई उधारी के लिए जमा प्रमाणपत्र को ही गारंटी के तौर पर जमा कराएँगे। फिर भी मात्र एक सप्ताह में ही म्युचुअल फंडों की हालत खराब हो गई है।

भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग के लिहाज से चिंताजनक बात यह है कि करीब एक दर्जन से ज्यादा लिक्विड फंडों की शुद्ध परिसंपत्ति मूल्यों (एनएवी) में काफी गिरावट देखने को मिली है। उदाहरण के लिए मरे एसेट मैंनेंजमेंट कंपनी के छह लिक्विड प्लस फंड के एनएवी में सोमवार को 7.50 रुपए की गिरावट आई, जबकि शुक्रवार को इसमें 6 रुपए तक की गिरावट आई थी। कहने का आशय है कि मात्र दो दिनों में ही 13.50 रुपए की गिरावट देखी गई। इसी तरह कई अन्य लिक्विड फंड प्लस को भी इसी तरह का नुकसान उठाना पड़ा है।

इस गिरावट के पीछे कारण यह है कि संस्थानों की तरफ से इन फंडों पर रिडेम्पशन (विमोचन ) का दबाव बन रहा था, जिसके कारण कि फंड हाउस ने लिक्विड फंडों को बाजार में जो भी कीमतें मिल रही थी, उसी पर बेचना बेहतर समझा। जिसका परिणाम है कि इस तरह का घाटा देखने को मिल रहा है।

उल्लेखनीय है कि लिक्विड फंड अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म फंड होते हैं जोकि कंपनियों द्वारा बैंक डिपॉजिट के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। लिक्विड फंड के विपरीत जोकि सिर्फ शॉर्ट-टर्म वाले एक साल या उससे कम की अवधि वाले पेपर्स में निवेश करते हैं, लिक्विड प्लस फंड अपने पोर्टफोलियो का बहुत बड़ा हिस्सा लाँग-टर्म पेपर्स में बेहतर रिटर्न पाने के लिए निवेश करते हैं।

लिक्विड फंडों के ओपन-एंडेड होने के कारण निवेशक किसी भी समय इससे अपना निवेश निकाल सकते हैं। एक फंड हाउस के वरिष्ठ कार्यकारी का कहना है कि रिडेंप्शन (विमोचन) के कारण सबसे ज्यादा घाटा शॉर्ट-टर्म फंडों को हुआ है। इसका कारण कॉर्पोरेट क्लाइंटों के बीच बढ़ती चिंता है। अब इसमें खुदरा निवेशक भी रिडेंपशन (विमोचन) के दौर में शामिल हो गए हैं और इस महीने की शुरुआत से लेकर अब तक करीब 30,000 करोड़ रुपए निकाले जा चुके हैं।

इस मामले में फंड प्रबंधकों का कहना है कि फंडों के लिए आरबीआई का पैकेज भी पर्याप्त नहीं है। इस कारण से यह कहना मुश्किल है कि भारतीय रिजर्व बैंक का 20 हजार करोड़ का बेलआउट पैकेज म्युचुअल फंडों के रिडेम्पशन को और बढ़ावा देगा या फिर इससे निवेशकों का भरोसा बहाल करने में सफलता मिलेगी। इस मामले पर अभी भी कुछ नहीं कहा जा सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक के 20,000 करोड़ की शॉर्ट टर्म लेंडिंग के जरिए म्युचुअल फंडों की लिक्विडिटी (तरलता) की समस्या ठीक करने और रिडेम्पशन (विमोचन) के दबाव को कम करने का प्रयास हो सकता है लेकिन हो सकता है कि ज्यादा निवेशक रिडेम्पशन के लिए जल्दबाजी करने लगें।

रिजर्व बैंक इस सहायता राशि के लिए नौ फीसदी पर विशेष चार दिनों के रेपो का संचालन करेगी। रेपो रेट वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को पैसा मुहैया कराते हैं।

जबकि फंड प्रबंधक इस बात को स्वीकार करते हैं कि रिजर्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने जिस तेजी के साथ कदम उठाए हैं उससे तो लगता है कि परिस्थिति अच्छी नहीं हैं। पर ज्यादातर इस बात को मानते हैं कि असली समस्या तरलता की है।

इसलिए कहा जा सकता है कि वास्तविक समस्या तरलता की है न कि म्युचुअल फंड उद्योग की। फंडों को जो राशि चाहिए वह अभी भी उनकी पहुँच से बाहर बनी हुई है।

लिक्विड फंड द्वारा दिया जाने वाला एक साल में रिटर्न 8.73 प्रतिशत है, जबकि लिक्विड प्लस इंस्टीटयूशनल कैटेगरी द्वारा समान अवधि के लिए दिया जाने वाला रिटर्न 8.89 प्रतिशत है। चूँकि रिजर्व बैंक म्युचुअल फंडों को सालाना 9 प्रतिशत की दर पर ऋण दे रही है, बैंक 11 प्रतिशत की ब्याज दर पर उधार देंगे।

अब सवाल यह उठता है कि क्या फंड इस दर पर कर्ज ले पाने में सक्षम है? बाजार सूत्रों के अनुसार अधिकांश फंड हाउसों की कुल परिसंपत्ति 10-20 करोड़ रुपए की है। ग्राहकों पर इस ऋण का भार लादे जाने से ग्राहक इनसे और ज्यादा दूर भागेंगे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सिर्फ बैंक के पास केवल 3,500 करोड़ रुपए की क्रेडिट पहुँच पाई है क्योंकि वे इस उधार लेने की स्थिति में नहीं हैं।

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