कुछ महीनों पहले तक देश के सामान्य वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग के करोड़ों लोग आवास ऋण पर कम ब्याज दर के कारण अपने घर का सपना देख रहे थे, अब महँगी ब्याज दरों और महँगी होती जमीनों ने उनके घर के सपनों को दुश्वार कर दिया है।
कुछ समय पहले जिन्होंने सस्ती ब्याज दरों पर आवास ऋण से घर बनाए हैं, अब उनकी खुशियाँ भी चिंताओं में बदल गई हैं। जिन लोगों ने फ्लोटिंग रेट पर आवास ऋण लिया है, यदि वे पुरानी निर्धारित मासिक किस्तों के अनुरूप ही भुगतान करते हैं तो उन्हें किस्त चुकाने के निर्धारित वर्षों से दोगुना अधिक समय लग जाएगा।
देश के प्रमुख उद्योग चैम्बर फिक्की द्वारा आवास ऋण के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक जमीन की आसमान छूती कीमतों और एक साल के दौरान आवास ऋण की ब्याज दर में चार से पाँच प्रश की वृद्धि ने आम आदमी ही नहीं, मध्यम वर्ग के लिए भी स्वयं के मकान की आशाओं को पीछे कर दिया है। आवास क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ रही किसी भी अर्थव्यवस्था का प्रमुख पहलू होता है और इस पर किसी भी प्रकार के विपरीत असर से पूरी अर्थव्यवस्था पर चिन्ताजनक असर हो सकता है। विश्व की अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में आवास ऋण का हिस्सा महज चार प्रश. ही है, वहीं ब्रिटेन, अमेरिका, चीन और थाईलैंड में यह क्रमशः 57, 54, 17 और 14 प्रश है।
स्थिति यह है कि महँगाई को थामने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कठोर कदमों ने सामान्य व मध्यम वर्ग के लिए घर की राह में रोड़े बिछा दिए हैं। महँगाई को रोकने के लिए उठाए गए मौद्रिक कदमों के तहत ब्याज दर बढ़ाकर बाजार में तरलता कम करना प्रमुख है। रिजर्व बैंक के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि उसे चार महीनों में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में तीन बार वृद्धि करना पड़ी है। रिजर्व बैंक ने सर्वप्रथम दिसंबर 2006 में और फिर फरवरी 2007 में सीआरआर में आधा-आधा प्रश की वृद्धि की थी। 30 मार्च को एक बार फिर सीआरआर तथा अल्पावधि उधारी दर यानी रेपो रेट को क्रमशः आधा तथा चौथाई प्रश बढ़ा दिया गया है।
अब रेपो दर और सीआरआर क्रमशः बढ़कर 7.75 प्रश व 6.5 प्रश हो गई है। इसका मकसद बाजार से 19500 करोड़ रु. सोखना है। इससे बैंकों ने आवास ऋण की ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। परिणामस्वरूप लोगों के लिए मकान बनवाना व खरीदना कठिन हो गया है। मकान के किराए भी बढ़ गए हैं।
यह देखा जा रहा है कि आवास ऋण पर ब्याज दर बढ़ने के कारण जिन लोगों ने फ्लोटिंग रेट से सस्ती ब्याज दर पर ऋण लेकर मकान बनाए हैं, उनकी हालत खराब हो गई है। उनकी चिंताओं को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने एक वर्ष पहले 15 वर्षों के लिए 10 लाख रु. का आवास ऋण लिया है जिस पर उसे 7.5 प्रश वार्षिक ब्याज अदा करना है। उस व्यक्ति को ऐसे कर्ज के लिए प्रतिमाह 9270 रु. की किस्त चुकाना पड़ती है। अब ब्याज दर बढ़ने के कारण आवास ऋण के लिए ब्याज दर 11 प्रश वार्षिक निर्धारित की गई है।
अब उस व्यक्ति को पहले की निर्धारित 9270 रु. मासिक किस्त की जगह ऋण का भुगतान 15 सालों में ही पूरा करने हेतु 11366 रु. प्रतिमाह की बढ़ी हुई किस्त चुकाना होगी। यदि वह व्यक्ति प्रतिमाह 9270 रु. की मासिक किस्त ही देना चाहे तो उसे भुगतान में 38 साल से अधिक समय लगेगा। यह भी विचारणीय है कि यदि ब्याज दरों में हुई वृद्धि को ध्यान में रखकर, वह व्यक्ति अपने ऋण का पूरा भुगतान कर देना चाहता है तो उसे समय से पहले ऋण भुगतान के लिए दंड भरना होगा। इससे कुछ मामलों में यह भी हो सकता है कि ऋण चुकाने की अवधि इतनी बढ़ जाए कि ऋण चुकाते-चुकाते ऋण लेने वाले की नौकरी पूरी हो जाए और उसका सेवानिवृत्त जीवन ऋण चुकाने के तनाव और चिन्ताओं से भर जाए।
वास्तव में आवास समस्या से जूझ रहे देश के करोड़ों लोगों के लिए आवास ऋण पर ब्याज दर बढ़ने का यह दौर चिन्ताजनक है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जिन्दगी की तीन अनिवार्य आवश्यकताओं- रोटी, कपड़ा और मकान में से मकान की कमी देश के करोड़ों लोगों को चिंतित और तनावग्रस्त करते हुए दिखाई दे रही है। एक गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर हाउसिंग राइट्स एंड एविक्शन्स ने अपनी रिपोर्ट में देश में मकान समस्या की चिन्ताजनक तस्वीर पेश की है। भारत में निम्न व मध्यम वर्ग के लिए तीन करोड़ मकानों की कमी है।
देश के करीब 10 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ी में जीवन गुजार रहे हैं। धनाभाव के चलते देश के करीब 15 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें जर्जर व बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चले मकानों में गुजर-बसर करना पड़ रहा है। एक ओर देश में मकान महँगे होते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मकानों में सुविधा की दृष्टि से स्थिति दयनीय है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने भारतीय घरों में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जो आँकड़े जारी किए हैं, वे मकान से जुड़ी देश की बदहाली को दर्शाते हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि उदारीकरण के नए परिवेश में ज्यादा से ज्यादा भारतीयों ने सीमित संसाधनों की चादर से बाहर निकलते हुए मकान और अन्य सामानों हेतु कर्ज लेकर भारी खर्च का जो रास्ता अख्तियार कर लिया था, उन्हें मकान ऋणों की ब्याज दरें ऊँची होने से भारी झटका लगेगा। महँगे ब्याज पर आवास ऋण बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) अर्थात डूबे हुए लोन को भी बढ़ाने वाले दिखाई दे सकते हैं। कई लोग ऐसे होंगे कि जिनके लिए मकान ऋण की बढ़ी हुई मासिक किस्त चुकाना मुश्किल होगा तो कई ऐसे भी होंगे जो लंबे समय तक नियमित रूप से मकान ऋण किस्तों का भुगतान नहीं कर पाएँगे।
अंत में उल्लेखनीय है कि सरकार ने वर्ष 2010 तक सबके लिए मकान मुहैया कराने का जो लक्ष्य बनाया, उसके तहत देश के प्रत्येक परिवार के लिए सिर छुपाने के लिए छत उपलब्ध कराने हेतु भगीरथ प्रयत्नों की जरूरत है। ऐसा होने पर ही देश के करोड़ों लोगों के चेहरे पर अपने घर के सुख की मुस्कान आ सकेगी। इस मुस्कान के लिए जरूरी है कि सरकार आवास ऋणों को अन्य ऋणों से अलग रखे तथा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आवास ऋण उचित ब्याज दरों पर मुहैया कराने का नीतिगत निर्णय ले।