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रुपए की मजबूती से वस्त्र उद्योग आहत

एक साल में छः लाख हो जाएँगे बेरोजगार

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, सोमवार, 12 नवंबर 2007 (13:03 IST)
रुपए की मजबूती के चलते गंभीर संकट से गुजर रहे कपड़ा उद्योग ने कहा कि अगर सरकार ने जल्द से जल्द उसकी दिक्कतें दूर करने की दिशा में कदम नहीं उठाए तो वर्ष 2007-08 में छः लाख से ज्यादा कामगार बेरोजगार हो जाएँगे।

वस्त्र उद्योग से देश के साढ़े तीन करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। भारतीय कपड़ उद्योग परिसंघ के तत्वावधान में वस्त्र एवं परिधान, गारमेंट उद्योग से जुड़े 11 संघों ने उद्योग को संभालने के वास्ते सरकार से उनकी मुख्य माँगों पर तुरंत ध्यान देने की अपील की। इनमें करों की वापसी, ब्याज दर को घटाकर पाँच से छः प्रतिशत तक लाने, बिजली की दरों में कटौती करने और ड्राबैक और डीईवीपी की योजना में सुधार करना शामिल है।

अपैरेल एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के अघ्यक्ष विजय अग्रवाल ने यहाँ संवाददाता सम्मेलन में बताया कि गारमेंट क्षेत्र में वर्ष 2007-08 में निर्यात में 18 से 22 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है। इसे देखते हुए छह दशमलव दो लाख कामगारों का रोजगार छिनने की आशंका है।

कपड़ा उद्योग ने वस्त्र निर्यात क्षेत्र से आयात पर विशेष अतिरिक्त शुल्क सैड रूप में वसूले गए पैसे को वापस कर उद्योग जगत को राहत देने की भी माँग की। गत वर्ष लगभग 12 हजार सात सौ करोड़ रुपया इस मद में एकत्र हुआ था। स्थिति की गंभीरता से निपटने के लिए कपड़ा उद्योग ने राज्य सरकारों द्वारा निर्यात क्षेत्र से वसूले जा रहे करों की वापसी की व्यवस्था करने या ड्यूटी फ्री स्क्रिप्स जारी किए जाने, सर्विस टैक्स को तुरंत वापस लिए जाने और बिजली की दरों को व्यावहारिक बनाने की माँग की। उन्होंने दावा किया कि भारत में उद्योग जगत के लिए बिजली दर विश्व में सबसे महँगी है।

इतना ही नहीं देश में किसानों को मुफ्त में बिजली देने और घरेलू उपभोक्ताओं को बेहद सस्ती बिजली देने का खामियाजा उद्योग जगत को भुगतना पड़ रहा है। उद्योगों को महँगे दरों पर बिजली दी जाती है कि कृषि और घरेलू उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली दी जा सके। सदर्न इंडिया मिल्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मणिकम रामास्वामी ने कहा कि देश भर में कपड़ा एवं गारमेंट निर्माण इकाइयों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है और कुछ इकाइयाँ बंद होने की कगार पर हैं।

भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के उपाध्यक्ष शिशिर जयपुरिया ने कहा कि देश से सूत का निर्यात बढ़ रहा है और पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन से तैयार माल बड़ी मात्रा में यहाँ आ रहा है जिससे हमारे ही कच्चे माल से तैयार उत्पाद से हमें कड़ी प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है।

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