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शहरी जनता में खर्च की प्रवृत्ति बढ़ी

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नई दिल्ली , रविवार, 2 सितम्बर 2007 (19:51 IST)
सेवा एवं विनिर्माण क्षेत्र की तीव्र विकास दर का प्रभाव देश की शहरी जनता द्वारा किए जा रहे खर्चों में वृद्धि के रूप में नजर आने लगा है। शहरी जनता द्वारा किया जाने वाला खर्च ग्रामीण जनता की तुलना में लगभग दुगुना है।

नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन द्वारा जारी 61वें सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च 1052.36 रु. है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रतिमाह औसतन 558.78 रु. ही खर्च करते हैं। यह सर्वेक्षण वर्ष 2004-05 के दौरान शहरी एवं ग्रामीण जनता द्वारा किए गए खर्चों पर आधारित है। सर्वेक्षण की कार्यपद्धति के अनुसार आँकड़े एकत्र कर इनका विश्लेषण करने में दो वर्ष का समय लग जाता है। ये आँकड़े ऐसे समय में आए हैं, जिस समय एक अन्य सरकारी एजेंसी केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 9.3 प्रश रहने संबंधी आँकड़े जारी किए हैं। अप्रैल-जून 2007 में देश की जीडीपी वृद्धि दर 9.3 प्रश रही है, जबकि इस दौरान विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर तो दो अंकों में रही है। देश की कुल अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 60 प्रश, जबकि विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा 17 प्रश है।

सर्वेक्षण में जनता द्वारा किए जाने वाल खर्च को वर्गवार बाँटा है। इसके तहत अनुसूचित जाति/ जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग के खर्चों का आँकड़ा प्रस्तुत किया गया है। देश के ग्रामीण अनुसूचित जनजाति वर्ग का औसत मासिक खर्च सभी वर्गों में सबसे कम मात्र 426.19 रु. है। इसके बाद ग्रामीण अनुसूचित जाति वर्ग का खर्च 474.72 रु., ग्रामीण अन्य पिछड़ा वर्ग का 556.72 रु. तथा ग्रामीण सामान्य वर्ग का औसत मासिक खर्च 685.31 रु. है। इसके विपरीत शहरों में निवास करने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग का औसत मासिक खर्च 857.46 रु., अनुसूचित जाति वर्ग का 758.38 रु., अन्य पिछड़ा वर्ग का 870.93 रु. एवं शहरी सामान्य वर्ग का औसत मासिक खर्च 1306.10 रु. है। सर्वेक्षण में कहा या है कि बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा जैसे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े राज्यों में अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग का औसत मासिक खर्च मात्र 344-527 रु. ही है।

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